प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक

इस पृथ्वी पर रहने वाले मानवों की भलाई के लिए खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान को रोका जाना आज की आवश्यक आवश्यकता बन गया है। पूरे विश्व में ही आज खाद्य पदार्थों की बर्बादी बड़े स्तर पर हो रही है। इससे नागरिकों की खाद्य सुरक्षा पर भी एक गम्भीर प्रश्न चिन्ह लग गया है। यूनाइटेड नेशन्स के पर्यावरण कार्यक्रम के एक अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में 14 प्रतिशत खाद्य पदार्थों का नुक्सान खाद्य पदार्थों को उत्पत्ति स्थल से खुदरा बिक्री स्थल तक पहुंचाने में हो जाता है। इसके अलावा, अन्य 17 प्रतिशत खाद्य पदार्थों का नुक्सान इन्हें खुदरा बिक्री स्थल से उपभोक्ता के स्थल तक पहुंचाने में हो जाता है। खाद्य पदार्थों के इतने बड़े नुक्सान का वातावरण में उत्सर्जित हो रही कुल गैसों में 8 से 10 प्रतिशत तक का योगदान रहता है। आज खाद्य पदार्थों में इस भारी मात्रा में हो रहे नुक्सान का असर पूरे विश्व में रह रहे मानवों को खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने पर बहुत विपरीत रूप से पड़ रहा है एवं खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में लगातार हो रही कमी के चलते ही विश्व के सभी देशों में मुद्रा स्फीति की समस्या भी खड़ी हो गई है।

 

खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान की समस्या दिनों दिन बहुत गम्भीर होती जा रही है। यह केवल खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान से जुड़ा हुआ विषय नहीं है बल्कि इन पदार्थों के उत्पादन पर खर्च किये जाने वाले समय, पानी, खाद, श्रम, एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने हेतु लागत एवं अन्य स्त्रोतों के अपव्यय का गम्भीर विषय भी शामिल है। विभिन्न खाद्य पदार्थों के होने वाले अपव्यय एवं नुक्सान में एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने में खर्च होने वाले डीजल, पेट्रोल का भी न केवल अपव्यय होता है बल्कि वातावरण में एमिशन गैस को फैलाने में भी इसकी बहुत बड़ी भूमिका रहती है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करने वाली आपूर्ति चैन एवं इन खाद्य पदार्थों के कुल जीवन चक्र पर भी विपरीत असर पड़ता है। कुल मिलाकर खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान से सभी देशों पर ही हर प्रकार से बहुत विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

 

वर्ष 2014 में किए गए एक अध्ययन प्रतिवेदन के अनुसार खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं  नुक्सान से देश को भारी आर्थिक हानि भी होती है। इस प्रतिवेदन के अनुसार भारत को वर्ष 2014 में इस मद पर 92,156 करोड़ रुपए का आर्थिक नुक्सान हुआ था। न केवल खाद्य सामग्री के उत्पादन तक बल्कि खाद्य सामग्री के उत्पादन के बाद भी भारी नुक्सान होते हुए देखा गया है। भारत में इस नुक्सान का आंकलन वर्ष 1968 से किया जा रहा है एवं इस नुक्सान को नयंत्रित करने के प्रयास भी निरंतर किए जा रहे हैं परंतु उचित परिणाम अभी तक दिखाई नहीं दे रहे हैं। विशेष रूप से उत्पादन के बाद के नुक्सान को समाप्त करने के लिए आज सम्पूर्ण सप्लाई चैन को ही ठीक करने की जरूरत है। उचित स्तर पर अधोसंरचना के विकसित न होने के चलते भी अक्सर सब्ज़ियों एवं फलों का अधिक नुक्सान होते देखा गया है।

 

140 करोड़ नागरिकों की जनसंख्या वाले भारत जैसे एक विकासशील देश के लिए एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि के खाद्य पदार्थों का नुक्सान, बहुत भारी नुक्सान है, जो देश की आर्थिक प्रगति को भी सीधे सीधे ही प्रभावित कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार यदि खाद्य पदार्थों के इस नुक्सान को रोक दिया जाय तो देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी उच्छाल लाया जा सकता है एवं इससे अंततः नागरिकों की आय में वृद्धि हो सकती है।

खाद्य पदार्थों का अपव्यय एवं नुक्सान विभिन स्तरों पर होता है। सबसे पहिले तो किसान द्वारा विभिन्न प्रकार की फसलों की बुआई के समय से ही खाद्य पदार्थों का अपव्यय एवं नुक्सान प्रारम्भ हो जाता है। फिर फसल के पकने के बाद फसल की कटाई करने से लेकर फसल के उत्पाद को मंडी में पहुंचाने तक भी खाद्य पदार्थों का अपव्यय एवं नुक्सान होता है। मंडी से खुदरा व्यापारी तक उत्पाद को पहुंचाने पर भी नुक्सान होता है। इसके बाद खुदरा व्यापारी से खाद्य पदार्थों को उपभोक्ता तक पहुंचाने में भी नुक्सान होता है। हालांकि इस पूरी चैन में कोई भी व्यक्ति खाद्य पदार्थों में नुक्सान होने देना नहीं चाहता है परंतु फिर भी इसे रोक पाने में  असमर्थता सी महसूस की जा रही है।

