मै श्रोता अच्छा हु खूब सुनता हु, कोई कुछ भी लिखे एक बार देखता जरुर हु, मझा हुआ खिलाड़ी लिक्खे या फिर कोई नौसिखिया लिखे, सुनता उसको भी हु, वाचाल वाणी की वजह से कभी कभी खराब लेखन जो मुझे पसंद ना आये उसपर तंज भी कसता हु।

लेकिन सुनने से नही भागता हु क्योंकि मुझे पता है ये लिखने की सक्ति या तो पढ़ कर आएगी या सुनकर, इसलिए आजकल खूब पढता हु खूब सुनता हु , विचार बेशक आपके मन के आपके जीवन से प्रेरित होंगे, शायर या फिर कोई भी कलमकार करता क्या है ?

अपना दिल ही तो क़ागज पर उतारता है। मगर खुद को व्यक्त करने के लिए सब्द कहाँ से लाओगे या तो पढोगे या सुनोगे !

अहंकार का समावेश शायरों को दूर ले जाता है। कुछ लोगो को मैंने देखा है की वो आम लोगो से किनारा करते जाते हैं।

और ख़ास लोगो की सोहबत में जाने के बाद आम लोगो को सुनना बंद कर देते हैं। उन्हें लगता है की इसको सुनुगा का तो लेवल गिरेगा छोड़ो ऐसे ही कुछ लिख देता है। मगर अनुभव किसी का व्यर्थ नही है। वो भूल जाते हैं, खराब लेखन या बढियां लेखन दोनों ही जगहों से हम कुछ अच्छा सिख सकते हैं, जब महान लोगो को पढ़ते हैं तब हमें motivation मिलता है, आम लोगो की रोज मर्रा की जरूरते देखते हैं तो भी उससे बहुत कुछ सिखने को मिलता है।

हम भूल जाते हैं वो कहावत जिसमे कहा गया है नाकामयाब लोगो से मिलो उनके पास बैठो अनुभव वही है। हम उस आविष्कारक एडिसन को भी भूल जाते हैं। जिसने 1000 बार में ये सिखा था की बल्ब कैसे नही बन सकता। वो उन्ही अनुभवो के आधार पर बल्ब बना सका क्या वो हार मान लेता तो बल्ब बन पाता !

आम लोगो को नही सुन्ना भी हार मान लेने जैसा ही है, धीरे धीरे आप सिमटने लगते हैं और रुक से जाते हैं। एक जगह पर ठहर से जाते हैं, आखिर ग़ालिब एक ही क्यों हुआ ? कबीर दास भी एक ही हुए उन जैसा शायर इतिहास उठा लो फिर दुबारा पैदा हुए क्या ? क्योंकि ये लोग अमीरी की चादर ओढ़ ही नही पाए।

विदेशो में भी कई लेखक हुए जिनकी दुर्दसा से तंग आकर वहां के सास्क ने उन्हें इनाम दिया मगर वो उसे भी लुटा दिये कारण क्योंकि वो रुक नही सकते हैं।

जो कहीं पर जाकर अटक जाए वो सफल तो हो जाते हैं। रुपया पैसा नाम सोहरत भी आ जाता है। मगर वहां से विकास खत्म, उन्होंने एक सम्भावना को मार दिया, दूसरा ग़ालिब और कबीर इस दुनिया को मिल सकता था। मगर अफ़सोस हम अटक से जाते हैं।

एक 3 ediot फिल्म का dailouge है कामयाबी नही परफेक्शन के पीछे भागो, मगर हमारी दौर है किस तरफ ?

कामयाबी या परफेक्शन !

ज्यादातर लोग 9 to 9 की जॉब में जिंदगी बिताकर खुद को सफल मानते लेते हैं। साधारण इन्सान का यह स्वाभाव है। मगर जब लेखक या कोई भी क्रिएटिव फील्ड का बन्दा हार मान कर सिमटना शुरू करता है, खुद को ख़ास मानता है। तब वो कुछ नया लिख ही नही पाता क्योंकि आम जीवन की प्रेरणा खत्म हो जाती है। उधाहरण के लिए आप माइक लेकर निकलिए और लोगो से सवाल पूछिए, फिर आम आदमी बनकर निकलिए और लोगो से सुनिए बसों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में खूब घूमिये उसके बाद का जो अनुभव आप क़ागज पर लिखेंगे और माइक वाला अनुभव क़ागज पर लिखेंगे फर्क तो मिलेगा।

ग़ुरबत को अनुभव किया जा सकता है, समझा नही जा सकता है, वो कहते हैं ना जिसको दर्द होता है सिर्फ वहीँ जाने, “पीर पराई कोई न जाने” ख़ास लोग आमलोग से कनेक्ट नही कर पाते अक्षर वाला व्यक्ति निरक्षर के अनुभवो को जब महसूस करके उसे अपने अक्षर में पिरोता है। तब सोना बाहर आता है।

शायर या फिर लेखन कोई कला नही , शायर और लेखक तो माँ के पेट से शायर और लेखक होता है। it’s a god’s gift, अब जो हुनर आप माँ के पेट से लेकर आये हैं। उसके निखरने के लिए आपको सुनना और पढना पड़ता है। बहुत सारे लोग literature पढ़ते हैं। कितने शायर और लेखक बन सकें ? 1% भी नही ऐसा क्यों है ? क्योंकि उनके पास god’s gift नही है। और जिनके पास है उनका सफर आम लोगो से शुरू होता है फिर जब अमीरी की चादर उनपर चढ़ती है तब उनको लगता है की यही तो अशली दुनिया है। कहाँ खोये थे हम !

