इस बार इसी पर आगे की व्याख्या लेकर आया हु। गहन अध्यन और रिसर्च के बाद प्रेम की परिभाषा भी बदली है मगर मोटे तौर पर वही है ।
तो सबसे पहले आइए समझते हैं प्रेम क्या है ?
पुराने अध्यन का विस्तार
सबसे पहले प्रेम
वास्तव में कर्म ही प्रेम के लिए जिम्मेदार है, जैसे कार्य क्षेत्र में किसी ऐसे व्यक्ति का मिलना जो बिलकुल आप जैसा हो फिर प्रेम का उत्पन होना स्वाभविक है। मगर इन्द्रियों पर भी नियत्रण होना चाहिए संतुलन बना रहना चाहिए प्रेम वास्तव में प्रक्रतिक व्यवस्था है और शादी सामाजिक ओशो ऐसा मानते थे।
सामाजिक व्यवस्था को लांघकर जब आप प्राकृतिक व्यवस्था में जाते हैं फिर वापसी सम्भव नही, अगर वापस आये तो फिर समाज जीने देगा नही।
फिर क्या मार्ग है ? मार्ग फिर अध्यात्म का है सम्भोग से समाधि की और में भी कुछ ऐसा ही है। पूरा नही मगर सार यही है सम्भोग पर विजय और जानबूझकर त्याग अलग अलग बात है।
ज्ञान बढ़ने पर और थोडा और पढने पर पता चला की प्रेम वास्तव में कर्म आधारित है आपमें जो quality नही है वो आप अपने साथी में खोजते हैं और जैसे ही आपको कोई वो quality नजर आती है और उसको भी आप में कोई वो qulity नजर आती है आप दोनों में प्रेम की उत्पति स्वाभविक है यहाँ पर उम्र समय की कोई सीमा ना ही कोई शादी जैसा बंधन प्रेम को होने से रोक सकता है प्रेम कई बार हो सकता है।
शादी का टूटना या तलाक
सफल पार्टनरशिप भी कुछ ऐसे ही विकसित होती है जैसे हीरो हौंडा अब दोनों में कुछ quality थी मगर समय के साथ दोनों ने ही अपने गुण के गूढ़ रहस्य को एक दुसरे से साझा किया, परिणाम क्या निकला ? अलग हो गये। एक सफल शादी और जोड़ो में भी यही होता है. जब सामने वाले में कोई ऐसी quality नही होती फिर दोनों साथ तो है मगर साथ होकर भी साथ नही समाज और बच्चे एक दुसरे को बांधे रहते हैं।
विदेशो में ऐसा नही है तो हम भारतीय कह देते हैं की मेरा कल्चर बढ़िया और वो खराब मगर वास्तव में वो आगे है हमसे। महाभारत को जब ठीक ढंग से पढता हु तो चीजे साफ़ हो जाती है। लिविंग का कल्चर हो या छोड़ने और साथ रहने की बात हो दोनों ही महाभारत में चलता रहता है। फिर विदेशी कल्चर खराब और हमारा बढ़िया ये कैसे ?