 

खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान को रोकने हेतु सबसे पहिले तो अधोसंरचना को विकसित करने एवं सप्लाई चैन का अर्थपूर्ण उपयोग करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। कोल्ड स्टोरेज हालांकि बहुत बड़ी मात्रा में स्थापित किए जा रहे हैं परंतु यह अभी भी इनकी लगातार बढ़ रही मांग की पूर्ति करने में सक्षम नहीं हो पा रहे है। दूसरे, कोल्ड स्टोरेज को ग्रामीण इलाकों में भी स्थापित किए जाने की आज आवश्यकता है। नागरिकों को खाद्य पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान से अर्थव्यवस्था को होने वाले नुक्सान की जानकारी देकर उनमें इस सम्बंध में पर्याप्त जागरूकता लाने की भी जरूरत है। कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के साथ ही इन पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने के लिए अच्छे रेल एवं रोड मार्ग के साथ ही यातायात की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होना भी बहुत जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में ही फुड प्रॉसेसिंग इकाईयों की स्थापना भी की जानी चाहिए ताकि खाद्य पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने ले जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़े अथवा कम आवश्यकता पड़े।

 

कभी कभी आवश्यकता से अधिक पैदावार होने से भी किसानों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। आवश्यकता से अधिक पैदावार हो जाने से इन पदार्थों की कीमतें बाजार में बहुत कम हो जाती हैं जैसे, आलू, टमाटर, प्याज आदि फसलों के बारे में अक्सर देखा गया है। जिसके चलते किसान को बहुत नुक्सान होता है और वह इन फसलों को बर्बाद करने में ही अपनी भलाई समझता है। इस प्रकार की समस्याओं को हल करने के लिए केंद्रीय स्तर पर विचार किया जाना चाहिए एवं विभिन्न पदार्थों के उत्पादन की सीमा तय की जा सकती है ताकि देश में किस पदार्थ की जितनी आवश्यकता है उतना ही उत्पादन हो। और, इस प्रकार की फसलों की बर्बादी को रोका जा सके। कब, कैसे, कहां, कितनी मात्रा में किस फसल का उत्पादन देश में किया जाना चाहिए, इस पर गम्भीरता से आज विचार किये जाने की आवश्यकता है। ताकि, विभिन्न पदार्थों के अपव्यय एवं नुक्सान पर अंकुश लगाया जा सके।

 

खाद पदार्थों के नुक्सान का प्रभाव वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे उत्सर्जन (गैसों) के बढ़ने के रूप में भी देखा जा रहा है। यदि आवश्यकता के अनुरूप ही खाद्य पदार्थों का उत्पादन होने लगे और खाद्य पदार्थों के नुक्सान एवं अपव्यय को पूर्णतः रोक लिया जाय तो देश को होने वाले आर्थिक नुक्सान को कम करने के साथ ही वातावरण में उत्सर्जन (गैसों) की मात्रा भी कम की जा सकती है।

By MINIMETRO LIVE

Minimetro Live जनता की समस्या को उठाता है और उसे सरकार तक पहुचाता है , उसके बाद सरकार ने जनता की समस्या पर क्या कारवाई की इस बात को हम जनता तक पहुचाते हैं । हम किसे के दबाब में काम नहीं करते, यह कलम और माइक का कोई मालिक नहीं, हम सिर्फ आपकी बात करते हैं, जनकल्याण ही हमारा एक मात्र उद्देश्य है, निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने पौराणिक गुरुकुल परम्परा को पुनः जीवित करने का संकल्प लिया है। आपको याद होगा कृष्ण और सुदामा की कहानी जिसमे वो दोनों गुरुकुल के लिए भीख मांगा करते थे आखिर ऐसा क्यों था ? तो आइए समझते हैं, वो ज़माना था राजतंत्र का अगर गुरुकुल चंदे, दान, या डोनेशन पर चलती तो जो दान देता उसका प्रभुत्व उस गुरुकुल पर होता, मसलन कोई राजा का बेटा है तो राजा गुरुकुल को निर्देश देते की मेरे बेटे को बेहतर शिक्षा दो जिससे कि भेद भाव उत्तपन होता इसी भेद भाव को खत्म करने के लिए सभी गुरुकुल में पढ़ने वाले बच्चे भीख मांगा करते थे | अब भीख पर किसी का क्या अधिकार ? आज के दौर में मीडिया संस्थान भी प्रभुत्व मे आ गई कोई सत्ता पक्ष की तरफदारी करता है वही कोई विपक्ष की, इसका मूल कारण है पैसा और प्रभुत्व , इन्ही सब से बचने के लिए और निष्पक्षता को कायम रखने के लिए हमने गुरुकुल परम्परा को अपनाया है । इस देश के अंतिम व्यक्ति की आवाज और कठिनाई को सरकार तक पहुचाने का भी संकल्प लिया है इसलिए आपलोग निष्पक्ष पत्रकारिता को समर्थन करने के लिए हमे भीख दें 9308563506 पर Pay TM, Google Pay, phone pay भी कर सकते हैं हमारा @upi handle है 9308563506@paytm मम भिक्षाम देहि

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