जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 10 दिसम्बर, 2024 ::

इंडी गठबंधन बनने के बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड में विधान सभा चुनाव हुआ, लेकिन विपक्ष ने कोई करिश्मा नहीं दिखा सका। इसका मतलब हुआ कि विपक्ष के गठबंधन में एकता नहीं है, क्योंकि कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों को चुनाव में तरजीह नहीं दिया है। इसी का परिणाम हुआ है कि विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस के साथ जहां जहां मिलकर चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़ा किया वहां उन लोगों ने विपक्ष का ही वोट काटा है, जिसके कारण एनडीए को सीटों में बढ़त मिली।

एकता का मूल मंत्र लगता है विपक्षी पार्टियां भूल रहा है और इसका थोपड़ा विपक्षी दलों के सहयोगी पार्टियां सीधे सीधे कांग्रेस पर फोड़ रही है, जबकि विगत वर्ष जुलाई महीने में बेगलुरु में मोदी सरकार और भाजपा के विरुद्ध विपक्षी गठबंधन इंडी बनाते समय मंच पर बैनर लगा था ‘यूनाइटेड वी स्टैंड’। ‘यूनाइटेड वी स्टैंड’ का अर्थ होता है एकता में ही शक्ति है। लेकिन इंडी गठबंधन बनते ही गठबंधन के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना पाला बदल लिया, फिर भी लोकसभा आम चुनाव 2024 में एनडीए को इच्छित बहुमत नहीं मिली।
चार राज्यों जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणाम में एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच बरावर-बरावर रहा। एनडीए को हरियाणा, महाराष्ट्र और इंडी गठबंधन को जम्मू-कश्मीर, झारखंड में बहुमत मिली। अगर सही ढंग से देखा जाए तो इंडी गठबंधन की उम्मीदों को जबर्दस्त झटका लगा है। हरियाणा और महाराष्ट्र में इंडी गठबंधन की पराजय से ऐसा लगता है कि विपक्षी पार्टियां अपना ही सूत्र वाक्य भूल रहे हैं। महाराष्ट्र चुनाव के बाद सपा ने महायुति छोड़ने का ऐलान कर दिया है। वहीं महाराष्ट्र लोक सभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन इंडी ने एनडीए को 48 में से मात्र 17 सीटी पर ही समेट दिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव परिणाम चौकाने वाले आए।

देखा जाए तो, हरियाणा और महाराष्ट्र आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण राज्य हैं। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में इंडी गठबंधन का टक्कर बराबरी की थी इसलिए हरियाणा और महाराष्ट्र के विधान सभा चुनाव में इंडी गठबंधन के लिए हार बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि इन दोनों राज्यों में इंडी गठबंधन को जीत का विश्वास था। इंडी गठबंधन बनने के बाद कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में हार देखी। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की हार के कई कारण होंगे, लेकिन सहयोगी दलों के उम्मीदवार को तरजीह नहीं देना भी एक कारण रहा। जम्मू- कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद एनडीए ने चुनावी माहौल बनाया था लेकिन परिणाम निराशाजनक रहा। वहीं झारखंड में हरसंभव कवायद करने के बावजूद एनडीए सत्ता की दहलीज के आसपास भी नही पहुंच पाई यह एनडीए के लिए चिंता का विषय है।

फिर भी, एनडीए ने हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत में जम्मू-कश्मीर और झारखंड की हार को बखूबी छिपा लिया, जबकि इंडी गठबंधन ने आपस में ही तलवार भांज रहे है। इंडी गठबंधन में राजनीतिक हितों के टकराव से बनीं गांठे पुरानी हैं, जिन्हें बड़ी राजनीतिक मजबूरी के गठबंधन छिपाने की कोशिश कर रही है।
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