वास्तव में हम खुद को महान बताकर दुसरे को निचा दिखा रहे होते हैं। मगर महाभारत उलटने के बाद सब साफ़ नजर आने लगता है की हम झूठ बोल रहे हैं।
अगर मेरे विचारों को आप देखें तो उसमे आपको खुलापन नजर आएगा थोडा समाज से हट कर रहता हु। सरीर में नही आत्मा में belive करता हु इसलिए लोगो के लिए एक समस्या भी हु। सत्य अधिक बोलता हु और झूठ से मेरा कोई लेना देना नही हाँ तारीफ़ और सम्मान लोगो का करना मेरे संस्कार में हैं। उपर से कृष्ण का हुक्म थोडा सा महिलाओं के लिए एक अलग स्थान चाहे औरत का कोई भी स्वरूप हो औरत बड़ी ही कम मौको पर गलत हुई है।
लेकिन ज्यादातर मामलो में औरत ही सही थी। स्त्री ने सदेव पुरुष से अधिक प्रेम किया।
प्रेम का होना और कंडीशन
प्रेम में भी एक कंडीशन है प्रेम में अहंकार जोड़ जबरदस्ती या फिर अट्रैक्शन की कोई जगह नही। मगर प्रेम मान लीजिये किसी से होगा तो उसकी एक शर्त है और शर्त ये है की आपके कर्म से मेरा क्या लेना देना है या नही और वो कौन सा कर्म है जो आप हमसे अधिक बेहतर कर सकती/ सकते है ? या फिर दोनों को ही जब तक एक दुसरे के कर्म की जरूरत महसूस होगी। अगर मान लीजिये मुझे हुआ सामने वाले के कर्म की जरूरत और सामने वाले को मुझमे कोई ऐसा कर्म दिखा ही नही देता, फिर एक तरफा प्रेम हो गया।
बोलने किसी को अच्छा आता है क्या उस बोली से आपका कोई कार्य होगा अगर हो रहा है तो वो आपको चाहिए, नही हो रहा है और आप सिर्फ मोहित हो रही/रहे है।
इसको बोलते है रीझना तो मै चाह लू की कोई मुझसे प्यार करे ये संभव नही और आप चाह ले आपसे कोई प्यार करे ये भी सम्भव नही वास्तव में कर्म और एक दुसरे के कर्म की जरूरत एक पार्टनरशिप/प्रेम/कपल की उत्पति का कारक है यही असली है होना थोडा मुश्किल है हुआ समझ लीजिये मोक्ष मिला क्योंकि खुदा वही है।
वो गाना आपने सूना होगा तुझमे रब दीखता है तो वो भी सत्य ही है अब इसकी कोई मियाद नही है की कब होगा शादी से इसका कोई लेना देना नही सम्भोग से भी इसका कोई लेना देना नही।
समझने वाला एक गूढ़ रहस्य की कब आप अपने पार्टनर से उब नही सकते ?
जब कोई ऐसा गुण जो आप न तो सिख सकते हैं मगर उसमे रूचि रखते हो मगर उसको सिखने में आपकी कोई दिलचस्पी ही ना हो, तब आपको एक दुसरे में खुदा नजर आएगा जैसे ही ये हुआ समझो आप जीवन भर साथ रहने के लिए ही बने है आप जीवन को काट नही रहे बल्कि आनंद ले रहे हैं।
सम्भोग उचित और अनुचित कब ?
अब समझते है सम्भोग के उचित और अनुचित होने पर पिछले भाग में उसका वर्णन है की सम्भोग का क्या महत्व है नए दर्शक ऊपर का लेख पढ़कर समझ ले। मान लीजिये भविष्य में आपको किसी से प्रेम हो जाए और आपकी शारीरिक इच्छा की पूर्ति घर में हो रही हो फिर आप उससे सम्भोग तो नही ही करेंगे और अगर गलती से किसी पल में ऐसा हो भी गया।
तो वो पाप नही था फिर जिसके साथ हुआ क्या आपको उसने ब्लैक मेल किया ? या फिर आपको तंग करना शुरू कर दे तो वो दुर्योधन था। मगर उक्त व्यक्ति भी उस पल को भूलकर आगे निकल जाए और फिर से काम में लग जाए और उसे दुबारा न दोहराने की कोसिस करे फिर वो भी आपसे उतना ही प्रेम करता है। जितना की आप।
क्योंकि यहाँ पर एक और व्यवस्था है सामजिक और प्रेम है प्राकृतिक तो दोनों का आपस में टकराव से बचना चाहिए कुल मिलाकर शादी से पहले ही अपने पार्टनर की तलाश कर लेनी चाहिए जो आपके काम में सार्थक हो मगर ऐसा हो नही पाता है।
इतना ज्ञान उस उम्र में प्राप्त होता नही और कोई बतलाता भी नही।
इसलिए आजकल एक्स्ट्रा अफेयर का होने जैसी विसंगतिया हमे देखने को मिलती है। मगर वो प्रेम है जिसे समाज नही समझेगा और समाज ने ज्ञान के लिए जो गुरुकुल थे उसे बंद कर दिया फिर द्वंध होना लाजमी है।
शादी की सही उम्र क्या है और सही उम्र में शादी करने के फायदे क्या क्या है ?
