किसी भी कार्य को करने के बाद उसका जब सही परिणाम आपको नही मिलता तब आपको मलाल होता है की ऐसा मैंने क्यों किया , ऐसा नही करना चाहिए आदि वही अफ़सोस आपको तब होता है जब आप कार्य सिद्ध ही नही करते , उदाहरण आज शादी ब्याह से लूंगा क्योंकि बियाह शादी का मौसम है :-
अफ़सोस :- हम फला के शादी मे नही गये हमको जाना चाहिए था !
मलाल :- क्यों गये उसके शादी मे साला कोई इंतजाम ढंग का नही था , लाख बुराई आप करते हैं उसके बारे में लेकिन मलाल आपको होता है उसको नही ।
ज्ञानी मनुष्य न तो अफ़सोस करते है, न मलाल । श्री भगवानुवाचः कार्य को सिद्ध करो और बुडे या अच्छे अंजाम पर अफ़सोस या खुस नही होना चाहिए अगर परिणाम बुडा है तो अच्छा कैसे होगा यह सोचो और अच्छा आया तो और अच्छा कैसे आप कर सकते हैं यह सोचिये, कुछ कार्यो को करके हम सीखते हैं की यह काम नही करना चाहिए और कुछ एक कार्यो को करके हम सीखते है की इस कार्य को और बेहतर हम कैसे कर सकते हैं !
जीवन मे अफ़सोस और मलाल जैसे शब्द आपके तरक्की का मार्ग रोक कर खड़े हो जाते है , आप सदैव अफ़सोस और मलाल मे ही उलझे रहते हैं ।
इसलिए जीवन मे अगर आगे की ओर बढना है तो आज से किसी भी कार्य के करने के पहले उसके फल या अंजाम की चिंता करना बंद कीजिये सिर्फ पूरी लग्न और निष्ठा से कार्य को सिद्ध करने में जुट जाइए परिणाम पर मलाल या खुस होने की जरूरत नही और बेहतर परिणाम की खोज कीजिये या फिर उस कार्य मे क्या त्रुटी रह गई जो सिद्ध नही हुआ ।
अफ़सोस और मलाल के पन्ने को जिंदगी से फाड़ कर फेंक दे कल्याण हो जाएगा राधे राधे।