सुरभि सिन्हा, पटना, 29 अप्रैल ::
आजकल प्रायः देखा जाता है की लड़की की शादी हो या लड़के का शादी लालची लड़के वाले नहीं, बल्कि लड़की वाले भी होते है। लड़की वाले जब शादी के लिए लड़का ढूंढ़ते हैं तो वे विशेष रूप से यह ध्यान रखते हैं कि लड़का का बड़ा घर, अच्छी नौकरी, जमीन जायदाद, इकलौता लड़का हो, लड़का का माता-पिता न हो, लड़का राजकुमार जैसा हो, आदि-आदि। इस तरह का सोंच लड़की के परिवार से ही उत्पन्न होती है और यह एक ऐसा सामाजिक सच है, जिसमे अपने समाज की सारी सच्चाई छिपी होती है।
समाज में पहले रिश्ते होते थे, लेकिन अब रिश्ते नही सौदे होते हैं। यही सोच समाज की परंपरा को गड़बड़ कर दिया है। अब तो बच्चों का रिश्ता बिना लड़का और लड़की के मर्जी के बिना किसी के माता-पिता करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। यह सच्चाई है। पहले माता-पिता बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से तय करते थे तो सबसे पहले खानदान देखते थे, समाज में सामाजिक पकड़ और बच्चों में संस्कार देखते थे। लेकिन अब बच्चों को मन की नही, तन की सुन्दरता चाहिए।
अब लड़कियों के माता-पिता अपनी लड़कियों को सिनेमा में दिखाये गए दृश्यों के अनुरूप, ढालने और अपनी शौक को पूरा करने के लिए अपने धर्म, संस्कार से हट कर, लड़कियों में संस्कार विहीन शिक्षा देते हैं, परिणाम होता है लड़कियों में सामाजिक, सांस्कृतिक और घरेलू जानकारी से पुरी तरह अनभिज्ञ रहती है। ऐसी स्थिति में अब लड़की को शादी के लिए सरकारी नौकरी, दौलत, कार, बँगला, साइकिल या स्कूटर वाला राजकुमार लड़का नही चाहिये, सब की पसंद हो गया है कार वाला लड़का।
आज हर दिन किसी न किसी के घर का माहौल, खराब हो रहा है, चाहे वह घर लड़का वाले का ही क्यों न हो। अब शादी के लिए लड़के वालो को भी चाहिए कि लड़की बड़े घर की हो ताकि भरपूर दहेज मिल सके। वहीं लड़की वालोँ को भी चाहिए पैसे वाला लड़का, ताकि लड़की को ससुराल में काम करना न पड़े, ससुराल में नौकर चाकर हो और परिवार भी छोटा हो।
पहले रिश्ता जोड़ते समय लड़की वाले कहते थे कि मेरी बेटी घर के सारे काम-काज जानती है जबकि अब शान से लड़की के माता-पिता कहते हैं हमने अपनी बेटी को बहुत ही लाड़-दुलार से पाला है इसलिए कभी भी उससे घर का काम नही कराया है। यह कह कर वे अपनी शान समझते हैं। इस तरह की सोच के कारण ही अब बच्चों की शादी की उम्र 18 और 21 के स्थान पर 30 से अधिक यहाँ तक कि अधेड़ होने के बाद हो रहा है और वह भी पूरी इच्छा- चाहत के बिना।
अब इनको कौन समझाये कि शादी की एक उम्र होती है जिसमें चेहरे पर चमक होती है, वो अधेड़ होने पर कायम नही रहती, भले ही लाख रंगरोगन करवा लो, फेशियल करवालो, ब्युटिपार्लर मे जाकर। दूसरी तरफ संक्रमण की तरह यह फैल चुका है कि नौकरी वाले लड़के को नौकरी वाली ही लड़की चाहिये। यहां पर सोचने वाली बात है कि जब लड़की खुद ही कमायेगी तो क्यों आपके या आपके माँ बाप की इज्जत करेगी? वह तो कहेगी ही कि खाना होटल से मँगा लो या खुद बना लो। इस तरह का व्यवहार आजकल अधिकाँश घर में तनाव का कारण बना हुआ है। एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नही रह रहा है, उपर से सहनशीलता भी खतम हो रहा है, इसी का परिणाम होता है आत्महत्या और तलाक। जबकि सर्वविदित है कि रिश्ते की डोर घर परिवार में झुकने से चलता है, अकड़ने से नहीं।
जीवन जीने के लिये दो वक़्त की रोटी और छोटे से घर की जरूरत होती है और जरूरत होती है घर में आपसी तालमेल और प्रेम प्यार की। लेकिन आज की सोच हो गई है बड़ा घर और बड़ी गाड़ी। चाहे मालकिन की जगह दासी ही बनकर क्यों न रहना पड़े। वहीं लड़का भी सोचताहै कि अमीर लड़की मिलेगी तो उसके मायके की सम्पत्ति से हिस्सा भी मिले। ऐसी सोच बदलनी चाहिए। प्रायः देखा जा रहा है कि आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं, कपङा धोने के लिए वाशिँग मशीन, मसाला पीसने के लिये मिक्सी, पानी भरने के लिए मोटर, मनोरंजन के लिये टीवी, बात करने के लिए मोबाइल, फिर भी लोग असँतुष्ट रह रहे हैं। जबकि पहले ये सब कोई सुविधा नहीं हुई करती थी, मनोरंजन का साधन केवल परिवार और घर का काम था, इसलिए लोगों के दिमाग में फालतू की बातें नहीं आती थी और न ही तलाक होती थी और न ही फाँसी। लेकिन आजकल लोग दिन मे तीन बार आधा आधा घँटे मोबाइल मे बात करने में बिताते है, घँटो सीरियल देखने में, ब्युटिपार्लर मे जाकर समय व्यतीत किया जा रहा हैं।
अब हर घर में लोग अक्सर सुनते हैं कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती है। जबकि शादी के बाद जब लड़की पहली बार ससुराल जाती है तो उसे समझना चाहिए कि जिस प्रकार वे पहली बार कॉलेज जाती है और वहाँ नया माहौल, नई दोस्त, नई शिक्षक और नया वातावरण मिलता है जहां सीनियर लोगों द्वारा रैगिँग होते है और सभी को सहन कर साथ रहते है ठीक उसी तरह ससुराल में भी थोड़ी बहुत अगर रैगिँग जैसी माहौल मिले तो सहन कर लेना चाहिए क्योंकि ससुराल मे आज बहू हो तो कल सास बनोगी। इसलिए समय पर शादी होनी चाहिए,स्वभाव मे सहनशीलता लानी चाहिए, परिवार में सभी छोटे-बड़ो का सम्मान करना चाहिए, जीवन मे उतार चढाव आता है तो सोचना चाहिए, समझना चाहिए फिर फैसला लेना चाहिए, बड़ों से बराबर राय लेना चाहिए, उनके ऊपर और ऊपर वाले पर हमेशा विश्वास रखना चाहिए। यह कहानी लगभग सभी पुरुष और महिलाओं पर लागू नही होती है, क्योंकि कुछ पुरुष और कुछ महिलाएं इस तरह से मर्यादाएं नष्ट कर रही है। बाकी देश की समस्त महिलाएं एवं पुरुष सभी अपनी संस्कृति और समाजिक परिवेश में जीवन यापन कर रहे है।
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