डिस्क्लेमर:
सबसे पहले तो जो लोग रुढि वादी विचारो को है जिनके लिए इश्वर से बड़ा समाज है वो इस लेख से दूर रहे तो बेहतर होगा क्योंकि बहुत सारे लोगो को ओशो को सुनना अच्छा लगता तो है मगर वो उसे फॉलो नही करते, हिंदूवादी लोग भी सब नही लेकिन बहुसंख्यक समाज कृष्ण और भगवद गीता को सिर्फ किताब तक समेट लिए है वो भी इससे दूर रहे।
- प्रेम
- सम्भोग और शादी
- क्या पराई स्त्री/पुरुष से सम्भोग उचित है या नही (शादी के बाद) ?
सबसे पहले प्रेम क्या है :- आप में से कुछ लोग कहेंगे जिसके बिना रहा न जाए या फिर आपके हिसाब और भी कई सारी व्याख्या हो सकती है , घंटो फोन पर बातें करना , मिलने की चाह कुछ पाने का जुनून यही सब होगा क्यों यही सोच रहे हैं ना ?
मगर ये सब लगाव है एक अट्रैक्शन एक जरूरत है एक समझौता है एक भूख है और कुछ भी नही अरे वो तेरी वाली को उसके साथ देखा था बस मोहब्बत खत्म और इंतकाम शुरू वो बेवफा हो गया या फिर और भी शब्द होंगे दिमाग में मगर सवाल अब भी खड़ा है की मोहब्बत का सही मतलब है क्या ? आखिर मोहब्बत है क्या ? मुझे पता है की वेलेंटाइन बाबा को गए समय गुजर चुके हैं और आजकल ब्रेकअप का जमाना चल रहा होगा ! बहरहाल आपको और ज्यादा बोर न करते हुए सीधे मुद्दे पर आते है की मोहब्बत क्या है ?
तो मोहब्बत असल में एक एहसास है , किसी की याद आते ही ये चेहरा गुलाबी हो जाए , मिलिए मत मिलिए साथ में रहो या बहुत दूर लेकिन यह एहसास बरकरार रहना चाहिए , बाते हो या न हो, न मिलने की आस हो न कुछ पाने चाह बस वो एहसास महसूस होना चाहिए , मोहब्बत खुशी देती है गम नही , मोहब्बत चेहरे पर नूर लाती है कुंठा नही , आपको यह कारण भी पता ही न हो की फलाने व्यक्ति से आप मोहब्बत करते क्यों है ? फलाने व्यक्ति में है क्या ? कारण मोल भाव गुण दुर्गुण तो किसी सामान खरीदते वक्त हम देखते हैं मोहब्बत में नही । तो क्या यह एहसास आपको किसी के लिए कभी महसूस हुआ मेरे ख्याल से नही यहां तो लोग मेरा वाला उसको देख रहा था ले लात दे घुसा और ऐसा नही करते तो बेवफाई के गीत गाते है, sad songs सुनते हैं और सुनाते है अरे बबुआ तुमको मोहब्बत हुआ ही नहीं है तुम तो सिर्फ आकर्षण में पड़े हो बहरहाल अब आप में से कितने लोगो को मोहब्बत हुई है , कितने लोगो को आकर्षण ये निर्णय मैं आप पर ही छोड़ देता हु , तो मोहब्बत क्या है अगर इसको एक लाइन में कहना हो तो मोहब्बत एक एहसास है , ऊपर की लाइनों में व्याख्या मौजूद है. इस पर ओशो रजनीश ने कहा है की व्यक्ति को उसी से प्रेम होता है जिस गुण की कमी उसमे है इसको और ज्यादा अगर व्याख्या करे तो partnership कैसे बनता है जो आपमें नही है वो आप सामनेवाले में ढूंढते है जो आपकी भावनायो की समझ रखता हो जो आपकी कद्र करता हो जो व्यक्ति बिना इसके की इसमें मेरा क्या फायदा इसको हटाकर आपसे लगाव रक्खे मतलब वो आपसे प्रेम करता है. यहाँ पर मिल्न या सम्भोग सर्वोपरि नही है यहाँ पर सिर्फ और सिर्फ बिना मतलब का सामने वाले का भला सोचना और करना ही प्रेम है कोई आस नही उससे की वो आपके लिए कुछ करता है या नही ? आपके मोबाइल का रिचार्ज किया या नही आपके खर्चे उठाने में सक्षम है या नही इन सबसे कोई लेना देना नही सिर्फ प्रेम और यही प्रेम आपको पवित्रता के अनंत सागर में ले जाता है. ऐसा कोई मिल जाए तो वो मोक्ष के समान है लेकिन दोनों ही तरफ से ये समर्पण का भाव आना मुश्किल है और ऐसा हुआ तो समझो प्यार समझो प्यार .
