नायब को फिरसे ताज या हुड्डा की होगी वापसी
हरियाणा में नई सरकार के गठन के लिए एक ही चरण में दिनांक एक अक्टूबर को चुनाव कराने की घोषणा आयोग द्वारा कर
दी गयी है। बिगुल बजने के साथ ही पार्टी कायकर्ताओं और आम जनमानष पर चुनावी रंग चढ़ चुका है। दोनों राष्ट्रीय पार्टियां
पहले से ही चुनावी मोड में हैं। लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले ही नायब सिंह सैनी को प्रदेश मुख्यमंत्री के रूप में चुन
चुकी भाजपा ओ बी सी मतदाताओं को अपना कोर वोट बैंक के तौर पर और मजबूत करने का संकेत दे चुकी है। सैनी के
मुख्यमंत्री बनने के कारण खाली हुई प्रदेश अध्यक्ष के कुर्सी पर ब्राह्मण चेहरे मोहनलाल बड़ौली की सेनापति के रूप में तैनाती
करके भाजपा गैर जाट मतदाता समीकरण के साथ चुनाव में उतरने का मन बना चुकी है।
नए प्रदेश अध्यक्ष ने पदभार संभालते ही तुरंत कई नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति करके अपनी कोर टीम के साथ रण में
उतरने की तैयारी कर ली है। मुख्यमंत्री के रूप में तकरीबन सौ दिन के कार्यकाल में ही नायब सैनी जनता के साथ सीधे जुड़े
नजर आए। बम्पर घोषणाओं और लाभार्थी स्कीम के तहत हरियाणा सरकार लोकसभा चुनाव के बाद पूरे तरीके से सुर्खियों
में छाई रही। शिक्षकों की पक्की और कौशल रोजगार के माध्यम से बड़ी भर्ती कर चुकी सरकार ने विपक्ष के सामने नई
चुनौती पेश कर दी है।
लोकसभा चुनाव में बराबर की टक्कर देने के बाद विपक्ष भी विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री
भूपिंदर सिंह हुड्डा और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष उदयभान जहां पूरे प्रदेश के दौरे पर हैं वही सांसद दीपेंद्र हुड्डा 'हरियाणा मांगे
हिसाब' पदयात्रा करके एक तीर से दो निशाने साधने की जुगत में हैं। एक तरफ तो वह प्रदेश के मतदाताओं से सीधा संपर्क
साधकर भाजपा सरकार के विरुद्ध 'सरकार विरोधी लहर' का फायदा उठाना चाह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वह टिकट पाने की
होड़ में जुटे अपने समर्थकों का चुनावी वजन भी माप रहे हैं।
एस आर के गुट बिखर जाने के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव कुमारी सैलजा हुड्डा गुट के साथ एक नई समानांतर रेखा
खींचती हुई नजर आ रही हैं। भले ही सैलजा गुट का जनाधार हुड्डा गुट की अपेक्षा कम हो लेकिन सैलजा प्रदेश की राजनीति
में अपने चुनावी कदम पीछे खींच लेंगी इसकी सम्भावना फिलहाल काम ही नजर आ रही है। क्षेत्रीय पार्टियों के लिए इस बार
का विधानसभा चुनाव अग्निपरीक्षा के समान हो गया है। इनैलो और जजपा के लिए विधानसभा सीट का खाता खोलना
साख की लड़ाई बन गया है। गिनती की पांच-सात सीटों को छोड़ दिया जाए तो मतदाता लोकसभा चुनाव की भांति 'या तो
भाजपा या कांग्रेस' को चुनने के मूड में आ चुके हैं। कौन सी पार्टी मतदाताओं को ज्यादा रिझाने में कामयाब हो पाती है ये तो
मतगणना के बाद ही पता लगेगा।

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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