सहसा कोई शै हवा में सनसनाती हुई आई। एक जूता! मराठी जूता! लाल चमड़ी की नोकवाला जूता, जिसकी एड़ी में खुरी लगी हुई थी। यह जूता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के गाल पर लगा और फिरोजशाह मेहता से टकराया। यों उड़ते उड़ते जूता धरती पर जा गिरा जैसे वह कोई सिगनल हो।
पगड़ीधारी लोगों की सफेद तरंगों ने कांग्रेस मंच पर धावा बोल दिया। लपकते झपकते और क्रोध से फुंकारते हुये वे आये और जो कोई भी मॉडरेट उन्हें दिखाई पड़ा, दनादन उसी की पिटाई कर दी। दूसरे ही क्षण मैंने इण्डियन नेशनल कॉङ्ग्रेस का हुड़दंग समाप्त होते देखा।
– एन. जी. जोग, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (सूरत काण्ड, दिसम्बर 1907)
जुत्तम-पेजर एक प्राचीन कांग्रेसी परंपरा है जिसके तहत पटना के कम्युनिस्ट ऑफिस से एसी उखाड़ ले जाने वाले के साथ भी कुछ झुमा-झटकी हुई। हमें नहीं लगता की इसे दोस्ताना धौल-धप्पे के बदले कूट दिया जाना कहना कहीं से भी उचित है!
हमें तो नही दिखी