एंडी वीयर ने 2009 में एक छोटी सी कहानी लिखी, जो आते ही इतनी प्रसिद्ध होने लगी कि कुछ ही वर्षों में उसे 30 से अधिक भाषाओँ में अनुवाद करके पढ़ा जाने लगा। आइये पहले कहानी देखते हैं।
आप अपने घर जाने के रास्ते में थे जब आपकी मृत्यु हो गयी।
ये एक कार दुर्घटना थी। इसमें कुछ भी ऐसा नहीं था, जिसे विशेष कहा जाए, सिवा इस बात के कि इसमें एक मौत हो गयी। आपकी पत्नी और दो बच्चे पीछे छूट गए। ये कोई दर्दनाक मौत नहीं थी। घटनास्थल पर पहुंचे चिकित्सकीय दल ने आपको बचाने की कोशिश की थी, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। वैसे भी दुर्घटना में आपका शरीर इतना टूट-फूट चुका था की जो हुआ वो सही ही हुआ।
और फिर आपकी मुझसे भेंट हुई।
“क्या… क्या हुआ?” आपने पूछा। “मैं कहाँ हूँ?”
“आपकी मृत्यु हो गयी” मैंने कहा, जैसे की कोई आम बात हो। शब्दों को चाशनी में लपेटने का कोई फायदा नहीं था।
“वहाँ… एक ट्रक था और वो नियंत्रण खो बैठा था…”
“हाँ,” मैंने कहा।
“मैं… मैं मृत हूँ?”
“हाँ, लेकिन इसका शोक मनाने की कोई बात नहीं है। सबकी मृत्यु होती है,” मैंने कहा।
आपने चारों ओर देखना चाहा। वहां कुछ भी नहीं था। केवल आप और मैं। “ये कौन सा स्थान है?” आपने जानना चाहा। “क्या ये मृत्युपर्यंत की स्थिति है?”
“ऐसा कहा जा सकता है,” मैंने कहा।
“क्या आप ईश्वर हैं?” आपने जानना चाहा।
“हाँ,” मैंने उत्तर दिया। “अहं ब्रह्मास्मि।”
“मेरे बच्चे… मेरी पत्नी,” आपने कहा।
“उनके बारे में क्या?”
“क्या वो ठीक होंगे?”
“मैं ऐसा ही होते देखना चाहूँगा,” मैंने कहा। “आपकी अभी अभी मृत्यु हो गयी है और आपकी चिंता आपके परिवार के लिए है। ये अच्छी बात है।”
आपने विस्मय भरी दृष्टि मुझपर डाली। आपके लिए मैं ईश्वर जैसा दीखता नहीं था। मैं केवल किसी दूसरे व्यक्ति जैसा था। शायद कोई और पुरुष, या संभवतः स्त्री ऐसी ही होती। या कहें कि दूर से देखे गए किसी शक्तिशाली व्यक्ति जैसा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बदले संभवतः किसी व्याकरण के सख्त शिक्षक जैसा।
“चिंता करने की कोई बात नहीं,” मैंने कहा। “वो ठीक रहेंगे। आपके बच्चे आपको एक अच्छे पिता के सर्वगुण सम्पूर्ण रूप में ही याद करेंगे। आपसे चिढ़ सकें, उन्हें इतना समय नहीं मिला। आपकी पत्नी बाहर से तो रोती दिखेगी, लेकिन अन्दर ही अन्दर वो प्रसन्न है। आपका विवाहित जीवन कोई बहुत अच्छी स्थिति में तो नहीं था। अगर इस बात से संतुष्टि होती हो तो बता दूँ, अपने अन्दर ही अन्दर प्रसन्न होने का उसे अत्यंत खेद भी होगा।”
“ओह,” आपने कहा। “तो अब क्या होगा? क्या मैं स्वर्ग या नरक जैसी किसी जगह जाने वाला हूँ?”
