कभी कभी चीजें जो दिखती है वो होती नहीं है और असल में जो होती है वहाँ तक हमारी सोच भी नहीं पहुंच पाती है.
नुपूर शर्मा केस इसका क्लासिकल उदाहरण है.
लेख थोड़ा लंबा और Complicated है इसीलिए कृपया इसे ध्यान से और समझ कर ही पढ़ें.
जब आप द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण के बारे में पढ़ेंगे तो पता लगेगा कि द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण जर्मनी का पोलैंड पर हमला था.
लेकिन, जब आप उसके डिटेल में जाएँगे तो आपको समझ आएगा कि जर्मनी पर पोलैंड पर हमला तो द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने का एक बहाना मात्र था… उसके मूल कारण तो कुछ दूसरे ही थे.
अभी हिंदुस्तान और पिस्लामिक जगत में नुपूर जी के बयान पर चल रहा हंगामा भी कुछ ऐसा ही है.
एक नजर देखने में लग रहा है कि… ये धार्मिक और भावना आहत का मामला है…
लेकिन, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.
ये एक बहाना मात्र है..
और, ये बहाना नहीं होता तो कुछ और होता.
शायद ज्ञानवापी मामले को लेकर होता… या फिर, कुतुबमीनार को होकर.
लेकिन, होता जरूर..
क्योंकि… अभी जो हंगामा हो रहा है… उसे होना तय था.
अब आप एक बार शांत दिमाग से सोच कर देखें कि महज 28 लाख आबादी वाला पिद्दी से देश कतर की कभी इतनी साहस हो सकती है वो भारत को धमका सके ???
और… मान लो कि उसने दुस्साहस करके ऐसा कर भी दिया तो अमेरिका समेत पूरे यूरोपियन कंट्रीज को ठेंगे पर रखने वाला नया भारत उसकी धमकी से डर जाएगा ???
आपको ये सब कुछ अटपटा सा नहीं लग रहा है ???
वास्तव में ये बेहद अटपटा है और पचने लायक बात ही नहीं है.
लेकिन… अब आप ध्यान से सोचें कि हाल-फिलहाल में आपने देश और दुनिया में क्या असामान्य घटना देखी है ???
जी हाँ… अभी देश में एक तरह की अराजकता फैलने और भारत के मित्र खाड़ी देशों के अचानक से आंखे तरेरने से पहले एक असामान्य घटना ये हुई है कि….
भारत का ही एक आदमी अमेरिका में बैठ के ये इशारा कर रहा था कि… भारत में केरोसिन छिड़क दिया गया है..!
असल में उसके कहने का मतलब था कि… अब भारत में केरोसिन छिड़का जा चुका है और अब प्लान को आगे बढ़ाया जा सकता है.
और, प्लान आगे बढ़ गया…
मतलब कि, प्लान के अनुसार एक छोटी सी बात पर हंगामा खड़ा कर दिया गया.
अगर आपको लगता है कि… कुछ लोग सिर्फ मसाज करवाने और महज मौज मस्ती के लिए हमेशा विदेश जाते हैं तो फिर आप बहुत ही भोले हैं.
उनको इतना पैसा और साधन है कि वे यहीं शिमला या जयपुर में ही बैंकॉक और थाईलैंड से ज्यादा सुख सुविधा जुटा सकते हैं.
असल में वे विदेश जाते हैं… अपना नेटवर्क तैयार करने के लिए..
अपना ईकोसिस्टम चेक करने के लिए.
लेकिन… फिर सवाल है कि… आखिर ये सब कर कौन रहा है ???
और, इससे उसे क्या लाभ है ???
तो… इसका जबाब छुपा है इंटरनेशल पॉलिटिक्स में.
ये सारा इंटरनेशल पॉलिटिक्स है… पावर गेम का.
और, वो पावर गेम समझाता हूँ कि ये आखिर क्या बला है…
कुछ समय तक अमेरिका दुनिया का नम्बर one बॉस था और पूरी दुनिया में वो अपनी दादागिरी चलाता था.
जैसे लोगों को डराने के लिए रंगबाजों के यहाँ 10-20 मुस्टंडे लठैत बैठे रहते हैं..
वैसे ही… अमेरिका ने भी अपने यहाँ NATO नामक लठैत बिठा रखे थे.
रूस के विघटन के बाद अमेरिका निश्चिंत था कि… हम दुनिया को आजीवन अपने इशारों पर नचाएंगे…
और, जिसको मर्जी धमकाएँगे.
और.. ऐसी ताकत के लिए चाहिए था… तेल और गैस और ताकत.
इसके लिए उसने… सऊदी अरब, इराक, कुवैत, कतर आदि को पहले से ही अपने पाले में कर रखा था.
