श्री भग्वानुवाचः 41 वा श्लोक अध्याय 2 का 49 वा श्लोक
कर्म के फल की इच्छा को छोड़कर जो निष्काम कर्म योगी होता है, वह पाप पुण्य से दूर हो जाता है जो फल के लिए काम करते हैं। उन्हें हमेशा असफल होने का डर रहता है और इसीलिए कभी भी वो कर्म को अच्छे से नहीं कर पाते और फिर अगर उनको फल मिल भी जाता है तो इसी फल में उलझ जाते हैं। इसलिए हमें बुद्धि योग की शरण में आना चाहिए। लगन सिर्फ काम में और भगवान में तब बुद्धि निश्चय से काम कर पाती है।
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