जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 21 फरवरी ::

दो दिवसीय बिहार साहित्य महोत्सव का आयोजन बाबू जगजीवन राम राजनीतिक अध्ययन एवं शोध संस्थान सभागार पटना में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ श्री अशोक कुमार सिन्हा, एडिशनल डायरेक्टर राज्य संग्रहालय विहार राज्य, श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी, अध्यक्ष कार्यक्रम, शिक्षाविद् एवं लोकप्रिय वरिष्ट साहित्यकार बिहार, श्रीमती ऊषा सिन्हा, विशिष्ट अतिथि, पूर्व विधायक एवं वरिष्ट साहित्यकार पटना, श्री सुरेश सोनपुरे, विशिष्ट अतिथि, सुपरिचित कवि एवं सेवा निवृत्त अधिकारी, प्रचार एवं जन संपर्क बी एच ई एल भोपाल ने दीपशिखा प्रज्ववलित कर किया।

आयोजक श्री कमल किशोर वर्मा, वरिष्ट साहित्यकार, श्री नसीम अख्तर जी, चर्चित गजलकार, श्रीमती सीमा रानी, लोकप्रिय गीतकार, एवं किशोर कुमार सिन्हा, ने अतिथियों का अभिनंदन कर उन्हें स्मृति चिह्न एवं सम्मान पत्र भेंट किए।

इस गरिमामय दो दिवसीय साहित्य महोत्सव में विभिन्न राज्यों के लगभग 150 साहित्यकार सम्मिलित हुए।

मुख्य अतिथि अशोक कुमार सिन्हा ने अपने उद्बोधन में कहा कि भाषा न सिर्फ संवाद, संप्रेषण के आयाम से महत्वपूर्ण है बल्कि भाषा राष्ट्र की अस्मिता एवं पहचान होती है। उन्होंने विभिन्न संस्मरणों एवं प्रसंगों को प्रस्तुत कर अंतरराष्ट्रीय स्तर भी भाषा की उपयोगिता एवं महत्व के संदर्भ के विस्तृत जानकारी दी।

वरिष्ट साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने समाज में विभिन्न आंचलिक बोलियों, भाषाओं के साहित्य में कमी, असंवेदनशीलता, अरुचिता के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा कि साहित्यकारों को हिन्दी भाषा के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषाओं में भी अधिकाधिक उत्कृष्ट साहित्य सृजन करना चाहिए।

ऊषा सिन्हा ने साहित्य रचना धार्मिता एवं साहित्य के बहु आयामी महत्व पर अपने विचार रखते हुए साहित्य का राष्ट्र निर्माण में क्या योगदान है विषय पर समुचित जानकारी दी। उन्होंने शुद्ध साहित्य लिखना और खास तौर से शुद्ध बोलने की नसीहत दी, उनका कहना था कि आप जैसे बोलेंगे वैसे लिखेंगे, अतः शुद्ध बोलना अत्यावश्यक है।

भोपाल से आए सुपरिचित कवि सुरेश सोनपुरे ने तकनीकी क्षेत्रों में भाषा की उपयोगिता, प्रभाव एवं महत्व पर अपने विचार रखे। हिन्दी एवं आंचलिक भाषाओं के विज्ञापन आज व्यवसाय, व्यापार में कितने उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है एवं इस तरह राष्ट्र निर्माण में कितने सहायक है विस्तृत से बताया।

दो दिवसीय आयोजन में विभिन्न सत्र आयोजित किए गए। लोकभाषा एवं आंचलिक बोलियों के विशेष साहित्य सत्र में रचनाकारों ने, भोजपुरी, मगही, अंगिका, मैथिली, बज्जिका, अवधी भाषाओं में उत्कृष्ट रचनाएं सुनाकर कर कार्यक्रम को सार्थक, यादगार बना दिया।

पूनम कतरियार ने आंचलिक भाषा, बोलियों पर सारगर्भित वक्तव्य दिया। कविता सत्र में अधिकत्तम साहित्यकारों ने विभिन्न विषयों पर उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत कर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। मधुरेश जी, प्रदीप कुमार “प्राश”, अनामिका सिंह , ब्रजमोहन सिन्हा, सुरेश सोनपुरे, कुमुद साहा, करुणा कुमारी कल्पना, अंजनी प्रसाद दुबे, मीना परिहार, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, डॉ प्रियंका साहा, अजय प्रसाद, अर्चना जी आदि की प्रभावी रोचक प्रस्तुति एवं रचना को खूब सराहा गया। लघुकथा, शोध पत्र, एवं साहित्य से राष्ट्र निर्माण विषय पर परिचर्चा सत्र भी सराहनीय रहे। बलिया के डॉ विद्यासागर उपाध्याय ने वर्तनीगत अशुद्धियों पर अपने विचार व्यक्त किए।

ऊषा सिन्हा की पुस्तक “सिरहाने बैठे अहसास” एवं डॉ अभिषेक कुमार के काव्य संग्रह “पुरानी डायरी के चुनिंदा पन्ने” का लोकार्पण किया गया। जिनकी समीक्षा वरिष्ट पत्रकार नलिनी सिंह, वरिष्ट साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ब्रज मोहन जी, किशोर सिन्हा ने की।

गरिमामय आयोजन में अहमदाबाद के सुपरिचित रचनाकार कवि और साहित्यकार प्रदीप कुमार “प्राश” के अतिरिक्त अन्य साहित्यकारों का भी सम्मान किया गया।

गजल सत्र भी सराहनीय रहा। गजल सत्र में अनामिका सिंह की सुमधुर तरन्नुम में गजल गायिकी ने खूब तालियां बटोरी। अंत में अध्यक्ष कमल किशोर वर्मा के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम का समापन हुआ।
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