सम्भोग और शादी : इस विषय पर पहले मै डर रहा था मगर अन्दर से आवाज आई सत्य है तो लिख डाल डर किस बात का ? जिसका सारथि कृष्ण हो वो अगर डर गया तो समझो मर गया
तो आइये समझते हैं सम्भोग है क्या ?
सम्भोग एक ऐसी क्रिया है जीसमे आप संतान उत्पति के लिए किसी स्त्री/पुरुष से संसर्ग करते हैं ऐसा रुढ़िवादी विचार धारा के लोग सोचते हैं। सत्य यह है की सम्भोग एक आनंद की क्रिया है, एक जरूरत है, एक सांसरिक सुख को भोगने की, एक आनंद है जो आपको सम्भोग से समाधि की ओर ले जाता है।
संतान उत्पति तो प्राकितिक देन है जो की इस आनंद से उत्प्पन हुई। हम सब कभी ना कभी किसी पर ये तंज करते हैं की फलाना तो अपने माँ बाप के मनोरंजन का नतीजा है फिर तुम क्या हो ? सब तो वही है इस क्रिया में आनंद किसको नही आया ? फिर संतान उत्पति या आनंद, आखिर क्या है सम्भोग ? सोचिये !
वास्तव में सम्भोग शारीरिक जरूरत है शरीर खत्म जरूरत खत्म। इसमें कई बार लोगो ने पूछा है की
क्या पराई स्त्री/पुरुष से सम्भोग उचित है या नही (शादी के बाद) ?
उत्तर हां भी है और नहीं भी बड़ा सवाल यह है की क्या आप उससे प्रेम करते हैं ? या करते थे ? या फिर सिर्फ आकर्षण है।
अगर आकर्षण है तो ये नाजायज है और इसको नाजायज रिश्ता ही समझा जाएगा। क्योंकि पैसे देकर सम्भोग करना किसी को किसी वस्तु या नौकरी में पदौन्नति के लिए सम्भोग के लिए जबरदस्ती करना एकदम नाजायज है।
अपने शारीरिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए जो व्यक्ति इस कृत्य में संलग्न हुआ समझो वो किसी भी स्त्री/पुरुष से प्रेम नही करता ऐसे लोग दुर्योधन से भी खतरनाक है। इनसे जितना जल्दी हो दूर भागिए। अब बड़ा सवाल यह है की कब यह जायज का रूप लेगा और नैतिक हो जाएगा ?
तो उत्तर है आपने किसी से प्रेम किया तो, मगर उसको सामजिक रूप ना दे पाए हो, बाद में अगर दोनों ने अपनी सहमती से सम्भोग कर भी लिया तो इसमें कोई गलत बात नही। मगर प्रेम हुआ था या आकर्षण ये बड़ा सवाल है ? इसमें 98% लोग आकर्षण से ग्रस्त है। इसलिए सामाजिक नियम में यह लागू कर दिया गया की जो भी व्यक्ति पर स्त्री से सम्भोग करते देखा गया वो चरित्रहीन है।
मगर इसमें 2% वाले लोग भी फंस से जाते हैं. ओशो ने कहा है प्रेम प्राकृतिक व्यवस्था है और शादी सामजिक तो फिर प्रेम जिससे हुआ शादी उससे कर ही डालो मगर कई बार हमें यह पता ही नही चलता की हम अमुक स्त्री/पुरुष से प्रेम करते थे।
परिणाम शादी के बाद प्रेम की आस, उस वक्त सारे बंधन टूट जाते हैं प्राकृतिक व्यवस्था के सामने शादी छोटी परनी ही है। और पर ही जाती है। समाज इसे गलत कह दे मगर आपने ऐसा करके कोई पाप नही किया है।
मगर रोज किसी दुसरे स्त्री/पुरुष से जिसको प्रेम हो जाए वो चरित्रहीन व्यक्ति है। उससे दुरी बनाइए, लेख पढकर आप व्यभ विचार/सम्भोग के लिए प्रेम का स्वांग भी रचा सकते हैं। लेकिन प्रेम आप कर नही सकते ये तो हो जाता है। शादी के बाद वही स्त्री या पुरुष अपने प्रेम की और ताकते है जिन्हें व्यस्था विवाह से शादी तो कहीं और कर ली मतलब व्यवस्था विवाह के चपेट में आ गये।
