आदिपुरुष पर चर्चा करते समय सनातनी सिद्धांत याद रखिये। किसी भी चीज में सिर्फ नुकसान हो, या सिर्फ फायदा हो, ऐसा नहीं होता। कम-ज्यादा मात्रा में हानी-लाभ हर घटना, हर वस्तु, हर विचार इत्यादि में होंगे ही। हो सकता है कि आपके हिसाब से फिल्म का एनीमेशन स्तरीय नहीं लग रहा, इससे ज्यादा अच्छा तो रामानंद सागर वाली रामायण में तीरों को टकराते देखना होता। ऐसा भी हो सकता है कि एनीमेशन में जो वानर दिखाए गए हैं, वो रीछों जैसे लगें। कोविड-19 की वजह से जो लॉकडाउन हुआ उसमें भारत के एक बड़े दर्शक वर्ग ने “प्लेनेट ऑफ एप्स” जैसी शृंखलाएं देख लीं हैं तो जिससे तुलना होगी, उसके सामने आदिपुरुष शायद ही ठहर पाए।

 

जब कलाकार दिख कैसे रहे थे, उसकी बात होगी तो अधिकांश भारतीय दर्शकों के लिए आज भी श्री राम मतलब अरुण गोविल, हनुमान जी मतलब दारा सिंह और श्री कृष्ण मतलब नीतीश भरद्वाज हो जाते हैं। ऐसे में मूछों वाले राम और बिना मूछों वाले हनुमान कहाँ जचेंगे? वही हाल रावण का होगा जो कि रावण कम और मुगलिया अधिक लग रहा है। इसमें गौर करने लायक बात ये है कि बांग्लादेश के कौमी लिबास (लुंगी) टाइप चार-खाने वाली धोती और हुलिए से वो जिस समुदाय विशेष का लगता है, उसका अवचेतन मन पर प्रभाव तो पड़ेगा ही। संभवतः फिल्म के ड्रेस डिज़ाइनर वगैरह छाम्पदायिक होंगे, तभी एक कौम को खलनायक, अपहरणकर्ता, पूजा-पाठ और यज्ञों का विध्वंस करने वाला बलात्कारी दिखाने का प्रयास किया है।

बुरी से आगे बढ़कर जो अच्छी बातें होंगी वो देखें तो दादी-नानी वाली पीढ़ी अब शहरों में कम है। रामायण-महाभारत की कहानियां जैसे हम लोग सुन लेते थे, वैसा आमतौर पर नहीं होता। फिल्म के एनीमेशन-स्पेशल इफ़ेक्ट और थ्री-डी वगैरह बच्चों को तो रोचक लगेंगे ही। आपको भले स्तरीय न लगें, लेकिन रामायण में बच्चों की रूचि जगा देने के लिए संभवतः ये प्रयाप्त होगा। ऊपर से ये तुलसीदास जी की रामचरितमानस पर नहीं बल्कि वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। संभव है कि कई लोगों को इसकी कथा हजम ही न हो! ऐसे में उन्हें भी मूल रामायण से पढ़कर देखना होगा कि सचमुच ऐसा लिखा था या बदलाव किये गए हैं?

मूल वाल्मीकि रामायण संस्कृत श्लोक और हिंदी-गुजराती इत्यादि अनुवादों के साथ दो भागों में गीता प्रेस से आती है। एक भाग का मूल्य करीब 400 रुपये छपा होता है। अगर आप इन्हें ले आयें तो पढ़कर तुलना करने का अवसर मिल जाएगा। हाल ही में बिबेक देबरॉय जी ने रामायण के क्रिटिकल एडिशन का अंग्रेजी अनुवाद किया है। ये तीन भागों में आती है और इसका मूल्य (तीनों भाग साथ लेने पर) करीब-करीब उतना ही आता है। बच्चों को तो आपने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल-कॉलेज में पढ़ाया होगा न? वो हिंदी-संस्कृत के बदले अंग्रेजी अधिक सहजता से पढ़ पाते होंगे। रूचि के कारण हो, कमियां ढूँढने के लिए हो, या फिर फिल्म में जो दिखाया, उसपर बच्चों के सवालों के उत्तर देने के लिए हो, घर में रामायण लाकर रख लेना अच्छा विकल्प होगा।

इसके अलावा अगर वाल्मीकि रामायण पढ़ेंगे तो आपका ध्यान जायेगा कि नालिवादी, क्षमा कीजियेगा, तथाकथित नारीवादी, अहिल्या-सूर्पनखा इत्यादि प्रसंगों पर जो मर्दवाद का झंडा उठाते हैं, वो मूर्खता है। जो कथित दलहित, मेरा मतलब तथाकथित दलित चिन्तक बताते हैं, वो भी सच नहीं। विदेशियों की फेंकी बोटियों पर पलने वाले वामीस्लामि गठजोड़ों के जो ब्राह्मण नामधारी रावण का श्री राम का पुरोहित बनना, या लक्ष्मण को रावण के पास शिक्षा लेने भेजने जैसी बातें बताकर एक पूरी पीढ़ी को बरगलाते रहे, वो भी स्वयं पढ़ लेने से नहीं कर पाएंगे। घर में ही सन्दर्भ जांचने को पुस्तक रखी हो, तो भी फुसला ले जाना कठिन होगा। यानि केवल पुस्तक ले आने भर से आपको अगली पीढ़ी को सनातनी बनाये रखने का लाभ हो जाता है।

 

बाकी के लिए “हर हर महादेव” नाम की इस मराठी फिल्म का पोस्टर देखिये। बाजीप्रभु देशपांडे की भूमिका में शरद केलकर का एक चित्र भी पूरे टीजर पर भारी पड़ सकता है, ये समझ में आता है।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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