भारत की राजनैतिक व्यवस्था से अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था में क्या बदलाव होने वाले हैं, इनका अनुमान लगाना हो तो ली कुआन यू की “फ्रॉम थर्ड वर्ल्ड टू फर्स्ट” जरूर पढ़ लेनी चाहिए। आइये देखें कि इतने दावे से हम इस किताब के बारे में कैसे बता सकते हैं? ली कुआन यू को जो सिंगापुर मिला था वो तीन चार भाषाई-नस्लीय समूहों में बंटा हुआ था। उनके पास कोई एक भाषा नहीं थी, संस्कृति नहीं थी, अर्थव्यवस्था, आधारभूत संरचनाओं या कहिये इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी भी थी। ली कुआन यू ने जो सिंगापुर बनाकर खड़ा कर दिया, वो आज हम सभी देख सकते हैं।
जो सबसे पहले काम उन्होंने किये थे, वो थे – इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास, अपराधियों की संपत्ति पर नकेल, और लोगों के लिए आवासीय सुविधा उपलब्ध करवाना। क्या भारत में, और भारत के एक खास राज्य में आप हाल में तेजी से ऐसा होना देख पा रहे हैं? सड़कें बन रही हों, छापे में नोट निकलें, लोगों को रियायती दरों पर आवास दिए जा रहे हों, ऐसा होता हुआ, या ऐसा करने की कोशिश दिखती है? अगर हाँ तो ली कुआन यू के मॉडल की नकल तो दिख ही रही है। अगर नहीं दिख रही तो आपको ये शेखूलरिज्म का टिन का चश्मा उतार लेना चाहिए!
ये मूर्त रूप की बात थी, यानी ऐसी चीजें जिन्हें आप देख या छू सकते हैं। कुछ बातें अमूर्त होती हैं, जैसे नेतृत्व की शैली, जिन्हें आप देखते-छूते नहीं, केवल महसूस करते हैं। नेतृत्व के मामले में ली कुआन यू दो बातों में स्पष्ट रूप से अंतर करते थे। पहला था लोगों को अपना अनुसरण करने कहना, यानी मेरे पीछे-पीछे चले आओ, सवाल-जवाब में समय खराब न करो। दूसरा था वस्तुस्थिति का सामना; कई बार लोग सच्चाई को देखकर अनदेखा करते हैं। बदलावों की जरुरत पता है, लेकिन यथास्थिति का आराम छोड़ना नहीं चाहते। ये दोनों तरीके हाल में दिखे हैं?
हाँ, ये जरूर है कि ये मोटी सी किताब बच्चों के लिए नहीं है, तो किताब उठाने से पहले स्वयं से जरूर पूछ लीजिएगा!