स्वस्थ जीवन के लिए आहार विविधता पर बच्चों को शिक्षित करने में कारगर है पोषण वाटिका
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पुर्णिया नि०जी० संवाद दाता : जीवन के प्रारंभिक वर्षों में समुचित पौष्टिक आहार न मिलने से आवश्यक विटामिन और पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिससे किशोरावस्था सहित बाद के वर्षों में बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो जाती है। बिहार में बच्चों और किशोरों के पोषण की स्थिति बहुत उत्साहजनक नहीं है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, बिहार में पांच वर्ष से कम उम्र के 42.9% बच्चे बौनापन (stunting) का शिकार हैं तथा वेस्टिंग (ऊँचाई के अनुपात में कम वज़न) दर 22.9% है। एनीमिया की दर पर नज़र डालें तो 6-59 महीने आयुवर्ग के 69.4% बच्चों में खून की कमी से ग्रसित हैं। बड़े बच्चों की बात करें तो व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016-18) के मुताबिक़ जहां राज्य के 2 में से 1 किशोर/किशोरी (10-19 वर्ष) कुपोषित पाए गए, वहीं इसी आयुवर्ग के 28% बच्चे रक्ताल्पता का शिकार पाए गए। दुर्भाग्यवश, लड़कियों में कुपोषण और एनीमिया की दर सबसे अधिक पाई गई।
स्कूली उम्र के बच्चों में कुपोषण के लिए विभिन्न कारक ज़िम्मेदार हैं। इस संदर्भ में पोषण के महत्व एवं स्वस्थ आहार के बारे में जागरूकता की कमी एक महत्वपूर्ण कारण है। इसी समस्या को दूर करने के लिए बिहार सरकार के शिक्षा विभाग अंतर्गत एमडीएम निदेशालय और यूनिसेफ द्वारा पिछले साल ‘अंकुरण परियोजना’ नाम से एक संयुक्त पहल शुरू की गई। इसके तहत पूर्णिया और सीतामढ़ी जिले के 20-20 स्कूलों का चयन कर उनमें पोषण वाटिका की स्थापना की गई।
इसके तहत, फिया (PHIA-पार्टनरिंग होप इनटू ऐक्शन) फाउंडेशन ने स्कूल परिसर में पोषण वाटिका स्थापित करने से लेकर इसके रखरखाव हेतु स्कूल कर्मियों व बच्चों को जागरूक करने एवं क्षमता निर्माण में सहायता की। सामान्यतः, पोषण वाटिका को बच्चों में पोषण और बागवानी की समझ विकसित करने के लिए एक कारगर गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह साग-सब्जियों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों से जुड़ी जानकारियों के अलावा जंक फूड के हानिकारक प्रभावों के बारे में उनका ज्ञानवर्धन करने में भी मदद करता है।
प्रत्येक स्कूल में फिया द्वारा प्रधानाध्यापक और पोषण वाटिका हेतु नियुक्त नोडल शिक्षक को वाटिका के उपयुक्त मॉडल के बारे में जानकारी देने के साथ बुनियादी कृषि उपकरण जैसे खुरपी, कुदाल, स्प्रिंकलर आदि भी निःशुल्क उपलब्ध करवाए गए।
फिया फाउंडेशन के सहयोगात्मक कार्यों के बारे में बात करते हुए पूर्णिया जिले के कसबा ब्लॉक अंतर्गत आदर्श रामानंद मध्य विद्यालय, गढ़बनैली के प्रधानाध्यापक जलज लोचन ने कहा कि उन्होंने नोडल शिक्षक को प्रशिक्षित करने के लिए एक जीविका से संबद्ध VRP (ग्राम संसाधन व्यक्ति) की व्यवस्था की। वीआरपी के द्वारा विभिन्न मौसमों के अनुरूप उचित क्यारी निर्माण से लेकर, जैविक खाद के इस्तेमाल, सिंचाई एवं रखरखाव के बारे में नोडल शिक्षक एवं चयनित बच्चों को विधिवत जानकारी दी गई। इसी वर्ष मार्च में फिया द्वारा ज़िले के जलालगढ़ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में सभी 20 विद्यालयों के प्रतिनिधियों के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का भी आयोजन किया गया जिसमें कृषि वैज्ञानिकों द्वारा वर्मी-कम्पोस्ट बनाने सहित पोषण वाटिका के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। इसके अलावा सभी स्कूलों को मौसमी सब्जियों के बीज भी मुफ्त में दिए गए।
उन्होंने आगे कहा कि फिया के प्रतिनिधियों द्वारा अभिभावक-शिक्षक संगोष्ठी में पोषण वाटिका के फ़ायदों पर विशेष चर्चा कर अभिभावकों को जागरूक किया गया जिससे उन्हें अपने बच्चों के इस गतिविधि में शामिल होने पर जो थोड़ी-बहुत आपत्ति थी वह दूर हो गई। अब बच्चे नोडल शिक्षक की देखरेख में पोषण वाटिका का संचालन व रखरखाव स्वयं कर रहे हैं।