और… कमोबेश सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था.
रूस दरकिनार था, पिग्गिस्तान से त्रस्त रहते हुए भारत उसकी जी हजूरी करते रहता था, अफगानिस्तान पर अमेरिका का कब्जा था और पाकिस्तान उसके रहमोकरम पर जिंदा था.
इस तरह उसने लगभग पूरी दुनिया पर पकड़ बना रखा था.
लेकिन, इस बीच कुछेक घटना हो गई.
रूस लगातार मजबूत होने लगा,
वैश्विक मार्केट चीन की धाक बढ़ने लगी और भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आ गई.
नरेंद्र मोदी की सरकार आते ही इसने पाकिस्तान को वैश्विक पटल पर लगभग नगण्य कर दिया..
और, अपनी आर्थिक एवं सैन्य ताकत बढ़ाने लगा.
चीन को पायजामे में रखने के चक्कर में अमेरिका ने भारत को इसमें सहयोग किया.
लेकिन, तभी कोरोना आ गया.
कोरोना में भी अमेरिका को लगा कि… अब हम इसकी दवाई बनाकर दुनिया भर में बेचेंगे और खूब पैसा कमाएंगे.
लेकिन, हुआ उल्टा.
कोरोना के कारण…अमेरिका की अर्थव्यवथा चरमरा गई.
और, इधर… भारत, चीन और रूस मजबूत होते चले गए.
तबतक ट्रम्प की सरकार चली गई और वामपंथी बाइडन आ गया.
बाइडन ने अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अफगानिस्तान से अपनी सेना हटा ली जिससे तालिबान ने वहाँ कब्जा कर लिया.
इससे अमेरिका की सुपर पावर की इमेज को बहुत धक्का लगा और उसकी खूब थू थू हुई.
और… विश्व में एक नए “वर्ल्ड आर्डर” की चर्चा होने लगी…
जिससे अमेरिका बेहद चिंतित हो गया क्योंकि नए वर्ल्ड आर्डर में अमेरिका सुपर पावर नहीं रहना था.
और… अब नए वर्ल्ड आर्डर में अमेरिका को चैलेंज करते हुए मुख्यतः 3 देश थे..
रूस, चीन और भारत.
और, अमेरिका को अगर वर्ल्ड सुपर पावर रहना था तो उसे अपने इन तीनो कॉम्पिटिटर को किसी भी तरह रोकना था.
और, इसके लिए उसने यूक्रेन को NATO का सदस्य बनाने का लालच देकर रूस से लड़वा दिया.
रूस को भी लगा कि… यूक्रेन को तो वो 2-4 दिन में जीत ही लेगा इसीलिए उसने भी जोश में आकर उसपर हमला कर दिया.
लेकिन.. ये रूस की गलती साबित हुई क्योंकि पीठ पीछे अमेरिका यूक्रेन को सपोर्ट देता रहा ताकि रूस अधिकाधिक समय तक युद्ध में उलझा रहे और बर्बाद होता रहे.
चीन को उसने.. हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और साउथ चाइना सी में उलझा दिया एवं उसे पायजामे में रखने के लिए QUAD बना लिया.
हालांकि… भारत को निपटाने की उसकी योजना रूस और चीन के बाद की थी..
लेकिन… इस बीच भारत ने अमेरिका के कथनानुसार रूस के विरोध में हिस्सा नहीं लिया.
इस पर अमेरिका तिलमिला गया और पूरे यूरोपियन यूनियन को लेकर भारत आ गया.
फिर भी भारत नहीं झुका… और, रूस के खिलाफ खड़ा होना तो छोड़ो… अमरीका एवं यूरोपियन यूनियन के लाख दबाब डालने के बाद भी रूस से तेल खरीदना जारी रखा.
हमेशा भारत को अपने पिछलग्गू के रूप में देखता हुआ अमेरिका… भारत के इस आंखों में आंख डालकर देखने की पॉलिसी को स्वीकार नहीं कर पाया और उसने भारत को “मानवाधिकार” के आरोप के साथ इनडायरेक्ट रूप में धमकाया.
लेकिन… मोदी के नेतृत्व में भारत अब किसी के भी सामने झुकने को तैयार नहीं था और उसने अमेरिका पर पलटवार करते हुए उसके यहाँ भी मानवाधिकार का मामला उठा दिया.
इस तरह…. मोदी सरकार ने इंटरनेशनल ऑयल लॉबी, हथियार और फार्मा लॉबी के सामने झुकने से साफ इंकार कर दिया.
परिणाम ये हुआ कि इससे अमेरिका और पूरा यूरोपियन यूनियन इससे तिलमिला उठा.
