गुलामी का असर क्या होता है? भारत को देख लीजिये। करीब हजार वर्षों तक विदेशी आक्रान्ताओं के कब्जे में जाते-छूटते रहे भारत में शासक (या शोषक) विदेशी था इसलिए कर यानि टैक्स न देना, चोरी नहीं एक किस्म की वीरता मानी जाती है। अब भारत काफी हद तक स्वतंत्र हो चुका है, सोच में पूरी तरह न सही लेकिन इतने वर्षों के मजहबी हमलों के वाबजूद पूरी तरह अपनी संस्कृति, अपने धर्म को भूला नहीं इसका श्रेय तो भारत और हिन्दुओं को मिलना ही चाहिए क्योंकि और तो कोई ऐसा कर नहीं पाया। इस स्वतंत्रता के बाद भी लोगों की समझ में ये नहीं आया कि अब शासक (या शोषक) विदेशी आक्रान्ता नहीं, यहाँ से पैसा ले जाकर कहीं विदेशों में नहीं पहुंचा रहे। तो टैक्स की चोरी अब भी होती है। छोटे स्तर पर देखंगे तो टैक्सी सर्विस में बिना पीले नंबर प्लेट वाली निजी गाड़ी को किराये पर चलाकर, ये हरकत बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, बंगाल और ओड़िसा इत्यादि में आराम से यात्रियों को दिख जाती है। निस्संदेह इसमें भी बिहार दूसरे राज्यों की तुलना में अव्वल ही होगा, बिहारी पीछे तो हो ही नहीं सकते।
इससे नुकसान क्या होता है? इससे टूरिज्म यानि पर्यटन का नुकसान होता है। जैसा कि केरल के कम्युनिस्टों ने कई वर्ष पहले ही अपने राज्य को “गॉड्स ओन कंट्री” घोषित करके किया, वैसा पर्यटन को बढ़ावा देने का कई वर्षों का अभ्यास तो बिहार को है नहीं। जो ट्रेवल ब्लॉगर या व्लोग्गेर (वीडियो ब्लॉगर) बिहार आते हैं, उन्हें अपनी यात्रा का खर्च कंपनी के खर्च की तरह दिखाना होता है। पटना से बाहर निकलते ही उनके लिए समस्या हो जाएगी। उन्हें दरभंगा-मधुबनी के इलाके में घूमकर मिथिला पेंटिंग दिखानी है, पुराने किले-अवशेष दिखाने हैं, लेकिन टैक्सी वाला जीएसटी बिल ही नहीं दे सकता क्योंकि उसने तो कभी ऐसा किया ही नहीं! शादी-वादी में किराये पर गाड़ी चलानी थी उसे, तो उसने जीएसटी लेने की कभी सोची नहीं, टैक्स न भरना बहादुरी भी थी, पैसे भी बच रहे थे। नुकसान ये हुआ कि ट्रेवल ब्लॉगर अगर दिखा ही नहीं रहे होंगे तो पर्यटक आएंगे क्यों? “जो दिखता है वही बिकता है” तो धंधे की, मार्केटिंग की आम कहावत है!
ये एक जगह दरभंगा-मधुबनी में दरभंगा राज या बलिराजगढ़ के किले दिखाने में ही नहीं होगा। रोहतास का किला भी इसी वजह से डीआईजी विकास वैभव के ब्लॉग पर तो होगा, लेकिन शेरशाह सूरी ने कौन सा किला लूटा था, वहाँ और कैसे मंदिर हैं, ये कोई नहीं दिखाएगा। मिथिलांचल की इकलौती जगह जो सहर्षा (अपभ्रंश होकर सहरसा बन गया जिला) के महिषी में है, वहाँ भी होगा। फिर कोई नहीं जानने वाला कि जिस मंडन-भारती मिश्र से आदिशंकराचार्य के हारने-जीतने की किम्वदंतियाँ सुनाई जाती हैं, वो बिहार में हैं। किसे पता चलेगा कि अद्वैत दर्शन की जो दो धाराएं होती हैं (विवरण और भामती) वो जिस भामती ग्रन्थ के कारण हैं, वो ग्रन्थ यहीं रचा गया? जिस न्याय-मीमांसा दर्शन की बात की जाती है, उसके करीब-करीब सभी बड़े आचार्य यहीं बिहार के थे, ये भी नहीं पता चलेगा, न ही कोई देखने आएगा। मगध नरेश जरासंध का सौतेला व्यवहार झेल रहे मिथिलांचल के लिए इस तरह कोढ़ में खाज की स्थिति बनी रहेगी। सीधे दरभंगा में एअरपोर्ट होने से संभावना थोड़ी बढ़ी तो है, लेकिन लगातार प्रचार के बिना भारत घूमने के लिए निकलने वालों तक ये जानकारी पहुंचानी तो होगी न?
