जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 24 सितम्बर, 2024 ::

संतान की सुख, समृद्धि, दीर्घायु और यशस्वी जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत (जिउतिया) करती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत करने से संतान वियोग नहीं होता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को विभिन्न क्षेत्र में जिउतिया, जितिया, जिमुतवाहन के नाम से भी जाना जाता है।

बनारस पंचांग और मिथिला पंचांग भिन्नता है। बनारस पंचांग के अनुसार उदया तिथि में अष्टमी तिथि होने पर और मिथिला पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि प्रारम्भ होने पर व्रत करने का परम्परा माना जाता है। ऐसी स्थिति में मिथिला पंचांग को मानने वाले 24 सितम्बर को और बनारस पंचांग को मानने वाले 25 सितम्बर को व्रत रखेंगे।

बनारस पंचांग को मानने वाले लोग इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितम्बर यानि बुधवार के दिन रखेंगे, क्योंकि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 सितम्बर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी और 25 सितम्बर को अपराह्न 12 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि के आधार पर जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितम्बर यानि बुधवार के दिन रखा जायगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत में माता अपनी संतानों की सलामती के लिए पूरे दिन और पूरी रात निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान जीमूतवाहन की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं।जीवित्पुत्रिका व्रत भी छठ पूजा की तरह नहाय-खाय और खरना करने की परंपरा है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड व उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में ही मनाया जाता है।

24 सितम्बर को नहाय-खाय से जीवित्पुत्रिका व्रत शुरू होगा, 25 सितम्बर को उपवास रखेगी और 26 सितम्बर को पारण करेगी। जीवित्पुत्रिका व्रत पूजन करने का समय शाम के चौघड़िया शुभ मुहूर्त यानि शाम 04 बजकर 43 मिनट से शाम 06 बजकर 13 मिनट तक है।

भविष्य पुराण के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत के संदर्भ में कहा गया है कि शिव जी ने माता पार्वती से कहा कि जो माता अपनी संतान की भलाई के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं, उनकी संतान के जीवन में कभी संकट नहीं आते हैं। सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। साथ ही संतान का वियोग का कष्ट भी नहीं मिलता है। तब से संतान की सलामती के लिए माता जीवित्पुत्रिका व्रत कर रही है।
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