मेघा गरजे मेघा बरसे | Poetry By Ankit Paurush | The Ankit Paurush Show
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मेघा गरजे, मेघा बरसे,
धरती नीर को तरसे,
धरती कि प्यास कब भुजाओगे,
आशाओं के दीप कब जलाओगे।
बारिश है, फिर भी धरती प्यासी,
कृतिम सड़कें, हुई मिट्टी पर हावी,
भीगी खुशबू , कब लौटाओगे,
प्रकृति को तुम कब बचाओगे,
धरती कि प्यास कब भुजाओगे।
जब जब बारिश घनघोर आती,
बाढ़ आती, प्रलय आती,
फिर भी धरती प्यासी रह जाती,
नदियों को तुम कब मिलाओगे,
विपदा से तुम कब बचाओगे,
धरती कि प्यास कब भुजाओगे।
सनातन ने हमको ज्ञान सिखाया,
जीवन का मोल बताया,
जिसने हमको जीवन दिया,
भूमि, अग्नि, जल, वायु, चांद, सूरज,
धरती, नदियां, आकाश, अंबर,
उन चेतना शक्तियों को,
देवी देवताओं का सनातन ने नाम दिया।
इन सब प्राण ऊर्जा को,
हृदय से नमन करता हूं।
मैं धरती का छोटा सा प्राणी,
इनके के बिना,
एक पल भी न जी सकता हूं।
सनातन ने ज्ञान, करुणा,
मान मर्यादा का पाठ पढ़ाया,
मैं उस सनातन को नमन करता हूं,
मां को कभी पसंद नहीं आएगा,
अगर उसका बटवारा हो जाएगा,
सब नदियों को मिलवा वादो,
आपस में जुड़ वादो,
बाढ़ जैसी विपदा से बचा दो,
आपसी लड़ाइयों को बंद करके,
बेटे होने का सब कर्तव्य निभादो,
भारत की मर्यादा को बचा दो।
मेरी केंद्र राज्य हर सरकारों से अनुरोध है,
जल समस्या का समाधान निकालो,
आपसी मतभेदों को छोड़कर,
नदियों को आपस में मिलवा दो,
सब नदियों को एक करा दो,
भारत के बेटे होने का कर्तव्य निभा दो।
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Very meaningful poetry 👏👏👏👏👏👏👏👏👏
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