जेंडर-रिपोर्टिंग के लिए परिवर्तनकारी दृष्टिकोण समय की मांग: बिहार यूनिसेफ़ राज्य प्रमुख
पटना. “समाज में जेंडर इक्विालिटी (लैंगिक समानता) को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी बनानेवाले से लेकर परिवार के सदस्यों तक सबकी बराबर की जिम्मेदारी है। हमें जेंडर सेंसिबल और जेंडर रेस्पांसिव अप्रोच से आगे बढ़कर जेंडर ट्रांसफॉर्मेटिव अप्रोच लाने की जरूरत है, जिसका मतलब है कि लैंगिक समानता की राह में समस्या के जड़ पर प्रहार करना और समाज में प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरूष, लड़का हो या लड़की, बिना भेदभाव उनकी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाना।” यह बातें यूनिसेफ बिहार चीफ नफीसा बिंते शफीक ने आज सोमवार को विभिन्न मीडिया हाउस के संपादकों, वरिष्ठ पत्रकारों, मीडिया स्टूडेंट्स और एनजीओ के साथ आयोजित एक वेबिनार में कहा। वेबिनार का आयोजन एनडब्ल्यूएमआइ (नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया) के बिहार चैप्टर, यूनिसेफ और यूएनएफपीए के संयुक्त तत्वावधान में ‘जेंडर इक्वल वर्ल्ड में मीडिया की भूमिका’ विषय पर किया गया।
कार्यक्रम में करीब 150 लोगों ने भागीदारी की। कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न मीडिया हाउस के संपादकों के साथ प्रस्तावित ऑनलाइन कार्यक्रम का उद्देश्य जेंडर इक्विलिटी और बेटियों के महत्व के विषय पर एक सार्थक संवाद करना था। जिससे जेंडर सेंसिटिव और जेंडर रिस्पांसिबल जर्नलिज्म को बढ़ावा दिया जा सके।
कार्यक्रम में हिंदुस्तान के स्थानीय संपादक विनोद बंधु, दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अश्विनी कुमार, उर्दू अखबार तासीर के संपादक डॉ. मोहम्मद गौहर, डीडी चेन्नई की पूर्व निदेशक रत्ना पुरकायस्था, प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार शशिभूषण कुमार समेत द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रतिनिधि ने मीडिया रिपोर्ट में महिलाओं और लड़कियों की आवाज और मुद्दों को प्रमुखता देने पर सारगर्भित चर्चा की। इस सत्र का संचालन जनसत्ता दिल्ली की पूर्व न्यूज एडीटर व एनडब्ल्यूएमआइ की सदस्य श्रीमति पारूल शर्मा ने किया।
श्री विनोद बंधु ने कहा कि 35 सालों में न्यूज रूम में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वो यह है कि अब महिलाओं से संबंधित खबरों की अब बाकायदा प्लानिंग होती है, विस्तृत चर्चा होती है और ऐसे कवरेज को प्रमुखता से स्थान दिया जाता है। श्री अश्विनी कुमार ने कहा कि दस साल पहले और आज के मीडिया कवरेज और सोच में काफी बदलाव आया है। मीडिया जगत में महिलाओं की भागीदारी में भी इज़ाफ़ा हुआ है। ये सकारात्मक बदलाव बेहतर भविष्य को लेकर उम्मीदें जगाती हैं। तासीर के डॉ. गौहर ने कहा कि कोविड के समय उनके अखबार ने पूरा एक पन्ना महिलाओं से संबंधित खबरों को समर्पित किया। प्रभात खबर के श्री शशि भूषण् ने कहा कि मीडिया कवरेज में पहले की अपेक्षा अब महिलाओ से संबंधित मुद्दों को प्रमुखता से स्थान दिया जाता है। रत्ना पुरकायस्था ने कहा कि अखबारों में महिलाओं से संबंधित सावन महोत्सव या किसी क्लब की खबरों पर तो कभी-कभी पूरा एक पेज कवरेज दिया जाता है, मगर उनकी उपलब्धियां उतनी प्रमुखता से स्थान नहीं पातीं।
कार्यक्रम में एनडब्ल्यूएमआइ, मुंबई और दिल्ली की सदस्य समीरा खान और डॉ. श्वेता सिंह ने हाल ही में किए गए एक रिसर्च स्टडी ‘लोकेटिंग जेंडर परस्पेक्टिव्स इन कोविड-19 रिपोतार्ज इन इंडिया’ के महत्वपूर्ण प्वाइंट्स, निष्कर्षों और अनुशंसाओं के बारे में पीपीटी प्रेजेंटेशन दिया। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों के घर वापसी के समय महिलाएं ज्यादातर तस्वीरों में ही दिखीं। यदि उनकी चर्चा भी हुई, तो किसी की पत्नी, बेटी और बहन के रूप में ही। कोविड के दौरान जहां 35 प्रतिशत पुरुषों ने अपनी जॉब खो दी, वहीं 70 प्रतिशत महिलाओं की नौकरी चली गई। यह आंकडा तो दिखा, मगर उनकी परेशानी, उनकी आवाज को न्यूज स्टोरी में शायद ही स्थान मिला।
पॉपुलेशन फर्स्ट की डायरेक्टर डॉ. ए एल शारदा ने देश व समाज में घटते लिंगानुपात पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कोविड व लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ गई। मगर पुलिस कोविड महामारी और लॉकडाउन से संबंधित कार्यो में ही व्यस्त रही, जिससे पीड़िताओं को न्याय पाने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।
स्वतंत्र पत्रकार, लेखिका व एनडब्ल्यूएमआइ की को-फाउंडर अम्मू जोसेफ ने हालिया रिपोर्ट ‘ग्लोबल मीडिया मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट-2020’ का हवाला देकर बताया कि हालांकि मीडिया में महिलाओं की संख्या बढ़ी है, फिर भी महिलाओं के प्रति हिंसा की खबरें अखबारों में बहुत कम ही प्रमुखता से स्थान बना पाती हैं।
यूएनपीआई की प्रोग्राम ऑफिसर अनुजा गुलाटी ने कहा कि मीडिया लैंगिक समानता और महिलाओं से संबंधित मुद्दों के कवरेज से न सिर्फ समाज में उनकी सकारात्मक छवि बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि समाज को राह भी दिखाता है। कार्यक्रम का संचालन यूनिसेफ की कम्यूनिकेशन स्पेशलिस्ट निपुण गुप्ता ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन एनडब्ल्यूएमआइ बिहार चैप्टर की संस्थापक सदस्य सुमिता जायसवाल ने किया।