— प्रदीप कुमार
पटना। सत्ताधिकारी जब धर्म की ओर गति करते धर्मानुरागी धर्मनिष्ठ होते हैं, तो देश और धर्म सशक्त, जनता सुखी और सज्जन हो जाती है। दूसरी तरफ धर्माधिकारी जब राजनीतिन्मुख हो जाते हैं, तो धर्म की हानि तो होती ही है, स्वयं उनके प्रतिष्ठा की भी हानि होती है। यही नहीं समाज भी भोगोन्मुखी हो जाता है। यही आज की परिस्थिति भी है और लगभग यही हो भी रहा है।

सोमवार 22 जनवरी 2024 को न सिर्फ भारत बल्कि पूरा विश्व, एक ऐसी धारा का साक्षी बनेगा जिसके लिए सनातनियों ने, हिंदुओं ने, न केवल कुछ वर्ष बल्कि कई शताब्दी तक संघर्ष ही नहीं किया बल्कि अपना तन, मन, धन सब न्योछावर कर दिया, जान का बलिदान भी दिया।

आज पूरा भारत लगभग राममय हो चुका है। लोगों ने अपने सोशल मीडिया का डीपी, मोबाइल का रिंगटोन, स्टेटस सब राममय ही कर दिया है। प्रभात फेरियाँ निकाली जा रही है, मंदिरों की साफ-सफाई करना शुरू कर दिया गया है, और हाय – हेलो की जगह जय श्री राम बोलना भी आरंभ कर दिया है। न सिर्फ अयोध्या, पूरे भारत के लोगों ने अपने दुकानों पर, घरों पर, भगवा पताका लहरा रखा है। एक तरफ अयोध्या जी से आई अक्षत और आमंत्रण पत्र पाकर लोग खुद को भाग्यशाली समझ रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर कोई शुद्ध घी पहुंचा रहा है, तो कोई विशाल अगरबत्ती बनाकर भेज रहा है। जिसे जो बन पड़ रहा है, वह अपना योगदान देने में लगा है।

राम मंदिर न्यास परिषद ने इस पावन अवसर पर देश-विदेश के अनेक गणमान्यों को निमंत्रण भेजा है और अधिकांश लोग उस निमंत्रण को पाकर खुद को भाग्यशाली समझ रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने इस पुनीत आमंत्रण को ठुकरा दिया है। ठुकराने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने न सिर्फ हमारे आराध्य को सालों तक तंबू में रखा, बल्कि मंदिर निर्माण में हमेशा रोड़े अटकाए। हद तो तब हो गई जब इन्होंने राम को काल्पनिक तक कह डाला और रामसेतु तोड़ने की तैयारी भी कर ली थी।
उनका उद्देश्य सिर्फ सनातनियों को अपमानित करना, अपने तथाकथित वोट बैंक को कायम रखना और एक खास वर्ग के तुष्टिकरण का था। कहते हैं कि सत्ता जिसके पास रहती है उसकी तूती बोलती है। जब तक विरोधियों के हाथ सत्ता थी तो उन्होंने मंदिर का विरोध करने में कोई कमी नहीं छोड़ी, किसी ने अनेक राज्यों का सरकार गिराया तो किसी ने कार्य सेवकों पर गोलियां चलवा दी। जब सत्ता उनके हाथ से गई तब यह लोग तंज करना शुरू कर दिया की, “मंदिर वहीं बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे।” जबकि नई सत्ताधारी पार्टी के मेनिफेस्टो में राम मंदिर तो शुरू से था और “मंदिर वहीं बनाएंगे” का नारा भी।

लगता है कि राम जी को भी सही उत्तराधिकारी और सत्ताधिकारियों का इंतजार था, इसलिए उन्होंने वनवास की तरह ही तंबू में रहना स्वीकार कर लिया था। पूरा विपक्ष चीख रहा है कि सत्ताधिकारी पार्टी क्यों सारा श्रेय ले रही है। तो भाई आपके पास तो कहीं अधिक अवसर और समय था लेकिन आपने तो उन्हें तंबू में ही रखने का प्रयास किया उल्टे तंज का भी कसा, तो आज श्रेय लेंगे लेने का हक तो है ही सत्ताधिकारी पार्टी को।

आज राम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन का साक्षी बनना हमारे भाग्यशाली होने का प्रतीक है, वहीं उसकी विधवा विलाप करने वाले अभागों को भी हम पहचान पा रहे हैं जो की शुद्ध सनातन के विरोधी हैं।

आज वह खुद अप्रासंगिक हो गए हैं जो कल तक राम को काल्पनिक और अप्रासंगिक बता रहे थे। हमारे आराध्य के साथ छल करोगे तो भुगतना तो पड़ेगा ही ना। क्योंकि …

“होईहें वही जो राम रचि राखा”

मेरे झोपड़ी के भाग्य अब खुल जाएंगे, राम आएंगे ।
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