“विश्वास” पर कभी एक कहानी सी पढ़ी थी। उसमें किसी गाँव में बारिश नहीं हो रही थी तो ग्रामीणों ने मिलकर भगवान से प्रार्थना करने की सोची। बारिश के लिए प्रार्थना करने जब सभी ग्रामीण जुटे तो एक बच्चा छाता लेकर आया था। केवल वो बालक ही था जिसे विश्वास था कि ईश्वर से प्रार्थना करने पर वर्षा होगी। विश्वास किसे कहते हैं, ये समझाने के लिए जो ये छोटा सी कहानी प्रयोग की जाती है, उसे सुनते ही हमें सबसे पहला उदाहरण शबरी का याद आ जाता है। रामकथा से परिचित अधिकांश लोग शबरी के नाम से परिचित होते ही हैं।
मोटे तौर पर उनकी कथा ये थी कि गुरु की तलाश में भटकते हुए वो किसी गाँव से निकलीं और ऋष्यमूक पर्वत की तलहटी में मातंग ऋषि के आश्रम जा पहुंची। पहले तो इतने पर ही लड़कियों को शिक्षा मिलती थी या नहीं, गुरुकुल जा सकती थीं या नहीं, वाला कथानक, शिव धनुष की गति को प्राप्त हो जाता है मगर हम उसपर बात नहीं करेंगे। जब ऋषि मातंग शरीर त्याग करने वाले थे तो शबरी ने उनसे अपने लिए भी मोक्ष इत्यादि की बात की। ऋषि ने कहा कि यदि वो भक्तिपूर्वक प्रतीक्षा करे तो श्री राम आगे उसी मार्ग से गुजरेंगे। उनके दर्शन से, उनकी भक्ति से, शबरी को जो चाहिए था वो प्राप्त हो सकता था।
ऋषि मातंग तो परमधाम को गए मगर शबरी भक्तिपूर्वक वहीँ आश्रम में श्री राम की प्रतीक्षा में आश्रम में रुकी रही। रुकी तो खाली बैठी नहीं रही। वो रोज आश्रम तक के मार्ग पर झाड़ू लगाती, जंगल से कंद-मूल (बेर) चुन लाती। यथासंभव श्री राम के आने पर उसने स्वागत की तैयारियों में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। आस पास के ग्रामीण संभवतः बूढ़ी की हरकत की खिल्ली भी उड़ाते थे कि देखो जिसके किसी अयोध्या में जन्म का भी अभी पता नहीं, उसके ऋष्यमूक पर्वत तक आने की प्रतीक्षा में ये तैयारी कर रही है! हो सकता है खिल्ली उड़ाने की बात अतिशयोक्ति हो, क्योंकि सनातनी आज भी किसी की आस्था का मजाक दूसरे छोटे-मोटे मजहब वालों की तरह तो उड़ाते नहीं।
जो भी हो, श्री राम आये और भक्तों में जिनका नाम अमरता को प्राप्त है, उसमें शबरी का नाम जोड़ गए। पौराणिक कथाओं में नवधा भक्ति के उपदेश के मात्र दो उदाहरण मिलते हैं। एक बार प्राह्लाद ने अपने पिता को नवधा भक्ति के बारे में बताया था और दूसरी बार श्री राम स्वयं शबरी को नवधा भक्ति के भेद अरण्यकाण्ड में बताते दिखते हैं। नौ अंगों या तरीके होने के कारण नौ विधा से शायद जोड़कर नवधा शब्द बना होगा। पहला उपाय श्री राम ने बताया है संतों की संगती जो अभी के काल में हम लोगों को पता नहीं कितना मिलता होगा। दूसरा तरीका बताया था मेरी कथा से प्रेम, उसे सुनना-सुनाना। मेरे ख्याल से पोस्ट के बहाने राम-कथा का एक हिस्सा पढ़ा देने पर मेरे हिस्से तो ये आ गया होगा, आपके हिस्से कैसे आएगा, ये आप सोचिये!
