चलती फिरती लाशें हैं ये,
दफन हो गया इनके दिल,
कोई जिए या कोई मरे,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।

इंसानियत मर चुकी,
जिंदा इंसान है,
अपने अहंकार में मदमस्त,
बताता खुद को महान है,
जात धर्म की चादर ओडकर,
दिखाते अपनी पहचान है,
अगर चादर हट जाए,
तो नंगा ये इंसान है।

खुद का हौसला बड़ाना होगा,
ये गिराते हैं, उठाते नहीं,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।

तुम कुछ करने जाओ,
आगे ये खड़े हो जाएंगे,
तुम्हारी कमियां भरपूर दिखाएंगे,
दो कोड़ी के ज्ञान में फसाकर,
तुमको रोकते जाएंगे,
सही के लिए जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।

साथ तो छोड़ो,
सही रास्ता भी न दिखाएंगे,
गलत में तुमको भटकाएंगे,
पर तुम मंजिल से भटकना नहीं,
सही के लिए जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।

अमीरी शोहरत दिखाती है,
गरीबी मजबूरी में लिपट जाती है,
अमीर शोहरत के नशे में समझता नहीं,
गरीब मजबूरी में मजबूर,
बेचारा जुबां खोलता नहीं।

एक मर गया ,
एक मार दिया गया,
जिंदा लाशें है ये,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।

खुद उठो,
कोई नहीं उठाने आएगा,
उठाने वाले चंद,
गिराने वाले हजार मिलते हैं,
जुबां ये खोलते नहीं,
मुर्दा बोलते नहीं।

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By Ankit Paurush

अंकित पौरुष अभी बंगलोर स्थित एक निजी सॉफ्टवेर फर्म मे कार्यरत है , साथ ही अंकित नुक्कड़ नाटक, ड्रामा, कुकिंग और लेखन का सौख रखते हैं , अंकित अपने विचार से समाज मे एक सकारात्मक बदलाव के लिए अक्सर अपने YouTube वीडियो , इंस्टाग्राम हैंडल और सभी सोसल मीडिया के हैंडल पर काफी एक्टिव रहते हैं और जब भी समय मिलता है इनके विचार पंख लगाकर उड़ने लगते हैं

One thought on “मुर्दा बोलते नहीं।”

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