“दोनों में से कोई नहीं,” मैंने कहा। “आपका पुनःजन्म होने वाला है।”
“अच्छा,” आपने कहा। “तो ये हिन्दू सही ही कहते थे।”
“सभी धर्म अपनी-अपनी स्थिति में ठीक ही हैं,” मैंने कहा। “आइये मेरे साथ।”
आप शून्य में मेरे साथ साथ विचारने लगे। फिर पूछा “हम कहाँ जा रहे हैं?”
“किसी विशेष प्रयोजन से नहीं,” मैंने कहा। “बस टहलते टहलते बातें करना बेहतर होता है।”
“फिर इन सब का प्रयोजन क्या है?” आपने जानना चाहा। “जब मेरा पुनः जन्म होगा तो मैं एक खाली स्लेट की तरह हो जाऊंगा? एक बालक। फिर इस जीवन में मैंने जो अनुभव लिए, जो भी किया, उन सब से कोई अंतर नहीं पड़ेगा।”
“ऐसा नहीं है!” मैंने कहा। “आपके अन्दर ही आपका सारा ज्ञान और पूर्व जन्मों के सभी अनुभव छुपे हैं। बस आपको इस समय वो सभी स्मरण नहीं।”
मैं ठहरा और आपके कन्धों पर हाथ रखकर कहा, “आपकी आत्मा आपकी कल्पना से कहीं अधिक भव्य, सुन्दर और विशाल है। एक मानवीय मस्तिष्क में उसका केवल एक छोटा सा हिस्सा ही आ सकता है। ये वैसा ही है जैसे एक बर्तन में ऊँगली डुबाकर देखना कि उसके अन्दर रखा पानी गर्म है या ठंडा। आप अपने शरीर का एक बहुत छोटा सा हिस्सा बर्तन में डालते हैं, और जबतक उसे बाहर निकालते हैं, तबतक आपने बर्तन के अन्दर स्थित सभी अनुभव ले लिए होते हैं।
आप इस मानवीय शरीर में 48 वर्ष रहे, इसलिए बाहर आने के बाद अपनी विशाल चेतना के सभी अनुभव तुरंत याद नहीं आ रहे। अगर हम थोड़ी देर और यहीं ठहरें तो आपको सबकुछ याद आने लगेगा। वैसे दो जन्मों के बीच में ठहरकर ऐसा करने का कोई लाभ नहीं।”
“फिर मैं कितनी बार पुनःजन्म ले चुका हूँ?”
“ओह, अनेकों बार। बहुत सारे। ये सभी जन्म अलग भी थे।” मैंने कहा। “इस बार आप एक चीनी किसान लड़की के जन्म में 540 ए.डी. में जा रहे हैं।”
“ठहरिये, क्या कहा?” आप हकलाये। “आप मुझे समय में पीछे भेज रहे हैं?”
“तकनीकी रूप से ऐसा कहा जा सकता है। समय को जिस रूप में आप जानते हैं, वो केवल आपके संसार में होता है। जहाँ से मैं आता हूँ, वहां सब भिन्न है।”
“आप जहाँ से आते हैं?” आपने कहा।
“हाँ, निश्चय ही,” मैंने समझाने का प्रयत्न किया “मैं भी कहीं न कहीं से आता हूँ। किसी और स्थान से। वहां मेरे जैसे और भी है। मुझे पता है कि आप उस जगह के बारे में जानना चाहेंगे लेकिन सच बताऊँ तो आप उसके बारे में कुछ भी समझ नहीं पाएंगे।”
“ओह,” आपने कहा, शायद थोड़ा निराश होते हुए। “लेकिन ठहरिये, अगर मैं और जगहों पर अलग अलग समय में जन्मा तो ऐसा भी तो हुआ होगा कि मैं अपने आप से ही मिला भी।”
“निस्सन्देह। ऐसा तो होता ही रहता है। दोनों जीवन में स्मृति केवल उसी जन्म की है, इसलिए दोनों लोगों को इसमें कुछ अजीब भी नहीं लगेगा।”
“फिर इन सबका प्रयोजन क्या है?”
