बिहार : थोड़े पुराने दौर और आज के दौर में अंतर की बात करें तो जनता की समस्याएँ भी थोड़ी बदल गई हैं। सहरसा के शहरी क्षेत्रों में भी बदलाव आये हैं। समय के साथ वाहनों की गिनती बढ़ी है तो उसके साथ ही ट्रैफिक जाम की समस्या भी आई। पीने का पानी जो पहले काफी कम खुदाई पर ही निकल आता था, उसके लिए भी अब अधिक खुदाई करनी पड़ती है। जलस्तर (वाटर टेबल) के नीचे जाने से हैण्डपंप-चापाकल लगाने का खर्च काफी बढ़ गया है। लोग भी अब हैण्डपंप से बिजली के मोटर की ओर बढ़ने लगे हैं। बिप्स (BIPS) कहलाने वाली तीन समस्याओं में सड़क और पानी के बाद अगर बिजली की बात करें तो आपको समस्या में फिर से बदलाव देखना पड़ेगा। बिजली के पुराने दौर में सबसे बड़ी समस्या थी, बिजली के न होने की समस्या।
समय बदला, केंद्र सरकार ने मोदी जी के नेतृत्व में गाँव-गाँव तक बिजली पहुँचाने की ठानी और इसके साथ ही जिन्होंने आजादी के सत्तर वर्षों में कभी बल्ब नहीं देखा था, उन गावों में भी बिजली के खम्भे और तार पहुँच गए। इतने से समस्या पूरी नहीं सुलझी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि खम्भे-तार पहुंचा देना अवश्य ही केंद्र सरकार के हाथ में था, मगर बिजली की आपूर्ति तो अब भी राज्य और स्थानीय शासन-प्रशासन के जिम्मे थी। स्थानीय लोगों ने इसी आपूर्ति में चतुराई दिखाई। पहले अगर वो दिन के बारह घंटे बिजली देते और बारह घंटे नहीं दे पाते थे, तो उसके तरीके में बदलाव कर दिया गया। पहले जो एक-दो घंटे या अधिक के लिए लगातार बिजली काटी जाती थी, उसे बंद कर दिया गया।
अब हर घंटे बीस-बीस मिनट के लिए बिजली कटती। दस बजे आई तो दस चालीस में कटेगी, फिर ग्यारह बजे बीस मिनट के लिए आएगी, फिर अगले बीस मिनट गुल होगी। इस तरह हर घंटे 20 मिनट की कटौती से कुल 8 घंटे बिजली अब भी गायब हो, तो उसका पता कम चलता है। ऐसा लगता है कि पंद्रह-बीस मिनट में तो आ ही जाती है, अधिक कहाँ कटती है? जबकि असल में अब भी सत्ताधारियों के दावों जैसा चौबीस घंटे बिजली नहीं है। असल में बारह घंटे से थोड़ा ही अधिक, सोलह घंटे की आपूर्ति में ऐसे में लगने लगता है कि बिजली तो लगातार मिल ही रही है। बीच में थोड़ा पंद्रह-बीस मिनट को कटती है! बिजली की व्यवस्था के निजीकरण के साथ कुछ सुधार हुए तो कुछ और नई समस्याएँ भी आयीं।
ऐसी एक नयी समस्या थी बिजली का बढ़ता हुआ बिल! दिल्ली की ही तरह कई राज्य जब 200 से 300 यूनिट फ्री बिजली दे रहे हैं, उस समय भी बिहार जैसे राज्य में जहाँ गरीबी 50 प्रतिशत से अधिक है, बिजली बिलों में कटौती करने के बदले दाम बढ़ाये जा रहे हैं। बिहार उन राज्यों में से एक है जहाँ प्रति यूनिट बिजली की कीमतें सबसे अधिक हैं। जो इलेक्ट्रॉनिक प्रीपेड मीटर लगाया जा रहा है, उसपर भी उपभोक्ताओं को संदेह है कि वो बिल अधिक दर्शाता है। इसके अलावा व्यापारी वर्ग में प्रीपेड मीटर का किराया बढ़ाए जाने को लेकर भी रोष है। इस तरह पुराने दौर में जहाँ केवल बिजली का न होना समस्या थी, नए दौर में बिजली बिल का अधिक आना भी एक समस्या है।
बाकी मुश्किलों में भी मुस्कुराते रहना, बाढ़-सुखाड़ का सामना करते हुए भी शिकायत कम करना तो बिहार के लोगों की ही तरह सहरसा की जनता की भी आदत है। सह लेंगे थोड़ा!