जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 08 अगस्त, 2024 ::

पुराणों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि जहां-जहां ज्योतिर्लिंग है, वहां स्वयं देवाधिदेव महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। यह भी मान्यता है कि 12 ज्योतिर्लिंग का नाम जप के रूप में करते रहने से पिछले सात जन्मों के पाप से मुक्त होकर मोंक्ष पाया जा सकता है।

श्रीराम ने, युद्ध में सफलता और विजय के बाद कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए भगवान शिव की आराधना की और समुद्र किनारे की रेत से शिवलिंग का निर्माण अपने हाथ से किया था। भगवान शिव स्वयं ज्योति स्वरुप प्रकट हुए और लिंग को श्री रामेश्वरम की उपमा दी।

रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार का द्वीप है। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था। भगवान राम ने सेतु निर्माण से पहले सागर से प्रार्थना की थी कि मुझे लंका जाने के लिए रास्ता दीजिए। जब समुद्र ने कोई जवाब नहीं दिया तब भगवान राम ने समुंद्र को सुखाने के लिए अपने धनुष पर वाण चढ़ाया, तो समुंद्र देव ने प्रकट होकर अपनी गलती के लिए माफी मांगने के वाद सेतु बनाने की अनुमति दी। इसलिए यह मान्यता है कि यहां सागर एकदम शांत है। उसमें लहरें बहुत कम उठती है। इस कारण देखने में वह एक तालाब-सा लगता है। यहां पर बिना किसी खतरें के स्नान किया जा सकता है। यहीं हनुमान कुंड में तैरते हुए पत्थर भी दिखाई देते हैं। बाद में श्रीराम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। रामेश्वरम् के समुद्र में तरह-तरह की कोड़ियां, शंख और सीपें मिलती है। कहीं-कहीं सफेद रंग का बड़ियास मूंगा भी मिलता है। रामेश्वरम् केवल धार्मिक महत्व का तीर्थ ही नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय है।

रामेश्वरम् हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यहां के मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। यह उत्तर-दक्षिण में 197 मी. एवं पूर्व-पश्चिम में 133 मी. है। इसके परकोटे की चौड़ाई 6 मी. तथा ऊंचाई 9 मी. है। मंदिर के प्रवेशद्वार का गोपुरम 38.4 मी. ऊंचा है। यह मंदिर लगभग 6 हेक्टेयर में बना हुआ है। मंदिर में विशालाक्षी जी के गर्भ-गृह के निकट ही नौ ज्योतिर्लिंग हैं, जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित किया गया बताया जाता हैं। रामेश्वरम का मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। इसके प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊंचा है और मंदिर के अंदर सैकड़ौ विशाल खंभें है, जो देखने में एक-जैसे लगते है; लेकिन पास जाकर जरा बारीकी से देखने पर मालूम होता है कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है। रामेश्वरम् के विशाल मंदिर को बनवाने और उसकी रक्षा करने में रामनाथपुरम नामक छोटी रियासत के राजाओं का बड़ा हाथ रहा है। अब तो यह रियासत तमिलनाडु राज्य में मिल गई हैं।

पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरे पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नृत्य-नाटकों में सेतु बंधन का वर्णन किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही, महाभारत में भी श्रीराम के नल सेतु का जिक्र आया है। कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। अनेक पुराणों में भी श्रीराम सेतु का उल्लेख है।एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।। इसी स्थान को सेतुबंध भी कहते है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है। धनुषकोडी जीप या टेम्‍पो से पहुंचा जा सकता है। धनुषकोडी में भारतीय महासागर के गहरे और उथले पानी को बंगाल की खाड़ी के छिछले और शांत पानी से मिलते हुए देख सकता है।

रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे पादुका मंदिर कहते हैं। तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम् द्वीप और इसके आस-पास कुल मिलाकर 64 तीर्थ स्थल है। स्कंद पुराण के अनुसार, इनमे से 24 तीर्थ स्थल ही महत्वपूर्ण तीर्थ है। इनमे से 22 तीर्थ तो केवल मंदिर के भीतर ही है। 22 की संख्या को भगवान की 22 तीर तरकशो के समान माना गया है। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थं नाम दिया गया है। इन तीर्थो में स्नान करना बड़ा फलदायक पाप-निवारक समझा जाता है। जिसमें श्रद्धालु पूजा से पहले स्नान करते हैं। हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं है। रामेश्वरम के इन तीर्थो में नहाना काफी शुभ माना जाता है।

कोद्ण्ड स्वामि मंदिर रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर श्रीराम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद श्रीराम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति स्थापित है।
——————

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *