कोविड-19 महामारी के दौरान प्रचलित शब्द ‘डिजिटल डिवाइड’ ने स्कूली शिक्षा में व्याप्त असमानताओं को बखूबी सामने लाने का काम किया। जहां निजी स्कूलों के छात्र-छात्राओ को ऑनलाइन शिक्षा के लिए आवश्यक स्मार्ट फोन, लैपटॉप एवं विश्वसनीय इंटरनेट जैसी सुविधाएं आसानी से उपलब्ध थीं, वहीं सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अपनी प्रतिकूल परिस्थिति के कारण डिजिटल डिवाइड का अधिक से अधिक खामियाजा भुगतना पड़ा।
लॉकडाउन की अवधि में यूनिसेफ के सहयोग से बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने डिजिटल डिवाइड को दूर करने और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के नुकसान की भरपाई के लिए कई उपाय किए थे। इस दिशा में नवीं से बारहवीं कक्षा के छात्रों के लिए डीडी बिहार पर प्रसारित ‘मेरा दूरदर्शन मेरा विद्यालय’, ई-लॉट्स (शिक्षकों और पहली से बारहवीं के बच्चों की ई-लाइब्रेरी), उन्नयन ऐप: मेरा मोबाइल मेरा विद्यालय के माध्यम से 9वीं से 12वीं कक्षा के बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन आदि कुछ प्रमुख पहल थीं।

डिजिटल डिवाइड को पाटने में कारगर टैबलेट प्रोजेक्ट
शिक्षा विभाग और एक स्थानीय एनजीओ के साथ साझेदारी कर यूनिसेफ द्वारा फरवरी 2022 में आकांक्षी जिला पूर्णिया में शुरू किया गया टैबलेट प्रोजेक्ट एक और उल्लेखनीय पहल है। यूनिसेफ द्वारा उपलब्ध कराए गए टैबलेट को पार्टनर एनजीओ, रोहिणी साइंस क्लब द्वारा जिला के तीन प्रखंडों – कसबा, धमदाहा और भवानीपुर के 30 स्कूलों में वितरित किया गया है। इस प्रोजेक्ट से 1500 स्कूल जा रहे बच्चों एवं 500 स्कूल से बाहर के बच्चों (out-of-school children) समेत कुल 2000 बच्चों को फायदा मिल रहा है। वर्तमान में प्रत्येक ब्लॉक में 600 से अधिक बच्चे इन टैबलेट्स का उपयोग कर रहे हैं। कम लागत वाले टैबलेट में उपयुक्त शैक्षिक सामग्री अपलोड की गई है।

यूनिसेफ बिहार की शिक्षा विशेषज्ञ पुष्पा जोशी के मुताबिक़ टैबलेट पहल की परिकल्पना मुख्य रूप से वंचित वर्ग के स्कूल जाने वाले और स्कूल न जाने वाले बच्चों की सीखने की जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई है। इसके तहत एक कुशल शिक्षण प्रणाली प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है जिससे उनकी सीखने की क्षमता और समग्र शैक्षिक प्रदर्शन में गुणात्मक सुधार हो सके। इसे बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को जारी रखने और उनके सीखने संबंधी जरूरतों के समुचित प्रबंधन हेतु डिज़ाइन किया गया है। शुरुआत में स्कूल से बाहर के बच्चों को एफएलएन (Foundational Literacy and Numeracy – मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता) सामग्री दी गई जिससे उनकी सीखने की क्षमता बढ़ाने में मदद मिली। इसके बाद उन्हें पाठ्यसामग्री से लैस टैबलेट दिए गए।
उन्होंने आगे कहा कि लिटरेसी इंडिया द्वारा तैयार किए गए टैब सॉफ्टवेयर का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए नोडल शिक्षकों और फैसिलिटेटर्स सहित परियोजना के सभी सदस्यों को प्रशिक्षण दिया गया। इसके अलावा, टैबलेट सामग्री को पाठ्यपुस्तक के अध्यायों के साथ जोड़कर कैसे पढ़ाया जाए, यह समझाने के लिए व्यावहारिक सत्र भी आयोजित किए गए।

