यह सर्वविदित है कि भारत में महिलाओं की आबादी लगभग 50 प्रतिशत है। परंतु, आर्थिक स्वावलंबन की दृष्टि से यदि विचार किया जाय तो ध्यान में आता है कि भारत में बहुत बड़ी मात्रा में महिलाएं पूर्णतः पुरुषों अथवा परिवार पर ही निर्भर दिखाई देती हैं। जबकि, भारत में परिवार की जिम्मेदारियों के निर्वहन के मामले में तुलनात्मक रूप से महिलाओं का योगदान बहुत अधिक पाया जाता है। भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए भारत में महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से अपने बच्चों के लिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान न रखते हुए भी अपना सर्वस्य त्याग करती हुई दिखाई देती हैं। जिसके चलते भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया का स्तर 54.7 प्रतिशत पाया गया है और 23 प्रतिशत महिलाएं मानक बॉडी मास् इन्डेक्स से कम स्तर पर पाई गई हैं। इसीलिए भारत में महिलाओं को त्याग की साक्षात मूर्ति भी कहा जाता हैं। विश्व के अन्य देशों में महिलाओं की स्थिति कुछ भिन्न पाई जाती है। विशेष रूप से विकसित देशों में महिलाएं अपने लिए रोजगार प्राप्त कर स्वावलंबी बन जाती हैं।
अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में सामान्यतः समस्त महिलाओं द्वारा चूंकि आर्थिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों में कार्य किया जाता है अतः उन्हें घरों में लगभग नहीं के बराबर कार्य करना होता है। इन देशों की संस्कृति ही इस प्रकार की है कि ग्रहणियों को घरों में न तो बुजुर्गों की सेवा सुश्रुषा करनी होती है और न ही पोते पोतियों एवं नाते नातियों की देखभाल करनी होती है क्योंकि यहां तो पुत्र एवं पुत्री के 18 वर्ष की आयु प्राप्त करते ही सामान्यतः उन्हें अपना अलग घर बसा लेना होता है। साथ ही, इन महिलाओं को न तो घर में भोजन पकाना होता है और न ही भारतीय महिलाओं की तरह घर की साफ सफाई करनी होती है। इसके ठीक विपरीत भारतीय संस्कृति में तो ग्रहणियों को अपने बच्चों का भविष्य गढ़ने, अपने बुजुर्गों की सेवा सुश्रुषा एवं पोते पोतियों एवं नाते नातियों की देखभाल करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करने के साथ साथ पूरे घर की देखभाल भी करनी होती है। भारतीय ग्रहणियों द्वारा पूरा कुटुंब सम्हालने जैसे असाधारण कार्य किए जाते हैं।
एक अध्ययन प्रतिवेदन में दी गई महत्वपूर्ण जानकारी के अनुसार भारत में 18 वर्ष से 60 वर्ष के बीच की आयु की 28.7 करोड़ महिलाएं ग्रामीण इलाकों में एवं 18.2 करोड़ महिलाएं शहरी इलाकों निवास करती है। इनमें से केवल 1.4 करोड़ महिलाएं ग्रामीण इलाकों में एवं 4 करोड़ महिलाएं शहरी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं। शेष 27.3 करोड़ महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में एवं 9.3 करोड़ महिलाएं शहरी क्षेत्रों में, घरु कार्यों में व्यस्त रहती हैं। एक अन्य अध्ययन प्रतिवेदन के अनुसार भारत में श्रम बल की सहभागिता दर में ग्रामीण क्षेत्र के अन्तर्गत जहां 57.7 प्रतिशत पुरुषों की भागीदारी है वही मात्र 23.3 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी है। इसी प्रकार शहरी क्षेत्र में 55.9 प्रतिशत पुरूषों की भागीदारी के विरूद्ध केवल 13.6 प्रतिशत महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी है। इससे स्पष्ट है कि महिलाओं की श्रम में भागीदारी पुरूषों की अपेक्षा बहुत ही कम है। परिवार के सदस्यों द्वारा हालांकि अपनी माता, बहिन एवं बेटी की समस्त आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति का पूरा ध्यान रखा जाता है परंतु फिर भी स्वावलम्बन की दृष्टि से तो भारतीय महिलाएं पिछड़ी हुई ही दिखाई देती हैं।
श्री दीनदयाल जी उपाध्याय ने कहा था कि शासन कर रहे राजनैतिक दलों का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वे अपनी आर्थिक नीतियां इस प्रकार की बनाएं कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक उन आर्थिक नीतियों का लाभ पहुंचे। इसे उन्होंने एकात्म मानववाद का नाम दिया था। आज हमारी माताएं, बहिने एवं बेटियों के रूप में महिलाएं अपना सर्वस्य त्याग कर अपने बच्चों के भविष्य को संवारतीं हैं तो ऐसे में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के साथ साथ हम सभी का भी यह कर्तव्य है कि हम समाज में महिलाओं की भरपूर सहायता करने का प्रयास करें। इस संदर्भ में भारत में मध्यप्रदेश राज्य अपनी प्रभावी भूमिका निभाता हुआ नजर आ रहा है। सबसे पहिले मध्यप्रदेश