तीसरे उपाय में श्री राम ने अभिमान छोड़कर गुरु की सेवा करने की बात की थी और चौथे में कपट छोड़कर राम गुण गान की। कपट-अभिमान हमसे जैसे छूटें! राम नाम का जाप पांचवां उपाय है, और छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह, शील, वैराग्य और धर्म को धारण करना। राम नाम हमने आलस्य में नहीं जपा और इन्द्रियों के निग्रह, शील, वैराग्य आदि पर तो लोग हमपर हँसेंगे। सातवीं भक्ति श्री राम ने जगत को राममय देखनी की बताई थी, और आठवीं संतोष करने और पराये दोषों को न देखने की। नौवीं भक्ति है सरलता, सबके साथ कपटरहित बर्ताव ह्रदय में श्री राम पर भरोसा और हर्ष-दैन्य से रहित होना।
अभी जब काशी विश्वनाथ और नंदी की प्रतीक्षा का फल नजर आया तो ये प्रतीक्षा से जुड़ी कहानी फिर से याद आ गयी। याद इसलिए आयी क्योंकि शबरी सिर्फ बैठी प्रतीक्षा नहीं कर रही होती थी। वो रोज आश्रम के मार्ग पर झाड़ू लगाकर तैयारी कर रही होती थी। प्रतीक्षा “पैसिव” नहीं थी, “एक्टिव” थी। कुछ दिन पहले “हिन्दू इकोसिस्टम” वाले वीडियो में दो गुल्लक की तस्वीरें देखकर एक परिचित ने मजाक उड़ाया कि दो गुल्लक क्यों? एक काशी का था एक मथुरा का। जिस दिन इनके लिए मुक़दमे में पैसे की जरूरत होगी, उस दिन के लिए मेरे पास तो चंदे के सौ-पचास इकट्ठे हैं। उस दिन मेरा मजाक उड़ाने का अच्छा मौका था।
ज्ञानवापी में मिलने की खबर उस दिन नहीं आई थी, आज आ गयी है और आज मेरे पास पलटकर खिल्ली उड़ाने का अच्छा मौका है – हमने तो तैयारी की थी, तुमने क्या किया कॉमरेड? फिर भी हम ऐसा करेंगे नहीं। हम ये याद दिलाएंगे कि जिस समय श्री राम का राज्य हो, उसी काल में अयोध्या में जन्म ले लेना भी बिना पुण्यों के तो हुआ नहीं होगा। ऐसे पुण्यों के फल का अयोध्या वासियों ने किया क्या था? इससे कहीं बेहतर तो निषादराज थे जो नाव लिए प्रतीक्षा में बैठे थे। वो भी खाली बैठे नहीं थे, “पैसिव” नहीं “एक्टिव” ही रहे होंगे, क्योंकि उनको पहले से ही खबर थी कि कोई ऐसा व्यक्ति आ रहा है जिसके छूने से पत्थर जीवित हो उठते हैं!
नदी किनारे बैठे जादू से खबर तो आई नहीं होगी, कुछ किया होगा न खबर जुटाने के लिए? फिर पीछे से भरत और अयोध्या की सेनाओं के आने की खबर उनतक पहले पहुँचती है। वो भरत और सेनाओं को रोकने के प्रयासों के लिए भी तैयार हैं। देवासुर संग्राम में, दशरथ के साथ जाने वाली सेना को रोकने का प्रयास? केवट करेगा? जरूर तैयारी के साथ बैठे होंगे! आपका भाग्य था कि आप ऐसे काल में जन्म ले लेते हैं जब राम मंदिर का निर्माण आरंभ हो रहा है, संभवतः काशी-मथुरा भी अपने काल में देख पायें। ऐसी स्थितियों के लिए भगवद्गीता के छठे अध्याय में कहा है –
श्री भगवानुवाच
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति॥ (भगवद्गीता 6.40)
यहाँ चार श्लोकों में भगवान कहते हैं कि पूर्वजन्म में प्रयास किये हों और साधना पूरी न हुई हो, तो भी साधना नष्ट नहीं हो जाती। तेज हवा में बादलों की तरह वो छिन्न-भिन्न नहीं हो जाता। उसके फल से अगला जन्म ऐसा मिलता है जहाँ साधन सुलभ हों। ऐसा व्यक्ति अनायास ही सकाम कर्म का अतिक्रमण कर जाता है।
साधन आपके लिए भी सुलभ हैं। सीताराम गोयल जी वर्षों पहले अनेकों हिन्दुओं के मंदिरों का क्या हुआ, उसपर पूरी किताब लिख गए हैं। इस सुलभ साधन से पढ़कर आप जान सकते हैं कि ऐसे और कौन से मंदिरों को वापस लेने के लिए प्रयास शुरू किये जा सकते हैं। अंग्रेजी नहीं आती कहकर नहीं पढ़ने का बहाना बता देना भी 100% आपके हाथ में ही है। सोमनाथ को बचाते हुए वीर हमीरजी हो जाना, अमर होकर आज भी सोमनाथ मंदिर के सामने स्थापित हो जाना सिर्फ वीर हमीरजी के हाथ में थोड़ी था, सबको मिला था ये अवसर। आप उस अवसर का क्या करेंगे ये तो आपको सोचना है।
बाकी रामसेतु बनाने के लिए गिलहरी को कोई कार्ड छपवाकर तो भेजता नहीं, वो स्वयं ही आ कर जुट जाती है, ये तो याद ही होगा?
(चित्र इन्टरनेट से साभार)