टैबलेट परियोजना का कार्यान्वयन और सीखने के स्तर में सुधार
कसबा ब्लॉक अंतर्गत मध्य विद्यालय दोगच्छी में टैबलेट परियोजना के नोडल शिक्षक तौसीफ रजा ने बताया कि प्रत्येक टैबलेट में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक छात्रों के लिए अलग-अलग पाठ्य सामग्री है। जहां पहली से पांचवीं कक्षा के लिए विशेष रूप से विकसित ज्ञान तंत्र ऐप में गणित, हिंदी और अंग्रेजी की बुनियादी अवधारणाओं सहित कुछेक खेलकूद गतिविधियाँ शामिल हैं, वहीं छठी से आठवीं कक्षाओं के लिए विषयवार सामग्री उपलब्ध है। प्रत्येक अध्याय के अंत में बच्चों का समग्र परीक्षण करने के लिए मनोरंजक अभ्यास भी दिए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि बच्चे, खासकर लड़कियां टैबलेट के इस्तेमाल को लेकर बहुत उत्साहित हैं और बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार करती हैं। यह वाकई उत्साहवर्धक है कि बच्चों ने बहुत कम समय में टैबलेट का बखूबी इस्तेमाल करना सीख लिया है।
मध्य विद्यालय दोगच्छी की छठी की छात्रा बबिता कुमारी टैबलेट से पढ़ाई करने का मौका पाकर काफी खुश है। उसे टेबलेट में अपलोड गेम्स खेलना विशेष तौर पर पसंद है। अपनी अन्य सहपाठिनों की तरह वह टैबलेट का उपयोग करने के लिए अधिक उत्साहित रहती है क्योंकि उसके घर पर ऐसा कोई गैजेट नहीं है। साथ ही, वह टैबलेट जैसे उन्नत गैजेट को भलीभांति चलाने के लिए ज़रूरी तकनीकी जानकारी से भी परिचित हो रही है जिससे उसे आगे भी लाभ मिलेगा।
कसबा प्रखंड के मल्हरिया मध्य विद्यालय की नोडल शिक्षिका वंदना कुमारी ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि टैबलेट की वजह से बच्चे पढ़ाई में अधिक रुचि लेने लगे हैं और उनकी एकाग्रता में भी काफी सुधार हुआ है। पाठ्य-पुस्तकों और ब्लैकबोर्ड के ज़रिए बच्चों को बुनियादी अवधारणाओं और विषय सामग्री से परिचित करवाने के बाद 5-6 बच्चों का अलग-अलग समूह बनाकर उन्हें टैब का उपयोग कर उन्हीं विषयों को पढ़ने के लिए बैठाया जाता है। इस पूरक अभ्यास ने विद्यार्थियों को अपेक्षाकृत कम समय में बहुत आसानी से सीखने में मदद की है।
इसी स्कूल की आठवीं कक्षा की छात्रा मुस्कान कुमारी का कहना है कि टैबलेट ने उसकी कई तरह से मदद की है। व्याख्यात्मक तस्वीरों और चार्ट की मदद से वह गणित और विज्ञान के कठिन कॉन्सेप्ट्स को अच्छे से समझ पाती है। वह पाठ के अंत में दिए गए मूल्यांकन अभ्यास को भी काफी पसंद करती है जो उसके प्रदर्शन के त्वरित मूल्यांकन में मदद करता है। वह टैबलेट का उपयोग करके महामारी के दौरान स्कूल बंद रहने के कारण पिछली कक्षा की पढ़ाई के नुकसान की भी भरपाई करने में सक्षम हुई है।

टैबलेट प्रोजेक्ट से बच्चों के प्रदर्शन में सुधार
टैबलेट प्रोजेक्ट से बच्चों के प्रदर्शन पर क्या प्रभाव पड़ा है, इसका भी विधिवत आकलन किया गया है। इस बारे में यूनिसेफ बिहार के शिक्षा अधिकारी बसंत कुमार सिन्हा ने कहा कि स्कूल जाने वाले और स्कूल से बाहर के बच्चों के चुनिंदा सैंपल के साथ हिंदी और गणित के लिए बेसलाइन और एंडलाइन मूल्यांकन किया गया था। मूल्यांकन हेतु शिक्षा विभाग द्वारा तैयार क्वेश्चन बैंक का उपयोग किया गया तथा बेसलाइन व एंडलाइन आकलन के लिए औसत प्रतिशत की गणना की गई। हालांकि, मुख्य रूप से इस डेटा का उपयोग स्कूल जाने वाले बच्चों के स्कूल मूल्यांकन आंकड़ों के पूरक के रूप में किया जाता है, स्कूल से बाहर के बच्चों के संदर्भ में भी उनके सीखने में इस प्रोजेक्ट के प्रभाव को समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण डाटा स्रोत है।
स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए बेसलाइन और एंडलाइन असेसमेंट स्कोर की तुलना करने पर हिंदी और गणित दोनों विषयों के औसत प्रतिशत में वृद्धि देखी गई। हिंदी और गणित के लिए समग्र औसत प्रतिशत वृद्धि क्रमशः 30% और 37% रही। जहां तक स्कूल से बाहर के बच्चों का संबंध है, लड़कों की तुलना में लड़कियों द्वारा हिंदी और गणित के बेसलाइन और एंडलाइन, दोनों आकलन में बेहतर प्रदर्शन किया गया।
मल्हरिया मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजेश कुमार पासवान ने कहा कि इस परियोजना ने बच्चों को पढ़ाई के प्रति प्रेरित किया है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता भी इस पहल की बहुत सराहना कर रहे हैं। न केवल बच्चों की रुचि को ध्यान में रखकर तैयार कक्षावार पाठ्य सामग्री ने उनके सीखने के स्तर को बढ़ाया है, बल्कि स्कूल में उनकी उपस्थिति में भी सुधार हुआ है।
कुल मिलाकर, स्कूल जाने वाले बच्चे पूरे आत्मविश्वास से टैबलेट चलाने में सक्षम हुए हैं और पहले की तुलना में ज्यादा सार्थक तरीके से पाठ्य सामग्री को सीखने-समझने में दिलचस्पी ले रहे हैं। टैबलेट प्रोजेक्ट ने साबित किया है कि शिक्षा में प्रौद्योगिकी का विवेकपूर्ण एकीकरण कर अच्छे परिणाम लाए जा सकते हैं। इसके अलावा, स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ-साथ स्कूल से बाहर के बच्चों के लिए भी सीखने का सकारात्मक माहौल बनाया जा सकता है।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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