राजनीति सरकार और ये तंत्र आखिर काम कैसे करता है ? क्या है तरीका ? कैसे पूरे राष्ट्र पर साशन किया जाता है ? सेवा करने के लिए गुट बनाकर चुनाव लडे जाते हैं।
हमको और आपको ये समझाया जाता है की हम आपकी सेवा करेंगे हम देश की सेवा करेंगे हमको कुर्सी दीजिए सबको दिया है एक बार हमको भी दे कर देखिए , आप क्या देते हैं ? वोट और वोट क्या है आपकी इज्जत ।
हम अपनी बेटे बेटियो की शादी भाई बहन की शादी देख भाल करते हैं । आखिर वहां भी इज्जत का लेन देन हो रहा होता है । कभी कभी मेकअप से बदसूरती को छिपा लिया जाता है ऐसे में हम कन्फ्यूज हो जाते है और ठगे जाते हैं कभी कभी सूरत अच्छी तो सीरत खराब ऐसा लड़का और लड़की दोनो तरफ से जारी रहता है भेद भाव इसमें बिलकुल भी नहीं है कब किधर से तमासा होगा कहना मुश्किल है ठीक ऐसे ही चलता है लोकतंत्र विवाह में एक बार गलती हो गई तो सुधारी नही जा सकती मगर लोकतंत्र में हर पांच साल में ये संभव है की हम अपनी चुनी हुई सरकार जिसको साशन चलाने का एक कॉन्ट्रैक्ट एक अवसर दिया था अब उसे बदलने का वक्त आ गया है । लड़का या लड़की को देखा देखी के समय मतलब शादी के लिए मिलते समय लेपा पोती और दिखावा किया जाता है ठीक उसी तरह से राजनीतिक पार्टियां भी दिखावा करती हैं। लड़का लड़की तो कोई काम करते हैं या फिर उनके घरवाले कुछ न कुछ काम करते हैं इसलिए उनका दिखावा घरवाले या फिर लड़का या लड़की उस दिखावे और शादी ब्याह का आवंडर का खर्च स्वयं वहन करते हैं लेकिन राजनीति में ऐसा नही होता है । राजनीति में राजनीतिक पार्टी , दिखावे के लिए और रिझाना किसको है तो अपने देश की जनता को तो पैसा कहा से आएगा क्योंकि ये लोग कोई काम धंधा तो करते नही तो ये लोग दिखावा के लिए चंदा लेते हैं ये सबकुछ एक दम बरोबर चल रहा था की बीच में घुस गया Arvind Kejriwal अब केजरीवाल जी को भी दिखावा तो करना था और दिखावे के लिए चाहिए मोटी रकम तो उन्होंने छोटे व्यापारियों से चंदा मांग दिया यही पर बेचारे केजरीवाल फंस गए क्योंकि अदानी अंबानी या फिर टाटा बिरला ये तो पूरा संसद खरीद सकते हैं मगर केजरीवाल ने आम आदमी एक मिडिल क्लास व्यापारी से चंदा लेने की भूल कर दी । अब जो व्यक्ति राजनीतिक पार्टी aam admi party के लिए चंदा जुटा रहा था वो इस खेल का हिस्सा नही था । अंबानी और अदानी या फिर बड़े कॉरपोरेट घराने जो इस देश के सभी राजनीतिक पार्टियों को चंदा देते हैं एक सिस्टम बना हुआ है । देश असल में कॉरपोरेट हाउस और ये राजनीतिक पार्टी में फंड देनेवाले लोग ही चला रहे हैं । सरकार किसी की भी हो तय सबकुछ कॉरपोरेट करता है । ऐसे में क्या कोई भी दल जिसको खूब सारी मलाई खाने का मौका मिल रहा हो वो गद्दी छोड़ सकता है क्या ? वो तो चाहेगा ही की पूरी शक्ति झोंक दी जाए मगर गद्दी न छूटे और कोई भी दल सबसे जो इन सबके बीच जो अहम सवाल है जो छूट रहा है क्या कोई भी दल पार्टी फंड का पैसा का हिसाब किताब सारा ब्योरा जनता को देने को तैयार है क्या की किसने पैसा दिया कहा से दिया किस एवज में दिया । ये सारे वो सवाल है जिसके जवाब न तो कांग्रेस देंगी न ही बीजेपी आप देख लीजिए पंजाब में भगवंत मान सरकार जरूरत से अधिक कर्ज ले लेती है तो गवर्नर के पेट में दर्द हो जाता है । वही तृणमूल कांग्रेस बंगाल सरकार में मनरेगा योजना का पैसा रुका है साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना का धन भी रुका है आखिर ये सब हो क्यों रहा है तो इन सबके पीछे हैं आपका फंड मैनेजर कौन है आपको फंड कौन कर रहा है कोई आम आदमी या फिर कॉरपोरेट घराना जो बीजेपी को भी फंड कर रहा है ? संतुलन बनाकर रखिएगा तो डेमोक्रेसी क्राइसिस नही होगी । जैसे ही आप इन सबसे बाहर निकल कर देखने लगेंगे फंड के लिए कोई नई संभावना या नई तरह की जुगत भिड़ाने की कोशिश करेंगे आपको दिक्कत होगी । आज नही तो कल ये #democracycrisisinindia आना ही था चलो मोदी जी ले आए । अब इसका निदान क्या है ? बस एक ही निदान है राजनीति में पारदर्शिता सभी राजनीतिक पार्टियां अपना बही खाता सार्वजनिक करे और सरकार से भी डिमांड करे की एक बिल लाए सरकार की पार्टी फंड की एक एक पाई का हिसाब हो तब कही जाकर इस #crisis को रोका जा सकता है नही तो आज नही तो कल लोकतंत्र का नास तय है । देश की अस्मत भी लूटना तय है । फिर कहते रहिए भारत माता की जय हम भी कह रहे हैं तुम भी कहो । उम्मीद है आपको समझ में आया हो की #democracycrisis भारत में है या नही ये समझ में आ गया होगा ! और अगर अब भी समझ में नही आया तो आप कहेंगे तब इसपर हम आपको एक वीडियो बना देंगे बाद बांकी आपको पसंद आएगा नही भी आ सकता है भाई साहेब सहूलियत आपकी है हम सिर्फ राय और कुछ तथ्य रख रहे हैं हो सकता है मेरे विचार से आप असहमत हो !