तजुर्बा और ज्ञान ( experience and knowledge ) दोनों साथ साथ चलते हैं इसलिए जरुरी नही की जो तजुर्बा और ज्ञान से हमारे बुजुर्ग गुजरे हो उससे हम भी गुजरे ! वास्तव में सुनना तो चाहिए ही बुजुर्गो की बात मगर अपने विवेक से भी सोचना चाहिए की क्या ये आज के कसौटी पर खडा उतरता है या नही
आजकल के बुजुर्ग मायवी हो गये है, तजुर्बा और ज्ञान दोनों साथ साथ चलते हैं इसलिए जरुरी नही की जो तजुर्बा और अनुभव से हमारे बुजुर्ग गुजरे हो उससे हम भी गुजरे वास्तव में सुनना तो चाहिए ही बुजुर्गो की बात मगर अपने विवेक से भी सोचना चाहिए की क्या ये आज के कसौटी पर खडा उतरता है या नही , उदाहरण के लिए हम रामायण और महाभारत को ले लेते हैं, राम रसायन थे और कृष्ण उत्प्रेरक रूप तो दोनों ही एक ही है मगर राम समाज और समाजिकता में सामिल हुए मर्यादा पुर्शोतम कहलाये यहाँ तक की उन्होंने समाज के बहकावे में आकर अपनी देवी समान पत्नी का भी त्याग कर दिया कुछ लोग कहते हैं ऐसा नही हुआ था सीता स्वयम ही चली गई थी क्योंकि प्रभु राम पर आंच न आये मगर बड़ा सवाल यह है की राम ने उन्हें जाने ही क्यों दिया ? राम एक चरित्र थे जो की समाज में fit बैठ गए और आज के समय में उनके जैसा बनना नामुमकिन है इसलिए त्रेता से द्वापर की यात्रा में राम ने अपने स्वरुप को बदला और कृष्ण का अवतार लिया इस बार राम जो की अब कृष्ण है उन्होंने खुद को समाज से दूर किया खुद राषायण नही बने बल्कि उत्प्रेरक यानी catalyst बन गये और समाज में रहकर भी समाज सामाजिकता से कोई मतलब ही नही वो समाज को दिशा देने का काम करने लगे ठीक इसी तरह से हमारे बुजुर्ग भी है और आज की पीढ़ी जिसमे कुछ लोग कृष्ण को मानते है तो वही कुछ लोग राम को दोनों एक ही बात है मगर विचार बदल रहे हैं फिर जो बुजुर्ग आपको शिक्षित कर रहा है वो राम को मानने वाला है या कृष्ण या फिर किसी समुदाय विशेष से आता है इस बात का भी हमे ध्यान देना पड़ेगा मौलवी से सिक्षा कोइ सनातनी भला क्यों ही ले क्योंकि कृष्ण कहते हैं परधर्मो भयावह अर्थात दुसरे का धर्म भय को देने वाला है ठीक उसी तरह से अगर किसी के इष्ट हनुमान है फिर वो राम या कृष्ण को अनुसरण करने वाले बुजुर्ग के प्रभाव से भर्म की स्थिति में आ सकता है इसलिए कभी कभी ये सही भी होगा कभी कभी ये गलत भी हर सिक्के के दो पहलु होते हैं अरुण चाचा जी आपने कहीं से देखा और मुझे भेज दिया मगर हम खुद ही विचार गढ़ते हैं किसी और लिखा और पढ़ा भी सुनते जरुर है मगर मेरी उसपर क्या राय है अथवा क्या दृष्टिकोण है ये हम समय समय पर व्यक्त करते रहते हैं आपके इस पोस्ट से या मेसेज से मुझे एक लेख लिखने की प्रेंरना मिली इसलिए आपको तहे दिल शुक्रिया विचार संवाद और तर्क वितर्क जारी रहे मतभेद आपस में जरुरी है मगर मनभेद नही होना चाहिए और जब हो तो किनारा कर लेना चाहिए. आपके या किसी के भी विचारो से हम सहमती या असहमति रखते हैं वास्तव में मेरा यही काम ही है. पत्रकारिता और साहित्य का अपना अलग ही सम्बन्ध है इसलिए कभी कभी विचारों में टकराव की भी स्थिति भी देखना संभव है और कभी सहमती भी होना लाजमी है क्योंकि हर बार आप असहमत है मतलब की आप किसी एक पक्ष में बोल रहे या लिख रहे हैं ऐसे ही पक्षपाती लोगो को पत्रकार नही पक्षकार कहा जाता है और जो लोग विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं असल में वही पत्रकार है. पत्रकार मतलब पत्र को आकार देने वाला. और यही मेरा कर्म है और कर्म करता क्यों हु क्योंकि कृष्ण है तो कर्म है और कर्म है तो कृष्ण है राधे राधे