अब मुख्य बात है कि… इस सारे खेल में कतर और अरब कहाँ से आ गए ???
दरअसल हिंदुस्तान को कतर की जरूरत है.
और, कतर की जरूरत हिंदुस्तान को किसी गैस-फैस के लिए नहीं है क्योंकि गैस तो रूस से मिल ही रहा है.
हिंदुस्तान को कतर की जरूरत अफगानिस्तान के लिए है.
असल में अफगानिस्तान में तालिबान के दो हिस्से हैं .
उसके एक हिस्से को पाकिस्तान कंट्रोल करता है और दूसरे हिस्से हिस्से को कतर (दोहा) कंट्रोल करता है.
और… कतर को कंट्रोल करता है… अंकल सैम अमेरिका.
आपको याद होगा कि अगस्त 2021 में भारत के राजदूत राकेश मित्तल कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के हेड पॉलिटिकल ऑफिसर शेर मुहम्मद अब्बास से मिले थे.
जिसमें काफी कुछ चर्चा हुई थी.
अब पहले ये जान लें कि… भारत को अफगानिस्तान क्यों चाहिए ???
तो, पिछले 8 सालों में मोदी ने पिग्गिस्तान की हालत ऐसी कर दी है कि पिग्गिस्तान की हालत ऐसी है कि अब डूबा कि तब डूबा… जिसे खुद इमरान खान कई बार खुलेआम बोल चुका है.
तो… अगर ऐसा होता है (खुद से होगा यार 🙈) तो…
भारत को अफगानिस्तान समेत OIC का साथ चाहिए कश्मीर में 1947 की नेहरू की गलती को सुधारने के लिए..
वृहत भारत के लिए तो चाहिए ही… उसके अलावा ट्रेड के लिए भी चाहिए.
क्योंकि… जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिंदुस्तान के लिए असल कॉम्पिटिशन और खतरा पिग्गिस्तान से नहीं बल्कि चीन है.
और, उस खतरे /कॉम्पिटिशन से निपटने के लिए भारत भी चीन की OBOR (One Belt One Road) की ही तरह एक shortest ट्रेड रूट बनाना चाहता है…
जो कि…. भारत के कश्मीर, गिलगित, बाल्टिस्तान होते हुए अफगानिस्तान, सऊदी अरब, ओमान, जॉर्डन, इजराइल, साइप्रस और ग्रीस आदि को जोड़ेगी.
इसीलिए… हमें आगामी भविष्य को देखते हुए अफगानिस्तान से रिश्ता चाहिए ही चाहिए.
अमेरिका… भारत की इस कमजोरी को समझ गया …
और, वो इसी को कमजोर नस मानकर भारत का उपयोग रूस के खिलाफ करना चाह रहा था क्योंकि उसे लग रहा था कि भारत बिना अमेरिका के कतर में नहीं घुस पायेगा और बिना कतर के अफगानिस्तान में घुसना असंभव है.
और… इस बीच संयोग से हिंदुस्तान में ज्ञानवापी, मथुरा , काशी, ध्रुवस्तम्भ आदि विवाद शुरू हो गया.
और, इसी पर हंगामा कर भारत को घेरने की साजिश तैयार हुई.
इसके लिए प्लॉट तैयार किया गया लेकिन अपनी कमअक्ली के कारण जोश में पपुआ ने अमेरिका में इसका भांडा फोड़ दिया कि भारत में केरोसिन छिड़क दिया गया है और वहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है.
पपुआ के बोलते ही सबलोग अलर्ट हो गए..
लेकिन… चूँकि इसका स्वरूप धार्मिक था…
और… हिन्दुओं कुछ बोलने से जन-समुदाय में गलत संदेश चला जाता कि भाजपा /सरकार/मोदी मुसरिम तुष्टिकरण में इतनी लिप्त हो गई कि इतने प्रमाणों के बाद भी मुसरिमों के सुर में सुर मिला रही है कि उसे महजिद ही रहने दो.
इसीलिए, किसी नेता मंत्री के स्थान पर संघ प्रमुख भागवत जी ने मोर्चा संभाला और किसी भी संभावित झमेले से खुद को और संगठन को अलग कर लिया…
ताकि, कोई ये न कह सके कि… ये सत्ताधारी दल के मातृ संगठन का किया धरा है.
संघ प्रमुख के अपने संगठन को इस झमेले से अलग करते ही स्लीपर सेल तार्किक रूप से कमजोर पड़ गए…
लेकिन… दुर्भाग्य से… डिबेट के दौरान नुपूर जी तैश में आकर वो बोल गई जो इनके काम का था.
हालाँकि… वो कुछ गलत नहीं था और वो नुपूर जी से पहले भी जाकिर नाइक कई बार बोल चुका है.