मगर असल में वो अपनी जिस यात्रा से सफल होकर आये हैं। उस यात्रा के पथिक को भी भूल जाते हैं। यहाँ पर भगवद गीता का राजसी कर्म उनको सात्विक तक पहुचने देता ही नही और जो व्यक्ति फिर से उन पथिको के साथ हो लेता है उनसे संगत करता है। वो सात्विक गुणों तक पहुच पाता है।

यहाँ पर ख्याल आया मनोज वाजपेयी का अरे वही बिहार के एक्टर जो एक show में कह रहे होते हैं अपने माँ के वाकये के बारे में वो कहते है “मनोज जे सफल ना होला ना ओकरा के बुरबक न समझें के चाहि” मतलब जो व्यक्ति सफल नही ऐसा नही की वो बेवकूफ है, उसके पास भी अनुभव और तजुर्बा है, जाहिर है की मनोज वाजपेयी ने किस बात पर माँ की यह बात सुनी ! उसको वो छुपा ले गये मगर मै समझता हु वो किसी नाकमयाब इन्सान या आम इंसान की बात कर रहे होंगे मगर इस बात का जिक्र उन्होंने इसलिए नही किया क्योंकि उनकी छवि पर असर पड़ता और आजकल के लोग बात का बतंगड बनाने में भी कम माहिर नही है कल के टीवी सेट पर आता ब्रेकिंग न्यूज़ सफलता के नसे में चूर मनोज वाजपेयी ने एक आम इन्सान का मजाक उड़ाया, ये एक्टर खुद को खुदा समझते है। तो मनोज वाजपेयी को इस बात का खूब अनुभव है की बात का बतंगड़ कैसे बन सकता है, इसलिए हो सकता है, उन्होंने इसको हाईड किया या फिर ये भी हो सकता है की बातों बातों में यह बात रह गई होगी, और लोग आगे बढ़ गये। अब इससे आपने क्या सिखा ? वही जो आप इतनी देर से पढ़ रहें है। वो एक वाकये में समझाने की कोसिस थी, इसलिए कोई भी अगर कुछ लिखता है इसका मतलब है उसे भगवान् ने इस काम के लिए चुना है।

ये भगवान् का वो सिपाही है जिसे आदेश मिला है हर वक्त सहज और सरल तथा डाउन to earth बन्ने का। आज भी मेरा यह सौभाग्य है की कई ऐसे शायर शायरा मुझसे कनेक्ट करते हैं। अपनी व्यस्त जीवन शेली के वावजूद वो एक आम आदमी से क्यों कनेक्ट करने में सहज है क्योंकि उनके पास अहंकार नही उनके पास द्वेष नही, उनके मन में कोई छल नही, मैंने ये बातें सिर्फ शायरों और लेखको में ही महसूस की जिनके मिलियन में follower है। फिर भी वो कभी न कभी रिप्लाई दे ही देते हैं।

इसके अलाव आप प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्री को करते रहिये ना poke जीवन खत्म हो जायेगी रिप्लाई नही आएगा, क्योंकि एक तो इनका social handel की लगाम इनके मेनेजर के पास है और दूसरी बात उन मेनेजर में इतनी क्षमता होती ही नही की वो जज कर पाए की किसका मेसेज का उत्तर दिया जाए, किसको छोड़ दिया जाए, आपको अगर इनसे कोई समस्या साझा करनी है तो आप ट्विटर की मारक क्षमता का इस्तेमाल कर सकते हैं।

लेकिन यहाँ पर भी एक समस्या है। आपके सब्द , क्या आप अपने सब्द वजन के साथ शालीनता के साथ, अपनी समस्या रख पायेंगे ? जिसमे तंज भी हो रंज भी हो और इन सबमे आपकी छुपी हुई तकलीफ भी हो। ऐसा तो कोई लेखक या शायर ही कर सकता है। और जैसे ही ये होगा आपकी समस्या छू मंतर हो जायेगी अभी हाल में ही बिजली की हालत बड़ी खराब थी। मैंने क्या किया ? बस ट्वीट किया और हुजूरे आला को टैग किया मगर वहां भी उनके मान और सम्मान का ख्याल रक्खा, अमूमन हम भावना में बहकर अपनी व्यथा लिखते वक्त या कहते वक्त अप्सब्दो का प्रयोग कर बैठते हैं।

