विगत 15 वर्षों से गोविंदाचार्य लगातार ‘अविरल गंगा, निर्मल गंगा’ का विषय उठाते रहें हैं। वर्ष 2007 में हुई गंगा संस्कृति प्रवाह यात्रा से वे लगातार गंगा जी के विषय को उठा रहे हैं। गौरतलब है कि गंगा जी को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने में भी गोविंदाचार्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। और आज भी गंगा की अविरलता व निर्मलता के लिए जनजागरण अभियानों के माध्यम से सक्रिय भूमिका में हैं।
ज्ञात हो कि गत दशक में गंगा जी की दशा सुधारने के लिए प्रसिद्ध संतों सहित अन्य लोगों ने आत्मोत्सर्ग किया है। गंगा जी के लिए स्वामी निगमानंद जी का बलिदान 2011 में हुआ था। जबकि सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद डॉ जी.डी. अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी) का बलिदान अक्टूबर 2018 में हुआ। उनके बलिदान के बावजूद गंगा जी की अविरलता व निर्मलता का संकल्प आज भी हमारे सम्मुख है।
गोविंदाचार्य 2004 से स्वतंत्र रूप से राष्ट्रीय कार्यों में सक्रिय हुए थे। तब से भारतीय संस्कृति और भारत की भौगोलिक प्रकृति के अनुकूल व्यवस्था परिवर्तन का अलख जगा रहें हैं। जलवायु परिवर्तन के संकट ने उनके द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकृति केन्द्रित विकास’ की संकल्पना की अपरिहार्यता को अब अधिकाधिक लोग स्वीकारने की मनोदशा में आने लगे हैं। प्रकृति केंद्रित विकास को प्रचारित करने और नदियों की दशा का प्रत्यक्ष अनुभव लेने के लिए कोरोना काल के दो वर्षों में उन्होंने तीन नदियों का अध्ययन प्रवास किया। पहले राम तपोस्थली से लेकर गंगा सागर तक का अध्ययन प्रवास किया। उसके पश्चात अमरकंटक से अमरकंटक तक नर्मदा की परिक्रमा रूपी अध्ययन प्रवास किया। और अंत में विकासनगर से प्रयागराज तक यमुना जी का अध्ययन प्रवास किया। उन अध्ययन यात्राओं से प्राप्त अनुभवों को सरकार और समाज तक पहुंचाने के लिए दिल्ली में ‘ नदी संवाद’ नाम से दो आयोजन किये।
गंगा जी के दशा पर जनजागरण के लिए अब गोविंदाचार्य पदयात्रा करने का संकल्प लिए हैं। यह यात्रा 11 अक्टूबर 2022 को उत्तरप्रदेश में नरौरा (जिला बुलन्दशहर) से प्रारंभ होगी और 30 नवम्बर 2022 को कानपुर के पास बिठुर में समाप्त होगी। बीच में दिवाली पर्व के अवसर पर कुछ दिन का अवकाश होगा। यह पदयात्रा उत्तरप्रदेश के सात जिलों से जाएगी – बुलंदशहर, संभल, बदांयू, हरदोई, शाहजहांपुर, उन्नाव और क़ानपुर।