19 जून 2022, पटना। अनेकों कला-साधकों के प्रेरणा पुरूष,भारतीय संस्कृति के संवाहक, कीर्तिकाया तपस्वी बाबा योगेन्द्र जी की पुण्य स्मृति में पटना में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम बाबा योगेन्द्र जी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की गयी।संस्कार भारती के ध्येय गीत से श्रद्धांजलि सभा की शुरूआत हुयी। इसके पश्चात सुदीपा घोष के निर्देशन में नृत्य के माध्यम से बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित की गयीं। सर्वप्रथम संस्कार भारती बिहार प्रदेश के अध्यक्ष श्याम शर्मा ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इसके बाद क्रमशः विमल जैन, प्रो.किरण घई, विधायक अरूण कुमार सिन्हा, ख्याली राम जी, क्षेत्र संगठन मंत्री, विधायक संजीव चौरसिया, नागेन्द्र जी, क्षेत्र संगठन मंत्री, भीखू ढाई जी प्रदेश संगठन मंत्री, माननीय उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद, माननीय उपमुख्यमंत्री रेणु देवी, मोहन जी, वरिष्ठ प्रचारक ने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।
वक्ताओं ने बाबा योगेन्द्र जी के संस्मरण सुनाते हुए उनके विराट व्यक्तित्व से आमजनों को अवगत कराया। बाबा के अनवरत प्रयास से कला के अखिल भारतीय संगठन संस्कार भारती देश में 1500 सौ से ज्यादा इकाइयों के गठन में अपने को खपा दिया। बाबा का कार्यकर्ताओं से अपने परिजन जैसा आत्मिय जुड़ाव रहा।मितव्ययिता बाबा के जीवन के अभिन्न अंग था।
आधुनिक दधीचि : कलाऋषि बाबा योगेंद्र
गोरखपुर, प्रयाग, बरेली, बदायूँ, सीतापुर आदि अनेक स्थानों पर प्रचारक की भूमिका में बाबा योगेन्द्र जी ने संघ कार्य को नवीन विस्तार दिया। लेकिन उनके मन में एक सुप्त कलाकार सदा मचलता रहा। देश-विभाजन को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा था। संघ शिक्षा वर्ग में उन्होंने इस पर एक प्रदर्शनी बनाई। जिसने भी यह प्रदर्शनी देखी, वह अपनी आँखें पोछने को मजबूर हो गया। फिर तो ऐसी प्रदर्शिनियों का सिलसिला चल पड़ा। शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, माँ की पुकार, इत्यादि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया। ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शिनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली।
शीर्ष नेतृत्व ने उनकी इस प्रतिभा को देखकर 57 वर्ष की आयु में 1981 ई0 में ‘संस्कार भारती’ नामक संगठन का निर्माण कर उसका कार्यभार उन्हें सौंपा । उनके अथक परिश्रम से 38 वर्षों में संस्कार भारती आज कला क्षेत्र की अग्रणी संस्था बन चुकी है। स्वयं केंद्रित , प्रसिद्धि उन्मुख कला साधकों के मन में उन्होंने राष्ट्रीय गौरव बोध एवं मातृभूमि के प्रति निष्ठा जगाने में अहम भूमिका निभाई।
घनघोर परिश्रम की वजह से आज पूर्वोत्तर भारत की लगभग 80 से ज्यादा जनजातियों में “अपनी संस्कृति -अपनी पहचान” को स्थापित कर उन्होंने एक लंबी लकीर खींची है। परिणाम पिछले वर्ष प्रयाग कुम्भ में 6 हजार से ज्यादा (लगभग 1200 ईसाई) पूर्वोत्तर के कला साधकों ने अपनी सहभागिता की। अपने स्नेही स्वभाव से सुश्री लता मंगेशकर, पंडित जसराज, नाना पाटेकर, भीमसेन जोशी, अशोक कुमार, रामानंद सागर, मजरहुल सुल्तान पुरी, मुकेश खन्ना, अमोल पालेकर, अनुराधा पौडवाल, सुधीर फड़के, मधुर भंडारकर, सुभाष घई व अनूप जलोटा जैसे प्रख्यात कलासाधकों को वे संस्कार भारती के ध्येय से जोड़ने में सफलता प्राप्त की।
मोतियों जैसे उनके हस्तलिखित पत्रों को लोग श्रद्धा से संभालकर रखते हैं। कला जगत में विद्यमान प्रसिद्धि उन्मुख लालसा के बीच उनकी आत्मीयता,निश्छल व्यवहार, विशुद्ध प्रेम और प्रसिद्धि परांगमुख जीवन उनके दधीचि तुल्य जीवन को ही प्रतिबिंबित करता है।
श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद पंडित जगत नारायण पाठक जी ने भजन के द्वारा अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। भजन पर संगत कर रहे थे बिहार के वरिष्ठ तबला वाथक अर्जुन चौधरी जी। संस्कार भारती उत्तर बिहार प्रांत की अध्यक्ष रंजना झा जी ने भजन के माध्यम से अपनी श्रदांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संयोजन पारिजात सौरभ एवं जितेंद्र कुमार चौरसिया ने किया।