पूरे विश्व में विभिन्न देशों के शेयर (पूंजी) बाजार में निवेश करने के सम्बंध में विदेशी निवेशक संस्थानों को सलाह देने वाले एक बड़े संस्थान मोर्गन स्टैनली ने हाल ही में अनुमान लगाया है कि बहुत सम्भव है कि भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण आगे आने वाले 5 वर्षों में दुगना हो जाए।
आज खुदरा निवेशक, देशी संस्थागत निवेशक, म्यूचूअल फंड, आदि द्वारा भारतीय शेयर बाजार में औसतन लगभग 1500 करोड़ रुपए के शेयरों की रोजाना खरीद हो रही है अर्थात प्रतिदिन 1500 करोड़ रुपए भारतीय शेयर बाजार में डाले जा रहे हैं, जिसके चलते ही विदेशी निवेशक संस्थानों द्वारा भारतीय शेयर बाजार में शेयर बेचे जाने के बावजूद भारतीय शेयर बाजार पर कुछ बहुत बड़ा असर होता दिखाई नहीं दे रहा है अर्थात अब भारतीय निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार को अपने दम पर सम्हाल लिया है। अब, जब भारत में कई कम्पनियां अपनी विस्तार योजनाओं को लागू करने जा रही हैं अतः इन कम्पनियों के द्वारा नए शेयर, बाजार में जारी किए जाएंगे, जिन्हें खरीदने के लिए विदेशी संस्थागत निवेशक भी अब से लगभग 6 माह बाद भारत में अपना निवेश वापिस लाएंगे।
वर्ष 1993 से वर्ष 2013 तक विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में लगातार खरीद कर रहे थे और देशी संस्थागत निवेशक लगातार बेच रहे थे। वर्ष 2014 के बाद से यह सब बदलने लगा क्योंकि 2015 में पहली बार केंद्र सरकार ने प्रॉविडेंट फंड को शेयर बाजार में निवेश की अनुमति दी थी। इसी प्रकार की अनुमति 401K योजना के अंतर्गत अमेरिका ने अपने प्रॉविडेंट फंड संस्थानों को वर्ष 1980 में दी थी। इसके बाद अमेरिकी शेयर बाजार में उच्छाल देखने को मिला था। अमेरिका में आज संस्थागत निवेशकों का लगभग 40 प्रतिशत भाग शेयर बाजार में निवेश रहता है जबकि भारत में यह अभी भी बहुत कम अर्थात लगभग 8 प्रतिशत ही है, इस प्रकार भारत को अभी तो बहुत आगे जाना है।
भारत में पिछले वर्ष घरेलू बचत 70,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आसपास थी, उसमें से केवल 5,000 से 6,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर ही शेयर बाजार में निवेश किया गया था, को कुल घरेलू बचत का 10 प्रतिशत से भी कम है। 5,000 से 6,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सोने में निवेश होता है एवं लगभग 35,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का प्रॉपर्टी में निवेश होता है। इस प्रकार, भारत में शेयर बाजार में निवेश बढ़ाने की बहुत अधिक गुंजाइश मौजूद है। साथ भी अब वैश्विक स्तर पर भी यह सिद्ध हो चुका है कि सामान्यतः शेयर बाजार में सबसे अधिक रिटर्न मिलता है, अतः भारत के शेयर बाजार में निवेश आगे आने वाले समय में तेजी से बढ़ने वाला है। यदि भारत में कुल बचत का 10 प्रतिशत से आगे बढ़कर 15 प्रतिशत निवेश शेयर बाजार में होने लगे तो केवल देशी निवेशकों का निवेश ही बढ़कर 7,500 से 8,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर जाएगा।
पिछले 10 वर्षों में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में दीर्घकालीन स्थिरता (मैक्रो स्टेबिलिटी) पर बहुत ध्यान दिया है। इससे मुद्रा स्फीति की दर में होने वाला उतार चढ़ाव नियंत्रण में रहा है और अब यह सबसे न्यूनतम स्तर पर आ गया है। 70-75 वर्षों में ऐसी स्थिरता देखी नहीं गई है। इसके कारण शेयर बाजार में, रुपए की बाजार कीमत में एवं बांड मार्केट आदि में सब जगह उतार चढ़ाव थम गया है और इन सभी क्षेत्रों में स्थिरता आ गई है। पिछले 10 वर्षों में भारत में बहुत अधिक आर्थिक सुधार कार्यक्रम भी लागू किए गए हैं। अर्थव्यवस्था में दीर्घकालीन स्थिरता के आने से अब हम सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर का सही तरीके से अनुमान लगा सकते हैं, जिसके चलते हमारी आय और व्यय के अनुमान भी लगभग सही स्तर पर हो पा रहे हैं। इससे, विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास लगातार बढ़ता जा रहा है और विदेशी निवेशक भी भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