शादी की सही उम्र वो है जब आप सीखना बंद कर देते हैं।
मतलब की अब आपको कोई नया काम सिखने में कठिनाई महसूस हो उदाहरण के लिए एक उम्र के बाद आप कार चलाना सीखिए थोडा कठिन होगा।
मगर 18 साल की उम्र में आप जल्दी सीखते हैं। तो मेरे ख्याल से शादी की सही उम्र 28 से 32 साल के बिच की होनी चाहिए।
जब मनुष्य कोई नया काम करना नही चाहता। सीखता है मगर अपने रूचि के अलावा कुछ भी नही। अब इससे उम्र का क्या लेना देना है ? तो ऊपर की लाइनों में पार्टनरशिप और शादी में हमने क्या लिखा है की आप जब एक दुसरे का गुण आयात कर लेते हैं तब एक दुसरे में आपको कोई ख़ास बात नजर नही आती।
मान लीजिये आपने 21 साल में ही शादी कर ली फिर क्या होगा ? फिर आप एक दुसरे से गुण सिखने का प्रयास करेंगे जैसे ही आपने सिखा पार्टनर आपको सार्थक नही लगेगा फिर शादी के खत्म होने की प्रबल संभावना है।
जितने भी आजकल शादी टूटने के मामले सामने आ रहे हैं वो सब के सब लगभग 90% मामले कम उम्र में शादी का होना देखा गया है। ज्योति मौर्य हो या कोई और लगभग सभी मामलो में कम उम्र की शादी है।
सही उम्र में प्रेम को ढूंढ लीजिये या फिर व्यवस्था विवाह में भी एक दुसरे को जानना जरुरी है। व्यवस्था विवाह में भी प्रेम की उत्पति होती है क्योंकि हर मनुष्य में गुण और दुर्गुण पाए गए हैं और स्त्री आपके लिए खाना बनाये आपके बच्चे को संभाले और सारी घर की जिम्मेदारी उठा ले तो भी प्रेम संभव है। क्योंकि प्रेम की उत्पति जब कर्म से होती है फिर वो भी तो आपका कर्म कर रही है। जिसको करने में आप असहज है। कुल मिलाकर आप सही उम्र में अपना सही पार्टनर ढूंढ ले और शादी करे बाद बांकी आपको ये लेख कैसा लगा ? मुझे कमेंट कर बताये
शुभेन्दु प्रकाश 2012 से सुचना और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र मे कार्यरत है साथ ही पत्रकारिता भी 2009 से कर रहें हैं | कई प्रिंट और इलेक्ट्रनिक मीडिया के लिए काम किया साथ ही ये आईटी services भी मुहैया करवाते हैं | 2020 से शुभेन्दु ने कोरोना को देखते हुए फुल टाइम मे जर्नलिज्म करने का निर्णय लिया अभी ये माटी की पुकार हिंदी माशिक पत्रिका में समाचार सम्पादक के पद पर कार्यरत है साथ ही aware news 24 का भी संचालन कर रहे हैं , शुभेन्दु बहुत सारे न्यूज़ पोर्टल तथा youtube चैनल को भी अपना योगदान देते हैं | अभी भी शुभेन्दु Golden Enterprises नामक फर्म का भी संचालन कर रहें हैं और बेहतर आईटी सेवा के लिए भी कार्य कर रहें हैं |