“सही में?” मैनें पूछा। “क्या सचमुच में आप मुझसे जीवन का रहस्य जानना चाहते हैं? ये प्रश्न काफी घिसा-पिटा सा नहीं है?”
“लेकिन ये तो एक तार्किक प्रश्न है,” आप अड़े रहे।
मैंने गौर से आपकी आँखों में झाँककर देखा। “इस जीवन का अर्थ, इस पूरे ब्रह्माण्ड के निर्माण का उद्देश्य केवल इतना है कि आप परिपक्व हो सकें।”
“आपका मतलब है मानवता? आप चाहते हैं कि हम सभी परिपक्व हों?”
“नहीं, मैं केवल आपकी बात कर रहा हूँ। ये पूरा ब्रह्माण्ड मैंने केवल आपके लिए बनाया है। हर जन्म में आप थोड़े और परिपक्व होते हैं, और एक सीढ़ी और आगे बढ़ते हैं।”
“सिर्फ मैं? फिर बाकी सभी का क्या?”
“कोई और है ही नहीं,” मैंने कहा। “इस संसार में केवल आप और मैं हैं।”
आपने विस्मित भाव से मेरी और देखते हुए कहा, “लेकिन फिर विश्व में इतने सारे जो दूसरे लोग हैं…”
“सभी आप ही हैं। आपके विभिन्न रूप-जन्म, तत्वमसि।”
“ठहरिये। मैं ही सभी हूँ!?”
“अब आपकी समझ में आ रहा है,” मैंने आपकी पीठ ठोकते हुए कहा।
“जो भी मनुष्य किसी भी काल में जन्मा वो सब मैं ही हूँ।”
“या फिर जो भी कभी जन्म लेगा, वो सब भी, हाँ आप ही हैं।”
“मैं अब्राहम लिंकन हूँ?”
“और आप ही जॉन विल्केस बूथ भी,” मैंने जोड़ा।
“मैं हिटलर भी?” अचंभित होते हुए आपने पूछा।
“और जिन करोड़ों लोगों की उसने हत्या कर दी, वो भी।”
“मैं ईसा मसीह भी?”
“और उनके सभी अनुयायी भी।”
आप शांत हो गए।
“हर बार जब आप किसी को सताते हैं,” मैंने कहा, “आप अपना ही शोषण करते हैं। जब आप दया दिखाते हैं, तो वो आप अपने ही प्रति दया करते हैं। किसी भी मनुष्य ने जो भी दुःख-सुख के क्षणों में अनुभव किया, वो सभी आपके ही अनुभव हैं।”
लम्बे समय के लिए आप विचारों में डूब गए।
“क्यों?” आपने मुझसे पूछा। “ये सब करने का उद्देश्य क्या है?”
