पटना: कोविड-19 की दूसरी घातक लहर को देखते हुए राज्य सरकार ने इसकी रोकथाम के लिए कई उपाय किए हैं। सरकारी प्रयासों में सहयोग देते हुए यूनिसेफ ने अपने पार्टनर एनजीओ, बिहार सेवा समिति, आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम (भारत) और घोघरडीहा प्रखंड स्वराज्य विकास संघ के सहयोग से 6 जिलों – सुपौल, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, पूर्णिया और सीतामढ़ी के ग्रामीण इलाकों में ‘सुरक्षाग्रह’ पहल शुरू की है जो लगभग 36 लाख आबादी को कवर करेगी।
तीनों भागीदारों के माध्यम से 600 से अधिक सुरक्षा प्रहरी (कम्युनिटी मोबिलाइज़र) लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए लगाए गए हैं। इसके लिए कोविड पर हल्ला बोल – खुद बचो, सबको बचाओ! की अपील जारी की जा रही है।
“ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 का तेजी से फैलता संक्रमण वाक़ई चिंताजनक है। बिहार का लगभग 89 फीसदी हिस्सा गांवों में रहता है। इनमें से लगभग 50 प्रतिशत बच्चे और किशोर-किशोरियां हैं, जो औरों के मुक़ाबले ज़्यादा असुरक्षित हैं। 19 साल से कम उम्र के बच्चों व किशोरों में बढ़ते संक्रमण के मद्देनज़र यह महत्वपूर्ण है कि इनके साथ-साथ ग्रामीण आबादी के पास अपनी सुरक्षा कैसे करें, क्यों और कैसे घर पर सुरक्षित रहें, समय पर स्वास्थ्य देखभाल और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं का लाभ कैसे उठाएं, इन सबके बारे में सही जानकारी के साधन उपलब्ध हों। सुरक्षाग्रह पहल का उद्देश्य सरकार और प्रमुख हितधारकों के साथ मिलकर बेहतर तैयारी, आपसी सहयोग और विश्वास के साथ कोविड महामारी और आगामी बाढ़ से मुस्तैदी से निबटने के लिए लोगों को व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर लामबंद करना है। बच्चों की सुरक्षा – चाहे भावनात्मक और मानसिक समस्याएं हों, पोषण, शिक्षा से जुड़ा मसला हो अथवा दुर्व्यवहार से सुरक्षा और उनकी समुचित भलाई हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है, ” नफीसा बिंते शफीक, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ बिहार ने कहा।
पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर के दौरान बच्चे बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं। बिहार स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 18 मार्च से 17 मई के बीच 0-19 आयु वर्ग के लगभग 45,000 बच्चे और किशोर-किशोरियां कोरोना से संक्रमित हुए हैं। यह राज्य के कुल कोविड-19 रोगियों का लगभग 11 प्रतिशत है। चूंकि आंगनवाड़ी केंद्र बंद हैं, इस कारण 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में काफ़ी गिरावट का अनुमान है। गंभीर कुपोषण से बच्चों का मानसिक विकास तो प्रभावित होता ही है, उनकी मृत्यु की संभावना 9-11 गुना बढ़ जाती है।
कोविड-19 के परिणामस्वरूप बच्चों के खिलाफ हिंसा का ख़तरा बढ़ने के अतिरिक्त अन्य समस्याएं जैसे लापता/बेसहारा बच्चे, प्रवासी संकट के दुष्परिणाम, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, बाल श्रम, तस्करी और कम उम्र में शादी में बढ़ोतरी हुई है। बाढ़ के दौरान भी बच्चों की सुरक्षा चिंतनीय हो जाती है।
इस संदर्भ में यूनिसेफ द्वारा एनजीओ भागीदारों के लिए एक ऑनलाइन उन्मुखीकरण कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रतिभागियों को जोखिम संचार और सामुदायिक जुड़ाव, मीडिया सहभागिता और प्रमुख प्रभावी व्यक्तियों के माध्यम से जागरूकता फैलाना, WASH (जल, सफ़ाई एवं स्वच्छता) से संबंधित गतिविधियाँ, बच्चों की पोषण सुरक्षा, बाल संरक्षण, बाढ़ की तैयारी और सुरक्षा, आदि प्रमुख गतिविधियों के बारे में उन्मुख किया गया।
कोविड-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल के पालन की चुनौतियों को देखते हुए बाढ़ की स्थिति के दौरान एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। ये टीमें समन्वित बाढ़ तैयारी योजना को तैयार करने से लेकर उसके सफल क्रियान्वयन में जिला प्रशासन और प्रमुख लाइन विभागों की सहायता करेंगी।
सोशल मोबिलाइजेशन नेटवर्क (SMNET) के साथ मिलकर सभी सहयोगी एनजीओ ने जिला प्रशासन, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और अन्य प्रमुख लाइन विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर काम करना शुरू कर दिया है। बाल संरक्षण संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए वे बाल संरक्षण संरचनाओं – ब्लॉक और सामुदायिक बाल संरक्षण समितियों, स्थानीय पुलिस के साथ भी समन्वय करेंगे। इस पहल के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं, जीविका, डीआरआर (आपदा जोखिम न्यूनीकरण) उत्प्रेरकों, धार्मिक-आध्यात्मिक गुरुओं, युवाओं, स्थानीय कलाकारों, मीडिया और अन्य हितधारकों से सभी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए उन्मुख करने के अलावा उनका समर्थन जुटाया जाएगा। मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन द्वारा हाल ही में एक सहयोगी एनजीओ को अपने ग्राम पंचायत स्वयंसेवकों के सहयोग से टीकाकरण कार्यक्रम के साथ-साथ एईएस के बारे में जागरूकता बढ़ाने में सहयोग करने के लिए कहा गया है।
सुरक्षा प्रहरी ऐसी सभी एजेंसियों के साथ समन्वय करेंगे। वे समुदाय और प्रभावशाली लोगों के साथ-साथ मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग के ज़रिए कोविड-19 से जुड़े पहलुओं, बच्चों की सुरक्षा व लिंग आधारित हिंसा के बारे में जागरूकता भी पैदा करेंगे।