विद्यालय के आठवीं के छात्र एवं बाल संसद में जल एवं कृषि विभाग का प्रभार संभाल रहे अरविंद कुमार इस पहल से बेहद ख़ुश हैं। सुंदर और सुव्यवस्थित पोषण वाटिका की तरफ़ इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि “हालांकि हमारे स्कूल में पोषण वाटिका का प्रावधान था, लेकिन वह अच्छी स्थिति में नहीं था और काफी हद तक उपेक्षित था। दरअसल, यह हिस्सा लगभग बंजर भूमि में तब्दील हो गया था जिसके कारण इसका इस्तेमाल डंपिंग ग्राउंड के तौर पर किया जा रहा था। लेकिन यूनिसेफ और फिया फाउंडेशन के हस्तक्षेप से यह पूरी तरह से बदल गया है। पूरे क्षेत्र की सफाई करने के बाद ताजी मिट्टी से भराई की गई। बाल संसद के 10-15 सदस्यों को बगीचे की क्यारियां तैयार करने और मौसमी सब्जियां उगाने का काम सौंपा गया था। हमने जैविक खाद का प्रयोग कर फूलगोभी, पालक, पत्तागोभी, टमाटर, लाल साग, मूली, धनिया, मेथी आदि उगाया है। हमने कुछ औषधीय पौधे भी लगाए हैं। निराई-गुड़ाई से लेकर पौधों को पानी देने तक का काम हम खुद ही करते हैं। समय समय पर, हम अपने स्कूल में मध्याहन भोजन के लिए भी थोड़ी-बहुत सब्ज़ी की आपूर्ति कर पाते हैं।
अरविंद की बात को आगे बढ़ाते हुए उनकी सहपाठी एवं बाल संसद में उप जल और कृषि मंत्री खुशबू कुमारी ने कहा कि कई बच्चे जो पहले हरी सब्जियों, विशेष रूप से पालक और लाल साग का सेवन करने से हिचकते थे, अब उन्हें इन साग-सब्ज़ियों से कोई परहेज़ नहीं है। पोषक तत्वों के बारे में जागरूकता बढ़ने से ही यह संभव हो पाया है। इस पहल के ज़रिए हम बच्चों को प्रकृति से जुड़ने में मदद मिली है। इसके अलावा, हम सभी अपने माता-पिता से बात कर अपने घरों के अहाते में भी पोषण वाटिका लगाने के लिए प्रयासरत हैं।
यूनिसेफ बिहार के पोषण अधिकारी, संदीप घोष ने बच्चों के बीच पोषक वाटिका के प्रति उत्साह और अब तक हुई प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इस पहल का मक़सद बच्चों को आहार विविधता पर शिक्षित करना और ताज़ी हरी पत्तेदार सब्ज़ियों को रोज़ के खाने में शामिल करना है। बच्चे न केवल संतुलित आहार के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं बल्कि वे स्वस्थ आहार प्रथाओं को भी तेज़ी से अपना रहे हैं। विशेष रूप से, इस पहल में शामिल सभी 40 स्कूलों में मध्याहन भोजन के दौरान होने वाली खाने की बर्बादी में धीरे-धीरे कमी देखने को मिली है। इसके अलावा, इस पूरी प्रक्रिया में बच्चों की प्रत्यक्ष भागीदारी ने उनके अंदर स्वामित्व की भावना स्थापित करने में मदद की है और वे अपने साथी छात्र-छात्राओं को भी जागरूक कर रहे हैं। चूंकि, ये बच्चे कम उम्र में ही स्वस्थ पोषण आहार के महत्व को सीख रहे हैं, इसलिए वे अपने जीवन के बाद के चरणों में भी इसके प्रति सजग रहेंगे। साथ ही, वे अपने परिवार और समुदायों को भी संवेदनशील बनाकर चेंज एजेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं। हमें ऐसी जानकारी मिली है कि कई बच्चों ने अपने परिवार-समुदाय को जागरूक करना शुरू भी कर दिया है।
यह पहल राज्य के दो जिलों के चार प्रखंडों के चयनित 40 स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की गई है। जहां पूर्णिया जिला से कसबा और जलालगढ़ ब्लॉक शामिल हैं, वहीं सीतामढ़ी जिला के अंतर्गत रीगा और डुमरा ब्लॉक में यह पहल चल रही है। इस पहल को बच्चों ने खूब सराहा है। विशेष रूप से छठी से आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को बागवानी का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के साथ-साथ पोषक तत्वों व उनके महत्व के बारे में अधिक से अधिक जानकारी मिल रही है। बिहार सरकार द्वारा इस पहल को निकट भविष्य में राज्य के अन्य सरकारी स्कूलों में लागू करने की उम्मीद है।