“क्योंकि किसी दिन आप भी मेरे जैसे बन पाएंगे। क्योंकि यही आपका सच्चा स्वरुप है। आप भी मेरे जैसे हैं। हर आत्मा परमात्मा की ही संतान है।”
“हे भगवान!” आपने अविश्वास भरा प्रश्न किया। “आपका मतलब है मैं ही ईश्वर हूँ? अहं ब्रह्मास्मि।”
“नहीं, अभी तक तो नहीं। आप अपने आपको एक भ्रूण मान सकते हैं। जीवन के अनेक चक्रों को पार करते हुए एक दिन आप इतने परिपक्व हो जायेंगे। इसलिए कह सकते हैं त्वं तदसि।”
“अर्थात ये पूरा ब्रह्माण्ड,” आपने कहा, “ये केवल एक…”
“अंडा है।” मैंने उत्तर दिया। “अब समय हो गया है कि आप अपने अगले जीवन की ओर आगे बढ़ें।”
और फिर मैंने आपको आगे की यात्रा पर भेज दिया।
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कहानी यहीं समाप्त होती है। इसे फिल्म के रूप में देखना हो तो ये बड़ी आसानी से यू ट्यूब पर “द एग” नाम से उपलब्ध है। इसके जिस हिस्से में ये कहा जाता है कि हिटलर भी तुम थे, उसके द्वारा मारे गए लोग भी तुम ही थे, वो आपको आसानी से भगवद्गीता में दूसरे अध्याय के बारहवें श्लोक में दिखेगा –
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्।।2.12
अर्थात किसी काल में मैं नहीं था, तुम नहीं थे या ये राजा लोग नहीं थे, ऐसा नहीं है और भविष्य में हम सभी नहीं रहेंगे, ऐसा भी नहीं है। अभी अभी जो कहानी आपने पढ़ी, उसमें हरेक तुम ही हो, ये समझाकर अद्वैत के सिद्धांत के माध्यम से बिलकुल यही सिखाया गया है। ये मान लेना कठिन होता है। कितना कठिन है, इसे समझना हो तो देखिये कि हाल ही में आई “टेनेट” फिल्म कई लोगों ने देखी है। वो स्वीकार भी करेंगे कि “टेनेट” फिल्म पसंद थी, मगर हर काल में वही एक व्यक्ति है, ये वो स्वीकार ही नहीं कर पाते इसलिए ये भी कहेंगे कि फिल्म समझ में नहीं आई!
यहाँ जो बार बार अलग काल, शरीरों में जन्म लेने के बारे में कहा गया है, वो भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का बाईसवाँ श्लोक है। ये श्लोक काफी प्रसिद्ध है और संभवतः आपने इसे पहले सुना होगा –
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22
अर्थात जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है। इस बारे में आगे भी भगवद्गीता के चौथे अध्याय के चौथे श्लोक में अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं –
अर्जुन उवाच
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति।।4.4
अर्जुन बोले – आपका जन्म तो अभीका है और सूर्यका जन्म बहुत पुराना है; अतः आपने ही सृष्टिके आदिमें सूर्यसे यह योग कहा था – यह बात मैं कैसे समझूँ?
श्री भगवानुवाच
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।4.5
भगवान बोले – अर्जुन मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ, पर तू नहीं जानता।
इस कहानी के दूसरे हिस्सों में आपको कई और श्लोक भी दिखाई देंगे। फिल्म के रूप में “द एग” मुश्किल से आठ मिनट की है। पहले खुद देख लीजिये। फिर लगे कि कोई हिस्सा समझ नहीं आया, तो प्रश्नों के लिए पोस्ट पर कमेंट का हिस्सा खुला है। “द एग” की कहानी से सम्बंधित जो भी प्रश्न सूझें वहां छोड़ सकते हैं। बाकी ये याद रखिये कि जो भी हम बता पाएंगे वो नर्सरी लेवल का ही होगा। और पीएचडी के लिए आपको खुद पढ़ना होगा ये तो याद ही होगा?

By anandkumar

आनंद ने कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की है और मास्टर स्तर पर मार्केटिंग और मीडिया मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। उन्होंने बाजार और सामाजिक अनुसंधान में एक दशक से अधिक समय तक काम किया। दोनों काम के दायित्वों के कारण और व्यक्तिगत रूचि के लिए भी, उन्होंने पूरे भारत में यात्राएं की हैं। वर्तमान में, वह भारत के 500+ में घूमने, अथवा काम के सिलसिले में जा चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों से, वह पटना, बिहार में स्थित है, और इन दिनों संस्कृत विषय से स्नातक (शास्त्री) की पढ़ाई पूरी कर रहें है। एक सामग्री लेखक के रूप में, उनके पास OpIndia, IChowk, और कई अन्य वेबसाइटों और ब्लॉगों पर कई लेख हैं। भगवद् गीता पर उनकी पहली पुस्तक "गीतायन" अमेज़न पर बेस्ट सेलर रह चुकी है।

4 thoughts on “क्या उपनिषदों के बारे में थी एंडी वीयर की कहानी ! – THE EGG”

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