पटना: “हम राज्य भर में बाल देखरेख संस्थानों में रहने वाले 18 वर्ष से अधिक आयु के वैसे युवक-युवतियाँ जिनका कोई घर-परिवार या नाता-रिश्तेदार नहीं है की बेहतरी के लिए नीति और व्यवहार में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हाल ही में, हमने चाइल्ड केयर संस्थानों की 14 लड़कियों को आफ्टरकेयर कार्यक्रम के तहत होटल मैनेजमेंट में 1 साल का डिप्लोमा करने के लिए भेजा है। 18 वर्ष के बाद आश्रय घरों से निकलने के उपरांत हमारे युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो, इसके लिए हम इन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए अन्य विकल्पों को भी तलाश रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि हमारे बाल संरक्षण अधिकारीगण इस प्रशिक्षण का भरपूर लाभ लेंगे और सरकार के बाल संरक्षण कार्यक्रमों को और सशक्त बनाने में अपना सहयोग देंगे”।
श्री मंजीत कुमार, उप निदेशक, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार ने यूनिसेफ़ के सहयोग से राज्य बाल संरक्षण सोसाइटी द्वारा पटना और गया जिलों के बाल संरक्षण कार्यकारियों के लिए आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में उक्त बातें कहीं। उदयन केयर, दिल्ली ने विशेषज्ञ तकनीकी भागीदार संगठन के तौर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम में शिरकत की।
समाज कल्याण विभाग, यूनिसेफ बिहार समेत कई तकनीकी सहयोगियों के साथ मिलकर परिवार आधारित वैकल्पिक देखभाल कार्यक्रम को लागू कर रहा है। वर्तमान में, कुल 1960 बच्चे राज्य के विभिन्न बाल देखरेख संस्थानों (सीसीआई) में रह रहे हैं। दुर्भाग्य से, इन संस्थानों में रहने वाले कई बच्चों का अपना कहने वाला कोई नहीं है। माता-पिता, रिश्तेदार या अभिभावक विहीन ऐसे कई बच्चों को कोई गोद भी नहीं लेता जिसकी वजह से उन्हें 18 साल की आयु में सीसीआई छोड़ने की स्थिति में स्वयं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को दूर करने के लिए राज्य सरकार, गुणवत्ता संस्थागत देखभाल के साथ-साथ ऐसे युवाओं के गैर-संस्थागत देखभाल पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।
यूनिसेफ और अन्य सहयोगियों के सहयोग से उदयन केयर द्वारा संचालित ‘बियॉन्ड 18 लीविंग चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस’ नाम से 2019 में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक स्वतंत्र जीवन जीने के लिए इन युवाओं के सामने अनेकों चुनौतियाँ होती हैं क्यूंकि इन्हें उसके लिए तैयार नहीं किया गया है। इसमें पाया गया कि भारत में हर साल 39% केयर लीवर (वे बच्चे जिन्हें 18 वर्ष की आयु तक चाइल्ड केयर संस्थानों में रहने के बाद समाज में बिना किसी सहारे के जीवन जीना होता है) बिना किसी आश्रय के सीसीआई छोड़ देते है, इनमें से 61% को घोर भावनात्मक कष्ट से गुज़रना पड़ता है। अगर शिक्षा की बात करें तो 40% ने या तो अपनी पढाई बीच में ही छोड़ दी या उन्हें कोई स्कूली शिक्षा नहीं मिल सकी। फिर, रोज़गार के अभाव में सबसे बड़ा संकट जीवनयापन का होता है; 48% के पास कमाई का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है। इतना ही नहीं, लगभग 70% के पास उनके करियर और भविष्य की योजना बनाने में मार्गदर्शन देने के लिए कोई वयस्क संरक्षक नहीं था।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे एक्ट 2015) की धारा 2 (5) के अनुसार, भारत में आफ्टरकेयर का अर्थ है- ‘वैसे युवा जिन्होंने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है पर इक्कीस के नहीं हुए हैं और समाज की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए संस्थागत देखभाल संस्थानों को छोड़ दिया है के लिए आर्थिक व अन्य तरह के सहयोग का प्रावधान हो। उदयन केयर की लीना प्रसाद के अनुसार, आफ्टरकेयर को एक तैयारी के चरण के रूप में देखा जा सकता है। इसके दौरान ऐसे युवा वयस्कों को वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण, कैरियर के विकास के लिए हैंडहोल्डिंग, भावनात्मक समस्याओं से निजात पाने के लिए परामर्श और अन्य उपाय प्रदान किए जाते हैं जो उनकी सामाजिक मुख्यधारा से जुड़ने की प्रक्रिया में योगदान करते हैं। यह संस्थागत बच्चों की देखभाल के सिलसिले में अंतिम चरण है जो समाज में उनके सुचारू सुदृढ़ीकरण और पुनर्वास को सुनिश्चित करता है।
यूनिसेफ बिहार की बाल संरक्षण अधिकारी गार्गी साहा ने कहा कि 2019 के अध्ययन के निष्कर्षों से स्पष्ट है कि बाल देखरेख संस्थानों को छोड़ने पर बच्चों को संक्रमण काल के दौरान एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम की आवश्यकता होती है। इसे देखे हुए ‘आफ्टरकेयर’ की भूमिका काफी अहम हो जाती है। चूँकि भारत में यह अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है, इसलिए बिहार राज्य में कार्य कर रहे बाल संरक्षण कार्यबल का आफ्टरकेयर के विभिन्न आयामों को लेकर क्षमता निर्माण बेहद महत्वपूर्ण है। इसी के मद्देनज़र प्रशिक्षण सत्र में राज्य में बाल संरक्षण नीति, ट्रांजीशन योजना और आफ्टरकेयर से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को विशेष रूप से शामिल किया गया है।
प्रतिभागियों ने इस प्रशिक्षण को बहुत रोचक और जानकारीपूर्ण पाया। पटना स्थित गायघाट के राजकीय उत्तर रक्षा गृह की अधीक्षक वंदना गुप्ता ने कहा कि हमें इस ट्रेनिंग के ज़रिए आफ्टरकेयर की बारीकियों को जानने-समझने के अलावा विदेशों में इससे संबंधित कई सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में भी जानकारी मिली। प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त जानकारियों को हम सभी निश्चित रूप से अपने कार्यप्रणाली में ताकि सीसीआई छोड़ने के बाद हमारे बच्चों के लिए गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण व रोजगार के अवसरों की गारंटी सुनिश्चित की जा सके।
दो दिवसीय प्रशिक्षण में पटना और गया जिले के सभी बाल संरक्षण संस्थान और आफ्टरकेयर अधिकारी, जिला बाल संरक्षण अधिकारी, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष/सदस्य और स्टेट चाइल्ड प्रोटेक्शन सोसाइटी के अधिकारी शामिल हुए।