राज्य ने ही ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान को अब तो केंद्र सरकार ने पूरे देश में ही लागू कर दिया है। मध्यप्रदेश राज्य ने ही वर्ष 2007 में ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ को प्रारम्भ किया था। इस योजना का मुख्य लक्ष्य एक लड़की के जन्म के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाना और शैक्षिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार के माध्यम से लड़कियों के भविष्य की दृढ़ नींव रखना था। इस योजना के अंतर्गत, परिवार में बेटी के जन्म से अगले पांच वर्षों तक प्रत्येक वर्ष रुपए 6,000 के राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र खरीदे जाते हैं एवं इन्हें समय-समय पर नवीनीकृत किया जाता है। लड़की को छठी कक्षा में प्रवेश के समय रुपए 2,000 और नौवीं कक्षा में प्रवेश पर रुपए 4,000 का भुगतान किया जाता है। जब लड़की को 11वीं कक्षा में भर्ती कराया जाता है, तो उसे रुपए 7,500 प्रदान किया जाता है। अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा के दौरान, उस लड़की को रुपए 2,000 प्रत्येक माह प्रदान किये जाते हैं। लड़की द्वारा 21 वर्ष की आयु प्राप्त होने पर उसे रुपए 1 लाख से ज्यादा की शेष राशि का भुगतान कर दिया जाता है। मध्यप्रदेश राज्य में लाड़ली लक्ष्मी योजना के अलावा भी महिलाओं के हितार्थ कुछ अन्य योजनाएं भी सफलतापूर्वक चलाई जा रही हैं। जैसे बच्ची के स्कूल जाने पर किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं। बच्ची के विद्यार्थी के रूप में दूसरे गांव जाने पर साइकिल उपलब्ध कराई जाती है। विशेष रूप से बच्चियों के लिए स्कालरशिप प्रदान करने की योजनाएं हैं। 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर पांच हजार रुपए प्रदान किए जाते हैं। साथ ही मेडिकल एवं इंजीनियरिंग विषयों में पढ़ाई करने पर बच्चियों की फीस मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वहन की जाती हैं।
अब मध्यप्रदेश राज्य में महिलाओं के आर्थिक स्वावलम्बन उनके तथा उन पर आश्रित बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण स्तर में सतत सुधार तथा परिवार में उनकी निर्णायक भूमिका सुदृढ़ करने के उद्देश्य से दिनांक 28 जनवरी 2023 को मध्यप्रदेश में ‘मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना’ को प्रारम्भ किये जाने की घोषणा की गई है। इस योजना के अंतर्गत प्रतिमाह 1000 रूपए महिलाओं के बैंक खातों में जमा किए जाएंगे। यह महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण तथा आर्थिक स्वावलम्बन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। उक्त आर्थिक सहायता से महिलाएं न केवल स्थानीय उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर स्वरोजगार/आजीविका के संसाधनों को विकसित कर सकेंगी बल्कि परिवार स्तर पर उनके निर्णय लिये जाने में भी प्रभावी भूमिका का निर्वहन भी कर सकेंगी। साथ ही, महिलाएं अपनी प्राथमिकता के अनुसार व्यय करने हेतु आर्थिक रूप से पहले की अपेक्षा अधिक स्वतंत्र बन सकेंगी।
लाड़ली लक्ष्मी योजना की तरह लाड़ली बहना योजना भी निश्चित रूप से पूरे भारत में ही लोकप्रिय होगी। इस योजना को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा महिलाओं की जिंदगी बदलने के अभियान के रूप में लागू किया गया है। देश में महिलाएं जब तक सबल, सशक्त, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरी नहीं होंगी, तब तक न कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता है। लाड़ली लक्ष्मी योजना के 16 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में मध्यप्रदेश राज्य में दिनांक 9 मई 2023 से 15 मई 2023 तक एक सप्ताह का लाड़ली लक्ष्मी उत्सव भी मनाया जा रहा है। इसी उत्सव के अंतर्गत 3.28 लाख लाड़ली लक्ष्मियों को 106 करोड़ की छात्रवृत्ति भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह जी चौहान द्वारा वितरित की जाएगी।
किसी भी देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करने में महिलाओं के रूप में 50 प्रतिशत आबादी का यदि सार्थक योगदान नहीं होगा तो उस देश आर्थिक विकास को गति किस प्रकार दी जा सकती है। अतः भारत में भी आधी आबादी अर्थात महिलाओं के देश के आर्थिक विकास में योगदान को बढ़ाने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार भी विशेष रूप से महिलाओं के लिए विशेष योजनाओं की घोषणा समय समय पर करती रहती है, जिसकी निश्चित ही प्रशंसा की जानी चाहिए।