बिहार (सहरसा) : जहाँ 20 साल का “विकास” 2 घंटे की बारिश भी नहीं झेल पा रहा!बिहार (सहरसा) : जहाँ 20 साल का “विकास” 2 घंटे की बारिश भी नहीं झेल पा रहा!

बिहार (सहरसा)  : “विकास” 20-25 साल का कैसे है? वो ऐसे है कि नगर-परिषद से उत्क्रमित होकर नगर निगम हो गए सहरसा में “सरकार” तो बदली ही नहीं है! ये समझना कोई “राकेट साइंस” नहीं कि जो एक व्यक्ति, एक समुदाय के लिए फायदे की बात हो, वही दूसरों के लिए घाटे का सौदा भी हो सकती है। बारिश के साथ भी वैसा ही है। ग्रामीण आबादी के लिए बारिश का होना ख़ुशी की खबर है, जबकि शहरी क्षेत्र में अगर पानी के निकास की व्यवस्था न हो, तो वही बारिश आफत

 

बन जाती है।

हाल ही में सहरसा नगर के क्षेत्र में कुछ पंचायतों को जोड़कर उसे निगम बनाया गया है। पहले यहाँ सिर्फ 40 वार्ड थे, जिनकी संख्या भी अब बढ़ गयी है।

सहरसा नगर निगम के उत्तर में बिहरा, दक्षिण में सिरादेयपट्टी, पूरब में तीरी और पश्चिम में बरियाही स्थित है। सभी 46 वार्डों के गठन की सूचना नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी, एवं सत्तरकटैया व कहरा के अंचलाधिकारी द्वारा इसे सार्वजनिक कर दिया गया है। उत्क्रमित नगर निगम में पूर्व के 40 वार्डों को जनसंख्या के आधार पर 34 वार्ड में विभाजित किया है, जबकि शामिल किए सुलिदाबाद, पटुआहा, नरियार, शाहपुर, भेलवा एवं सुखासन पंचायतों को मिलाकर 12 वार्ड बनाया है। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित मानक औसत आबादी 4706 के लिहाज से पूर्व के कई वार्डों का आकार बढ़ाया गया है, जबकि कुछ का दायरा कम भी किया गया। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर इस उत्क्रमित नगर निगम की आबादी दो लाख 16 हजार 491 है। इसमें 21 हजार 212 अनुसूचित जाति और 425 अनुसूचित जनजाति के लोग शामिल हैं।

आबादी के बढ़ते आकार और क्षेत्रफल बढ़ने के साथ शहर को कई बदलावों की जरूरत थी। इनमें से सबसे प्रमुख थी सड़कों और नालियों की व्यवस्था। नालियों के बिना सड़कों पर आने वाला पानी, निकलता कहाँ से? जो खाली पड़ी जमीनें थीं, गड्ढे थे, वो मकानों के बनने के साथ-साथ भरने लगे। बारिश के थोड़ी देर बाद पानी बहकर उन गड्ढों में नहीं जा सकता। शहर के निवासी बताते हैं की 20 वर्ष पहले तक शहर के मुख्य थाने के आस पास गड्ढा होता था। नया बाजार इत्यादि का इलाका हो या पुराने गैस गोदाम और पोलिटेक्निक के आस पास का क्षेत्र, काफी सारी खाली जमीन होती थी। बारिश के बाद बहकर पानी निचले इलाकों, खाली जमीन में चला जाता और लोगों को कोई परेशानी नहीं होती थी।

जैसे जैसे शहर में आबादी बढ़ी, आस-पास के गावों से लोग आकर शहरों में बसने लगे, तो उसके साथ ही सड़कों और नालियों की व्यवस्था भी दुरुस्त की जानी चाहिए थी। अफ़सोस कि ऐसा कुछ भी हुआ नहीं। कुछ बड़े लोगों के घरों के आस-पास और नगर के एक-आध हिस्सों की बात छोड़ दें तो सड़कें और नालियाँ, दोनों नदारद हैं। कुछ पीसीसी (ढालकर) सड़कें बनी हैं लेकिन उनकी फिनिशिंग में कमी होने और नालियों के न होने से उनपर पानी जमता है और मामूली बरसात में ही लोगों के लिए बड़ी समस्या हो जाती है। इसके अलावा ढलाई करके बनाई गयी सड़कों में पानी के इस पार से उस पार जाने की कोई व्यवस्था नहीं होती। इसकी वजह से भी सड़क के एक ओर पानी जमा रहता है, बहकर निकल नहीं पाता।

नगर निगम बनने के बाद सहरसा में चुनावों की घोषणा हो गयी है। तीस के लगभग उम्मीदवार भी मैदान में उतर आये हैं। अब सवाल ये है कि क्या जनता वोट मांगने आये उम्मीदवारों से ये पूछेगी कि अगर उन्होंने सत्ता में परिवर्तन किया तो क्या नए उम्मीदवार कोई परिवर्तन भी लायेंगे?

बिहार (सहरसा) : जहाँ 20 साल का “विकास” 2 घंटे की बारिश भी नहीं झेल पा रहा!
बिहार (सहरसा) : जहाँ 20 साल का “विकास” 2 घंटे की बारिश भी नहीं झेल पा रहा!

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

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