ऐसे में आपको ब्लाक कर दिया जाएगा फिर आप कहेंगे मेरी आवाज को दबा दिया गया है। मगर ये आधा सच है, पूरा सच आपके अप्सब्द थे, अप्सब्द से #clipkatua याद आ गये अरे वहीँ जुबेर ( alt news ) उसको लगता है की वो सच बोलता है। इसलिए ब्लाक किया जाता है। मगर हक्कीकत यह है की वो क्लिप कटुआ है। यहाँ पर मुश्ल्मान या हिन्दू से कोई मतलब नही है। उसकी वाणी खराब है नही तो नितीश कुमार जो सेक्युलर छवि के माने जाते हैं। अब कितना सच कितना झूठ ये तो जनता तय करेगी ! मगर जिस तरह से इफ्तियर पार्टी का दौर हो या फिर मजार पर चादर, इन सब में हमारे मुख्यमत्री महोदय पहली पंक्ति में दिख जाते हैं। कारण जो भी हो मगर उस कौम विशेष से उनको कई बार जुड़ता देखा जा सकता है. अब उनका ये प्यार है या वोट बैंक ये तो उनका दिल ही जाने। मगर इन्होने भी #clipkatua जुबैर को ब्लाक कर दिया है। कारण वही है अपमान।

तंज और अपमान में भी बड़ा ही कम फर्क है। बहुत बचा के लिखना पड़ता है इसलिए इस तरह के दुर्साह्स के लिए आप किसी एक्सपर्ट की मदद ले,

तो इन सभी बातों का सार क्या निकला की जीवन में खूब ऊँचा उठो मगर अनवारी से पुराने कपडे निकालने की जरूरत ही ना पड़े क्योंकि आपने पहले ही सभी पहन पहन के घिस घिस के फाड़ दिए हैं।

धन तो आ जाएगा मगर स्टोर्ड धन आपको उछलने के लिए भी मजबूर करता है।

इन सब में ये भी सोचा जा सकता है की ये मेरा थोड़े ना है, ये भगवान् का है खर्च तो भगवान कर रहें हैं और ये बाते आपको दिल में उतारना होगा सिर्फ कहने के लिए होगा तो फिर कोई फायदा नही।

कभी भी ये मेरा ये तेरा ये उसका ये भावना घर की दिल में बस आप खत्म इसलिए खुद को कर्म योग में लगाये और आगे बढे अब कर्म योग क्या है तो इसके लिए आपको मेरे पिछले पोस्ट बड़े ही ध्यान से पढने पड़ेंगे, नही मिले तो बता देना।

उम्मीद है आपलोगों का इस लेख से ज्ञान वर्धन हुआ होगा और आप आम आदमी के पोस्ट को भी बड़े ध्यान से देखेंगे उम्मीद यह भी है की अमीर लोग या अमीर शायर, लेखक अनुभव के लिए भेष बदलकर सडको पर नजर आयेंगे ये कुछ ज्याद ही उम्मीद लगा लिए पहले वाला ही उम्मीद ठीक था। तो हम चलते कृष्ण भक्ति और माँ राधा जी से कुछ नया विचार का दोहन करने के लिए तब तक ये पढ़िए और बड़े बड़े लेखको और शायरों को भेज दीजिये जो आपकी बात नही सुनते।

यहाँ भी आपको लगता है की हम या भगवान् कृष्ण पोपुलर होना चाहते है तो आप इसको कॉपी कर लीजियेगा मुझे उन सबका मोह नही है इसलिए हम या वासुदेव अपना नाम नहीं लिखते या पोस्ट के बिच में खुद को मेंशन नही करते उस पाप से कोसो दूर हु जिसमे यस और कृति हो हम लोग फकीरी में जिंदगी गुजार देने वाले है कान्हा है ना मेरे साथ मुझे किसी भी यश की प्राप्ति का लोभ नही। लिखता हु अपने और समाज के लिए और जान बुझ कर लम्बा लिखता हु क्योंकि ज्ञानी लोग ही समय निकाल कर पढ़ें अज्ञानी लोग दूर ही रहें तो इसी विचार के साथ अब पक्का खत्म.

आपका दिन मंगलमय हो राधे राधे #shubhendukecomments

By Shubhendu Prakash

शुभेन्दु प्रकाश 2012 से सुचना और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र मे कार्यरत है साथ ही पत्रकारिता भी 2009 से कर रहें हैं | कई प्रिंट और इलेक्ट्रनिक मीडिया के लिए काम किया साथ ही ये आईटी services भी मुहैया करवाते हैं | 2020 से शुभेन्दु ने कोरोना को देखते हुए फुल टाइम मे जर्नलिज्म करने का निर्णय लिया अभी ये माटी की पुकार हिंदी माशिक पत्रिका में समाचार सम्पादक के पद पर कार्यरत है साथ ही aware news 24 का भी संचालन कर रहे हैं , शुभेन्दु बहुत सारे न्यूज़ पोर्टल तथा youtube चैनल को भी अपना योगदान देते हैं | अभी भी शुभेन्दु Golden Enterprises नामक फर्म का भी संचालन कर रहें हैं और बेहतर आईटी सेवा के लिए भी कार्य कर रहें हैं |

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