भारत के नागरिकों की जेब में सीधे पैसे डालने के बजाय सामाजिक आधारभूत संरचना खड़ी करने में सरकार ने नागरिकों की भरपूर मदद की है, जैसे 3 करोड़ से अधिक मकान बनाकर गरीब वर्ग को उपलब्ध कराए गए हैं, ग्रामीण इलाकों सहित घरों में पानी उपलब्ध कराया गया है, 95 प्रतिशत से अधिक गावों में बिजली उपलब्ध कराई गई है, लगभग सभी घरों में गैस उपलब्ध कराई गई है, सड़क मार्ग विकसित किए गए हैं, गांवों में स्वास्थ्य केंद्र खोले गए, आदि। इससे नागरिकों के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ और वे कम बीमार पड़ने लगे हैं, उनके स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्चे कम हुए हैं और उनकी बचत बढ़ी है। कुल मिलाकर यह साइकल बहुत अच्छे तरीके से अपना काम करता दिखाई दे रहा है। सामाजिक आधारभूत संरचना खड़ी करने का कार्य अभी भी जारी है और तेज गति से आगे बढ़ रहा है। इस सबका यह परिणाम भी हुआ है कि देश में पिछले 10 वर्षों में गरीबी आधी रह गई है और इसे शून्य पर लाने के लिए कार्य जारी है।
भारत में उत्पादों के निर्माण में आधारभूत संरचना से सबंधित लागत बहुत अधिक है। इस पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14 प्रतिशत भाग खर्च हो जाता है, इससे उत्पादों की लागत तुलनात्मक रूप से बहुत बढ़ जाती है। हालांकि भारत के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए बहुत काम हुआ है। नए नए रोड बने हैं, रेल्वे का विकास हुआ है (रेल्वे का लगभग 100 प्रतिशत विद्युतीकरण हो चुका है), पोर्ट का विकास हो रहा है, नए एयर पोर्ट का निर्माण हुआ है, परंतु अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष हैं। वर्ष 2015 ने भारत में मालगड़ियां औसतन लगभग 20 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलती थीं। अब वह औसतन लगभग 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हैं और आगे आने वाले 5 वर्षों में यह और आगे बढ़कर औसतन लगभग 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने लगेगी। इससे सबसे बड़ा लाभ उद्योग जगत को हुआ है, क्योंकि अब उन्हें कच्चे माल का स्टॉक कम मात्रा में रखना पड़ता है और इससे अंततः उनके द्वारा निर्मित उत्पाद की लागत कम हुई है।
पिछले कई वर्षों से विनिर्माण क्षेत्र की सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी लगातार कम होती रही थे अथवा स्थिर हो गई थी। परंतु, अब यह स्थिति भी बदलती जा रही है और आने वाले 5 वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ने जा रही है। इसके परिणाम कई क्षेत्रों जैसे सुरक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, रेल्वे, फार्मा, औटोमोबाइल, ड्रोन निर्माण, सेमी कंडक्टर, फूड प्रासेसिंग, एयरो स्पेस, आदि में दिखाई भी देने लगे हैं।
भारत शेयर बाजार पूंजीकरण की दृष्टि से विश्व में आज अमेरिका, चीन, जापान, हांगकांग के बाद 5वें स्थान पर है। तीसरे स्थान पर शीघ्र ही आ सकता है। आगामी 10 वर्षों में बहुत सम्भव है कि भारत दूसरे स्थान पर भी आ जाए क्योंकि चीन और जापान के आर्थिक क्षेत्र में जिस प्रकार की समस्याएं दिखाई देने लगी हैं, इससे अमेरिका के बाद भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आ सकता है। हालांकि सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से विश्व में भारत तीसरे स्थान पर ही आ पाएगा। वर्तमान में भारत के शेयर बाजार का पूंजीकरण लगभग 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है जबकि भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही हो पाया है।
आगे आने वाले लगभग 10 वर्षों में भारत में 10 करोड़ नागरिक गरीबी से निकलकर मध्यम वर्गीय परिवार बन सकते हैं, जिससे इनकी कुल संख्या 45 करोड़ हो जाएगी। जबकि हाई नेटवर्थ नागरिकों की संख्या 50 लाख के आस पास ही है। इससे नागरिकों की खरीद क्षमता बढ़ेगी और उत्पादों की खपत भी बढ़ेगी। सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होने से गरीबी कम होती है। परंतु, महंगाई एवं विकास दर में संतुलन होना भी आवश्यक है। यदि मुद्रा स्फीति की दर बढ़ रही है तो यह गरीब वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित करती है अतः विकास दर को कम रखने का प्रयास किया जाता है ताकि महंगाई की दर को कम किया जा सके। इसी नियम को विश्व के कई देश लागू कर रहे हैं इसीलिए वैश्विक स्तर पर विकास दर भी कम हो रही है। परंतु भारत में महंगाई की दर को नियंत्रण में रखने में सफलता मिली है इसीलिए भारत की विकास दर भी 7 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। हालांकि यदि महंगाई को यदि और अधिक नियंत्रण में (लगभग 3 प्रतिशत) लाया जा सके तो भारत की आर्थिक विकास दर 8 से 9 प्रतिशत तक जा सकती है। भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार की जोखिम दिखाई नहीं दे रही है परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में होने वाली समस्याओं के चलते ही हो सकती है।