फिर आपने संतान भी उत्पन कर लिया हो तो प्रकृतिक रूप से वो संतान नाजायज है। इस पर फिर से ओशो के विचार मेल खा गये। उन्होने भी ऐसा ही कहा है।
संतान उत्पति के बाद आपका पार्टनर आपकी कदर नही करता। आपको संतुष्ट नही करता उस स्थिति में आप अपने पुराने प्यार को याद कर आंशु बहाते है। और वो भी ऐसा ही करता है। एक दिन आप उसको फोन लगाते हैं या किसी माध्यम से सम्पर्क करते फिर दोनों ही त्रस्त जोड़े जो प्राकृतिक प्रेमी थे वो सम्भोग की पर्क्रिया भी करते हैं। जो बिलकुल ही जायज है और जब वो ऐसा करते है तब उन दोनों को ही संतुष्टि का एहसास भी होता है। क्योंकि वो एक दुसरे के शारीरिक जरूरत को खूब पहचानते है और यहाँ से उत्पन होता है उनके लिए सामजिक दबाब का लेकिन वो अपनी संतुष्टि के लिए बार बार ऐसा करते ही रहते हैं।
दबाब या बंधन में अगर रुक गये फिर बिमारी और न जाने उस संतुष्टि के अभाव में आपको दिल से जुडी बीमारियाँ और भी बहुत कुछ घेर लेगा ( आज का मॉडर्न साइंस या विज्ञानं भी सम्भोग में संतुष्टि या कमी पर बहुत साड़ी शारीरिक समस्याओं को बताता है जैसे चिड़चिड़ापन या फिर कई ऐसे शारीरिक लक्षण जैसे औरतो के वजाइना में पथरी का होना या फिर पुरषो में प्रोस्टेट कैंसर हो जाना बहुत सारे असाध्य रोगो का होना )
इसलिए सामजिक नियम को अगर एक बार आपने लाँघ कर प्रकृतिक सुख भोग लिया हो फिर आपको कोई भी दूसरा पुरुष/स्त्री आपको सम्भोग की क्रिया में कभी भी संतुष्ट नही कर पाएगी/पायेगा क्योंकि प्रकृतिक व्यवस्था से बड़ी कोई व्यवस्था नही और जब आप प्रकृतिक व्यवस्था को छोड़ेंगे मतलब भगवान् को छोड़ने जैसा है।
फिर क्या होगा ?
कभी खत्म न होने वाली बीमारियों की शुरुआत इसलिए ये कदम बहुत भाड़ी पर सकता है आपको ! इसलिए जिससे शादी करे उसके प्रति समर्पित रहे नही तो प्रकीर्ति और सामजिक व्यवस्था के बिच एक द्वंध होगा। हारेगा न प्रकृति ना ही समाजिक बिच में पिसेंगे आप। इसलिए चक्की पिसिंग और पिसिंग।
बचने का मार्ग भी है अपना ध्यान प्रभु में लगा दीजिये अध्यात्म के मार्ग को चुन लीजिये मगर ये रास्ता उतना भी आसान नही क्योंकि अभी जिस समाज में रह रहे है वो सामजिक पति/पत्नी आपको चैन से जीने नही देते। फिर इश्वर का ध्यान कैसे होगा ? मार्ग है यहाँ भी, भगवद गीता और इससे भी आसान है फिर से उसके पास चले जाना उससे संसर्ग करना।
मगर हो सकता है की उसने ये मार्ग पहले ही चुन लिया हो फिर से आप फसेंगे परमात्मा की बनाई व्यस्था प्रेम से जिसने भी छेड़ छाड़ या खिलवाड़ किया उसका समय बड़ा ही खराब हो जाएगा।
उम्मीद है आप इससे यह तय कर पायेंगे की आपको प्रकृतिक सम्भोग चाहिए या सामाजिक। जिन जोड़ो ने प्रेम को समझ कर एक दुसरे को अपना लिया है। वो सुखी है जिसने लाइन क्रॉस किया और समाज को ताख पर रख कर करता ही रहा वो भी सुखी है। और जो व्यक्ति सही गलत और सामजिक उलझनों में फंसा वो समझो मर सा गया।
अब जिंदगी कहा है बस आप जिए जा रहे है।
इसलिए बहुत ही सोच समझ कर ही लाइन क्रॉस करे ये बहुत खतरनाक रास्ता है।
राधे राधे