पर्यटन के लिए लोग सिर्फ पहाड़ और समुद्र देखने नहीं जाते, बड़े शहरों की भाग दौड़ से दूर लोग फार्म हाउस पर खेती देखने भी तो जाते हैं? क्या ऐसे लोगों को पुर्णिया आदि क्षेत्रों में मखाने की खेती नहीं दिखाई जा सकती? जो सी-फ़ूड के लिए किसी बीच से लॉबस्टर, क्रैब या ओएस्टर दिखाते हैं, उन्हें मिथिलांचल में इचना, कंकोड़ या डोका क्यों नहीं बताया-चखाया जा सकता? हाँ, ये जरूर है कि उसके लिए बिहारियों को ही बताना होगा कि मगध नरेश जरासंध ने जो पटना नामक राजधानी बनाई हुई है, वहाँ से पुर्णिया करीब 300 किलोमीटर (लगभग 8-10 घंटे) दूर हो जाता है इसलिए बागडोगरा एअरपोर्ट आइये और वहाँ से डेढ़ घंटे में टैक्सी से पुर्णिया पहुंचा जा सकता है। इतनी सी समस्या सुलझ जाने से यात्री-पर्यटक की हर समस्या नहीं सुलझती। किसी हिल स्टेशन जैसे दार्जिलिंग-मसूरी इत्यादि में जहाँ टैक्सी वाले वर्षों से पर्यटकों से मिलते रहे हैं, वहाँ ड्राईवर को पहले से पर्यटकों के आम सवालों का पता होता है। जहाँ वो जा रहा है, उसके अलावा देखने को क्या कुछ है, ये वो जानना ही चाहेगा। बिहार के टैक्सी चालकों से पूछ लें कि यहाँ देखने लायक क्या-क्या है तो वो क्या करेगा? ठीक उल्टी हरकत करेगा। वो कहने लगेगा अरे यहाँ कुछ है कहाँ, यही खेती-पथारी थोड़ा बहुत हो जाता है। सरकार भी कुछ करती नहीं, बहुत बेरोजगारी है!
जो लोग ट्रेवल एजेंसी चलाते हैं, या थोड़ा बहुत भी धंधा देखा हो, उन्हें समझ में आ गया होगा कि इससे क्यूटीयापे भरा जवाब तो हो ही नहीं सकता। ठीक उल्टा जवाब है। अगर टैक्सी ड्राईवर पांच और घूमने लायक जगहें बता देगा, पर्यटक उनमें से एक-आध भी देखने चला जायेगा तो टैक्सी का बिल तो बढ़ेगा ही। टैक्सी वाला ज्यादा कमा पायेगा। एक तो इस बेवकूफी भरे जवाब से अपना धंधे का नुकसान किया, ऊपर से पर्यटक का मन भी खट्टा कर दिया। आपका रोना सुनने यहाँ कौन बैठा है? गरीबी बहुत है, सिर्फ थोड़ी खेती होती है, रोजगार भी नहीं, सरकार कुछ कर नहीं रही जैसी बातें सुनने के लिए पर्यटक घर से नहीं निकला था। वो तो रोजमर्रा की समस्याओं से थोड़ी दूरी बनाने निकला था, और उसके सामने वही रोना रोने बैठ गए जिसे अपने घर-शहर में वो रोज सुनता है। गजब की मूर्खता है यार! पर्यटक को बताना था तो चार अच्छी बातें बताई जाती हैं। घर की समस्याओं का रोना रोने किसी अतिथि के आगे नहीं बैठा जाता। उसे अच्छी बातें ही बताई जाती हैं, यथासंभव बुरी बातें छुपाई जाती हैं, या बहुत सॉफ्ट करके बताई जाती हैं।
पर्यटन के विकास का पहला अक्षर सोचते ही आपको इतना तो करना ही होगा। ध्यान रहे अभी हम केवल मूलभूत सुविधाओं की बात कर रहे हैं, जो पर्यटक के लिए जरूरी हैं। पर्यटकों और यात्रिओं को अपने राज्य की ओर मोड़ना है तो दस वर्षों तक तो प्रयास करने होंगे!