लेकिन… नुपूर जी की बात को रिकॉर्ड कर के रख लिया गया कि ये हमारे काम का है.
उधर… मोदी, जयशंकर और डोवाल ने तालिबानी शेर मुहम्मद अब्बास के जरिए असंभव को संभव कर दिखाया और 2 जून को हिंदुस्तान ने कतर और अमेरिका को बायपास करते हुए सीधे तालिबान से काबुल में मीटिंग कर ली.
इस मीटिंग की जानकारी मिलते ही अमेरिका और कतर समझ गए कि अब उसकी वैल्यू खत्म हो गई भारत के लिए.
इसीलिए… भारत के इस बार सबक सिखाने और बैकफुट पर धकेलने के लिए… उसके ठीक एक दिन बाद… 3 जून को अमेरिका ने स्टेटमेंट दे दिया कि… “भारत में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है”
और… अमेरिका के ऐसा कहते ही भारत में मौजूद स्लीपर सेल…. काना फयूब, खबा खकबी , बुरखा वत्त समेत स्लीपर सेल ने मोर्चा संभाल लिया और करीब 8 दिन पहले कहे गए नुपूर जी के कहे एक सामान्य से बात को हर जगह प्रचारित कर तापमान बढ़ाना शुरू कर दिया.
इनके तापमान बढ़ाते ही तुरंत इनका ईकोसिस्टम काम पर लग गया और टीवी डिबेट, नेताओं , मौलानाओं से होता हुआ ये महजिदों तक पहुंच गया और फिर आम कटेशरों तक.
उसपर हंगामा काटने का प्लान तय किया और प्रदर्शन के नाम पर पत्थरबाजी पर सहमति बनी.
उसके बाद का घटनाक्रम आपको मालूम ही है.
इस बीच… अमेरिका ने कतर को समझाया कि ये तुम्हारे OIS में नेता बनने के लिए एक बड़ा मौका है कि तुम आगे बढ़ कर इसके लिए भारत को दोषी ठहराओ.
अमेरिकी इशारे पर कतर और कुवैत के भौंकते ही मोदी और जयशंकर को सारा खेल समझ आ गया.
इसीलिए… उन्होंने आग लगते ही फौरन पेड़ को काट दिया अर्थात नुपूर और नीरज को पार्टी से निलंबित कर स्टेटमेंट जारी कर दिया कि हमें उस बात का खेद है और हमने ऐसा बोलने वाले को पार्टी से निकाल दिया है.
अब इसमें एक बात का कन्फ्यूजन हो सकता है कि… कतर और कुवैत तो समझ आया कि अमेरिका के इशारे पर भौंके.
लेकिन, इसमें सऊदी अरब, ईरान और पिग्गिस्तान कहाँ से आ गए फिर ?
तो… इसका संबंध अमेरिका से नहीं बल्कि…पिस्लामी जगत (OIS) से है.
अभी कतर.. पिस्लामी चरमपंथियों का गढ़ बना हुआ है जबकि सऊदी अरब लिबरल.
लेकिन… पिस्लाम की शुरुआत से अरब ही कटेशरों का नेता रहा है.
इसीलिए… जब पिस्लाम के बारे में कतर और कुवैत ने आगे बढ़कर नेतागिरी करने की कोशिश की तो सऊदी अरब भी इसमें कूद गया कि हम असली और पुराने वाले नेता हैं.
इसी तर्ज पर पिग्गिस्तान और ईरान भी कूद गया.
लेकिन… असल में किसी भी पिस्लामिक देश को न किसी को नुपूर जी से दिक्कत है, न भारत से और न ही मोदी से.
अगर किसी को दिक्कत है तो वो है अमेरिका…!
क्योंकि… मोदी ने अमेरिका के सामने झुकने और उसकी दादागिरी मानने से इनकार करते हुए भारत को किसी भी हालत में विश्व शक्ति बना देने के लिए आतुर हैं.
इसीलिए… भारत को बैकफुट पर धकेलने के लिए…. ये सारा किया धरा है अमेरिका का…
जिसमें हमारे देश के भी कुछ राजनीतिक लोग इस लालच में इन्वॉल्व हैं कि ऐसा करके उन्हें सत्ता मिल जाएगी.
खैर… इस पूरे प्रकरण की यही कहानी है …
और… ये एक पॉवर गेम हैं जिसमें धर्म, मजहब , मान-सम्मान का कहीं कोई एंगल नहीं है.
इसमें जो दिख रहा है वो सिर्फ एक बहाना मात्र है.
शायद… अब समझ आ गया होगा कि… जियो पॉलिटिक्स में जो दिखती है वो होती नहीं है
और, जो होती है वो दिखती नहीं है.