पटना, 31 मार्च :: बिहार हमेशा से भारत के सियासी हलचल का केंद्र रहा है और बात जब बिहार की हो तो सासाराम लोकसभा क्षेत्र किसी पहचान का मोहताज नहीं है।
सासाराम ने बिहार को एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता दिया। उप प्रधानमंत्री, केंद्र मंत्री तथा लोकसभा अध्यक्ष जैसे कितने ही महत्वपूर्ण पदों पर आसीन जनप्रतिनिधियों को सासाराम ने चुनकर संसद में भेजा।
चुनावी सरगर्मी बढ़ चुकी है और सासाराम लोकसभा सीट पर बड़े-बड़े सूरमा के दावेदारी से सियासी पारा भी चढ़ चुका है। कभी कांग्रेस का गढ़ समझा जाने वाला सासाराम सीट आज भाजपा के गिरफ्त में है।
धीरे-धीरे कयासों के ढूंढ छटने लगे हैं और दोनों ही मुख्य गठबंधन में सीट बंटवारा सार्वजनिक हो चुका है। जहां एक तरफ भाजपा ने अपने जीते हुए सांसद, श्री छेदी पासवान का टिकट काट कर शिवेश राम को मैदान में उतार दिया है। वहीं दूसरी ओर महागठबंधन कोटे से कांग्रेस की सासाराम से 2 बार सांसद रही मीरा कुमार ने अपनी स्वास्थ के कारण चुनाव से दूरी बना ली है।
ऐसे विपरीत परिस्थिति में जब कांग्रेस की नांव मझधार में फंसी हुई प्रतीत हो रही है तो सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अपना मांझी कांग्रेस के पुराने वफादार पासवान परिवार के जितेंद्र पासवान को बना सकती है।
जितेंद्र पासवान, बिहार सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय महावीर पासवान के सुपुत्र हैं। महावीर बाबू दो बार पटना के पुनपुन एवं दो बार सासाराम के मोहनिया विधानसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के विधायक और कई प्रमुख विभागों के मंत्री रह चुके हैं। महावीर पासवान 1984 के लोकसभा चुनाव में सासाराम सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी थे और उस चुनाव में उन्हें मात्र 1287 वोट से हार का सामना करना पड़ा था।
महावीर बाबू को बिहार कांग्रेस का संकट मोचन भी कहा जाता था और पार्टी उन्हें हमेशा कठिन सीट पर चुनाव लड़ने भेजती थी और उन्होंने सदैव पार्टी के आन बान और शान को बनाए रखने का काम किया। महावीर पासवान के स्वर्गवास होने पर उनके सुपुत्र जितेंद्र पासवान ने उनके राजनीतिक सामाजिक और बौद्धिक विचारधारा को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र रहे जितेंद्र पासवान ने निजी कंपनी में वरिष्ठ पद का त्याग कर स्वयं को सामाजिक जीवन की ओर समर्पित किया। सासाराम के चेनारी सीट से पूर्व में वह कांग्रेस के विधानसभा प्रत्याशी भी रह चुके हैं। उस चुनाव में हार मिलने पर भी उन्होंने क्षेत्र का कभी त्याग नहीं किया और अपने पिता के ही पदचिन्हों पर चलते हुए उन्होंने आम जनों से अपना जुड़ाव बनाए रखा और क्षेत्र के सुख दुख और हर तरह की गतिविधियों में सक्रियता के साथ अपने जिम्मेदारियों का निर्वाह किया है।
मौजूदा स्थिति में भाजपा पिछले दो बार से यह सीट जीतते आ रही है। किंतु अपनी हालत नाजुक देखते हुए भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदल दिया है। ऐसे में यदि कांग्रेस जमीन से जुड़े, जुझारू, शिक्षित एवं प्रतिष्ठित परिवार से आने वाले जितेंद्र पासवान को टिकट देती है तो शायद यह सीट वापस कांग्रेस की झोली में आ जाए।
बहरहाल जो भी हो सासाराम के सियासी संग्राम में खेल अभी बाकी है।
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