वैज्ञानिकों को लगता है कि जब उल्कापिंड धरती से टकराया होगा तो उसने बड़ी तबाही मचाई होगी। उल्कापिंड चकनाचूर होकर इधर-उधर बिखर गया होगा और पृथ्वी के गर्म वातावरण में उसके टुकड़े पिघल गए होंगे। जब पृथ्वी ठंडी हुई होगी, तब उल्कापिंड के अवशेष दोबारा वजूद में आए होंगे। रिसर्चर्स ने अपनी खोज को बीते सप्ताह 54वीं लूनार एंड प्लैनेटरी साइंस कॉन्फ्रेंस में पेश किया, हालांकि इनका रिव्यू होना बाकी है।
रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने उल्कापिंड के सबूत पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पिलबारा क्रेटन से खोजे हैं। उल्कापिंडों के असर के अबतक के सबसे पुराने सबूत भी पिलबारा क्रेटन में ही मिले हैं, जोकि 3.47 अरब साल पुराने माने जाते हैं। उसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका में कापवाल क्रेटन में भी 3.45 अरब साल पुराने उल्कापिंड के अवशेष पाए गए हैं। मौजूदा सबूत 3.48 अरब साल आंके जा रहे हैं, जोकि एक रिकॉर्ड है।
बताया जाता है कि साल 2019 में वैज्ञानिक इन अवशेषों तक पहुंचे थे, जिन्हें स्फेरूल (spherules) कहा जा रहा है। आइसोटोप की मदद से वैज्ञानिकों ने अवशेषों की डेटिंग की। यह काफी विश्वसनीय डेटिंग तकनीक मानी जाती है। डेटिंग के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अवशेषों की रासायनिक संरचना उन्हें इस ग्रह का नहीं बनाती। दिलचस्प यह है कि रिसर्चर्स की इस स्टडी का रिव्यू होना अभी बाकी है। उल्कापिंडों के पृथ्वी से टकराने का सबूत देने वाली कई स्टडी विवादास्पद रही हैं। साइंटिस्टों के बीच टकराव भी देखने को मिला है। हालिया स्टडी पर अन्य वैज्ञानिकों का क्या रुख रहता है, यह देखने वाली बात होगी।
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