जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 13 अगस्त ::

कोई भी रचनाकार की महत्ता उनके सामग्री से नहीं, अपितु उनके संदेश से होता है। रचनाकार का संदेश ही उन्हें महान बनाता है।

यह बातें पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय डीन प्रो. छाया सिन्हा ने कहीं।

जेडी वीमेंस काॅलेज के हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित तुलसीदास जयंती समारोह के अवसर पर उनके जीवन आधारित नाट्य मंचन समारोह को संबोधित कर रहे थी। उन्होंने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास भारतीय संस्कृति के अनन्य पुजारी थे।

उनके कार्यों को कभी नहीं भुलाया नहीं जा सकता है। वह कभी भी परंपराओं का अंधाधुन अनुकरण नहीं किया है।

वह हमेशा लोकभाषा का अनुकरण किया है।

मुख्य अतिथि प्रो. श्रीकांत सिंह ने कहा कि तुलसीदास का प्रारंभिक जीवन काफी दयनीय रहा है। वह संसार में आने के साथ ही घर से निकाला हो गए थे।

इसके बाद नरहरिदास ने उन्हें रामबोला से तुलसीदास बनाया।

समीक्षक कुमार विमलेंदु ने कहा कि तुलसीदास के चौपाई पर भले ही विवाद हो रहा है, यह महज राजनीतिक है।

पढ़ने-पढ़ाने वाले के पास कोई विवाद नहीं होने चाहिए।

कॉलेज की प्राचार्या प्रो. मीरा कुमारी ने कहा कि तुलसीदास ने समाज में फैले कुरुतियों को दूर करने की कोशिश करते रहे है।

विभागाध्यक्ष डाॅ. रेखा मिश्रा ने कहा कि तुलसीदास का यश हमेशा गतिशील रहा है।

रामचरितमानस को हर घर में होना चाहिए।

नाट्य मंच का आरंभ प्रिया कुमारी के शिव तांडव नृत्य से हुआ।

नाट्य मंचन में तुलसीदास का रत्नावली से विक्षोह का दृश्य देखकर छात्राएं व शिक्षकों आंखों आंसू आ गए।

बाद रामबोला से तुलसीदास के नामाकरण दृश्य का मंचन किया गया।

कार्यक्रम का संचालन प्रगति ने किया।

कार्यक्रम में विभाग की कॉलेज की प्राक्टर डा. वीणा अमृत, शिक्षिका डा. स्मृति आनंद, डाॅ. स्वाति, मिनाक्षी गुप्ता, डा. सीमा कुमारी, डा. ब्रजवाला शाह आदि भी शामिल थी।
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